महाराष्ट्र के 12 जिलों के किसान इस बार 15 अगस्त को आजादी का जश्न थोड़े अलग अंदाज में मनाने जा रहे हैं. जहां एक ओर पूरा देश आजादी का पर्व मना रहा होगा, वहीं ये किसान अपने खेतों में तिरंगा फहराकर सरकार को यह संदेश देंगे कि उन्हें ‘शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे’ जैसे प्रोजेक्ट से “आजादी” चाहिए. किसानों का कहना है कि यह एक्सप्रेसवे उनकी उपजाऊ जमीन छीन लेगा और खेती को बर्बाद कर देगा.
विरोध का नारा
द हिंदू की खबर के अनुसार, इस अभियान का नारा रखा गया है “हमारे खेत में लहराए तिरंगा, शक्तिपीठ को नहीं जगह हमारी जमीन पर.” यह संदेश सीधे राज्य सरकार तक पहुंचाने की कोशिश है कि किसानों की जमीन उनकी आजीविका है, इसे सड़क परियोजनाओं के नाम पर न छीना जाए.
कब और कैसे शुरू हुआ आंदोलन
9 अगस्त को ‘शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे विरोधी संघर्ष समिति’ की ऑनलाइन बैठक में यह फैसला लिया गया. इसमें प्रभावित जिलों के किसान और जनप्रतिनिधि शामिल हुए. आंदोलन के हिस्से के तौर पर 15 अगस्त को ग्राम सभाओं में प्रस्ताव पारित किए जाएंगे और गांव-गांव हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जाएगा.
क्या है शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे
महाराष्ट्र सरकार ने जून 2025 में 20,787 करोड़ रुपये के बजट के साथ 802 किमी लंबे ‘शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे’ को मंजूरी दी थी. यह नागपुर से गोवा का सफर 18 घंटे से घटाकर 8 घंटे करने का दावा करता है. इस परियोजना के लिए करीब 7,500 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जाएगी.
किसानों की नाराजगी
कांग्रेस एमएलसी सतेज पाटिल का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की लागत 86,000 करोड़ से बढ़कर 1.06 लाख करोड़ रुपये हो गई है, लेकिन किसानों को इसका कोई फायदा नहीं होगा. किसान नेता राजू शेट्टी ने चेतावनी दी कि खेती योग्य जमीन लगातार घट रही है और ऐसे प्रोजेक्ट इसे और कम करेंगे. शिवसेना (यूबीटी) नेता विनायक राउत ने आरोप लगाया कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ ठेकेदारों और नेताओं के लिए फायदेमंद होगा.
आगे की योजना
किसान 13 अगस्त को कोल्हापुर के बिंदू चौक में संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रव्यापी विरोध रैली में भी शामिल होंगे. 15 अगस्त के बाद, कोल्हापुर जिले के 10 गांवों से हस्ताक्षर अभियान शुरू होगा और इसे पूरे प्रभावित इलाके में फैलाया जाएगा.
किसानों का कहना है कि तिरंगा उनके खेतों में शान से लहराएगा, लेकिन वे अपनी उपजाऊ जमीन को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे. यह आंदोलन सिर्फ एक सड़क के खिलाफ नहीं, बल्कि अपनी जमीन और रोजी-रोटी बचाने की लड़ाई है.