गांवों में रोजगार का सबसे बड़ा सहारा मानी जाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को लेकर एक नई चिंता सामने आई है. वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही के लिए तय सीमा का 78 फीसदी हिस्सा सिर्फ तीन महीनों में खर्च हो चुका है. अप्रैल से जून के बीच करीब 40,000 करोड़ रुपये का खर्च हो गया, जबकि सरकार ने पूरे साल के लिए 86,000 करोड़ रुपये का बजट तय किया था.
पहली बार खर्च पर लगी कैपिंग
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने एक ऑफिस मेमोरेंडम जारी कर बताया कि ग्रामीण विकास विभाग को वर्ष की पहली छमाही में कुल बजट का अधिकतम 60 फीसदी खर्च करने की अनुमति दी गई है. यानी 51,600 करोड़ रुपये. लेकिन जून के अंत तक ही इसका 78 फीसदी खर्च हो चुका है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे वित्तीय प्रबंधन का हिस्सा बताया और कहा कि “यह योजना मांग-आधारित है, जैसे-जैसे मांग आएगी, वैसे-वैसे पैसा दिया जाएगा.”
राज्यों में बुजुर्गों को भुगतान पर सवाल
बिजनेस लाइन को दिए इंटरव्यू में, सीतारमण ने कैग (CAG) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कुछ राज्यों में बुजुर्ग लोग मनरेगा से पैसा निकाल रहे हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि “क्या वे कार्य करने में सक्षम हैं? क्या उन्हें भुगतान किया जाना चाहिए?” उन्होंने साफ किया कि सरकार कानून के तहत बाध्य है कि अगर काम की मांग आती है, तो भुगतान करना ही होगा.
संसद समिति की चेतावनी
संसदीय समिति ने हाल ही में पेश एक रिपोर्ट में कहा कि मनरेगा गरीबों के लिए एक कानूनी अधिकार है और यह उन लोगों का आखिरी सहारा है जिनके पास रोजगार का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. समिति ने ग्रामीण विकास मंत्रालय से जमीनी स्तर पर रोजगार की मांग का नया आकलन करने और वित्त मंत्रालय से बजट बढ़ाने की सिफारिश की है.
50 लाख जॉब कार्ड हुए थे डिलीट
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2021-22 में करीब 50.31 लाख जॉब कार्ड सिर्फ आधार या नाम में मामूली गलतियों के कारण हटा दिए गए थे. आज भी कई मजदूरों को इन तकनीकी खामियों की वजह से काम नहीं मिल पा रहा है.
हो सकती है काम मिलने में मुश्किल
जून में ही खर्च का इतना बड़ा हिस्सा खत्म हो जाना इस बात का संकेत है कि जमीन पर रोजगार की मांग बहुत ज्यादा है. अगर सरकार ने जल्द अतिरिक्त फंड जारी नहीं किए, तो आने वाले महीनों में लाखों ग्रामीण मजदूरों को काम मिलने में मुश्किल आ सकती है. ऐसे में अब सबकी निगाहें वित्त मंत्रालय और ग्रामीण विकास विभाग पर टिकी हैं.