देशभर में एक बार फिर मोटे अनाज की वापसी हो रही है. पोषण से भरपूर और कम पानी में तैयार होने वाले इन अनाजों की मांग अब शहरों से लेकर विदेशों तक तेजी से बढ़ रही है. बाजरा, ज्वार, रागी और मक्का जैसे अनाज अब सिर्फ गरीबों का भोजन नहीं, बल्कि हेल्दी डाइट का हिस्सा बन चुके हैं. खासकर मक्का, जिसकी खेती आज किसानों के लिए बेहतर आमदनी और कम जोखिम का जरिया बन गई है. अगर आप भी मक्का की खेती करने की सोच रहे हैं या पहले से करते हैं, तो बताए गए नई तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर आप अपनी पैदावार और मुनाफा दोनों को बढ़ा सकते हैं.
क्यों बढ़ रही है मक्के की मांग?
मक्का का इस्तेमाल अब सिर्फ जानवरों के चारे तक सीमित नहीं रहा. आज यह कुकिंग ऑयल, पॉपकॉर्न, मक्का आटा, कॉर्न फ्लेक्स, बायोफ्यूल, शराब उद्योग और स्टार्च उत्पादन तक में काम आता है. यही वजह है कि बाजार में मक्के की कीमत और मांग दोनों बढ़ रही हैं. वर्तमान में मक्का की औसत कीमत 1,800 से 2,200 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन अच्छी किस्म और सही उत्पादन तकनीक अपनाने पर यह 2,500 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक भी मिल सकता है.
खेत की तैयारी से होती है अच्छी फसल की शुरुआत
मक्का की खेती की सफलता खेत की सही तैयारी से शुरू होती है. इसके लिए खेत को गहराई से जोतना जरूरी है ताकि मिट्टी में नमी और पोषक तत्व सही ढंग से मिल सकें. मोल्डबोर्ड हल और फिर रोटावेटर की सहायता से मिट्टी को भुरभुरी किया जाता है. इसके बाद गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट मिलाई जाती है ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे. खेत का समतल और जल निकासी युक्त होना जरूरी है, क्योंकि मक्का अधिक पानी सहन नहीं कर पाता.
बीज का चुनाव और उपचार करता है फर्क
मक्के की अच्छी पैदावार के लिए हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है. बाजार में उपलब्ध DHM 117, HQPM 1, Bio 9637 जैसी किस्में अधिक उपज देने के लिए जानी जाती हैं. बीजों को बुवाई से पहले थायरम और कार्बेन्डाजिम जैसे कवकनाशकों से उपचारित करना चाहिए. इससे बीज फफूंद, कीट और मिट्टी में मौजूद बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं और अंकुरण की दर भी बेहतर होती है.
वैज्ञानिक विधि से बुवाई में बढ़ता है उत्पादन
मक्का की बुवाई के लिए पंक्तियों के बीच पर्याप्त दूरी होना जरूरी है ताकि पौधे को प्रकाश, हवा और पोषक तत्व सही मात्रा में मिल सकें. बेड बनाकर लाइन बुवाई करें और बीजों को 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई में डालें. पौधों के बीच कम से कम 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखें और पंक्तियों के बीच 60 से 75 सेंटीमीटर का अंतर होना चाहिए. इससे फसल की वृद्धि अच्छी होती है और सिंचाई व खाद देने में भी आसानी रहती है.
समय पर सिंचाई और संतुलित खाद का महत्व
मक्का की फसल को उसके विकास के विभिन्न चरणों में समय पर पानी मिलना बहुत जरूरी होता है. खासकर अंकुरण, फूल आने और दाने भरने के समय सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है. यदि बारिश नहीं हो रही हो तो हर 8 से 10 दिन में सिंचाई करें. इसके साथ ही फसल को पोषण देने के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा देना जरूरी है. सही समय पर दी गई खाद मक्के की बालियों को भरपूर और दानों को मजबूत बनाती है.
कीट और रोग नियंत्रण से बचेगा नुकसान
मक्का की खेती में कई बार फॉल आर्मी वॉर्म और तना छेदक जैसे कीट हमला कर सकते हैं. इनसे बचने के लिए खेत की निगरानी करते रहना जरूरी है. कीट दिखने पर वैज्ञानिक तरीके से कीटनाशकों का छिड़काव करें. साथ ही पत्तियों पर फफूंदी या अन्य रोग दिखें तो फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग करें. स्वस्थ पौधे ही अच्छी उपज दे सकते हैं, इसलिए हर चरण पर सतर्क रहना जरूरी है.
कटाई के बाद भी होती है कमाई की तैयारी
जब मक्के के पौधे सूखने लगें और बालियां पक जाएं, तब फसल कटाई के लिए तैयार होती है. कटाई के बाद मक्के को अच्छी तरह सुखाएं ताकि उसकी नमी 12 से 14 प्रतिशत तक आ जाए. इससे भंडारण में नुकसान नहीं होता. एक हेक्टेयर भूमि से अच्छी तकनीक अपनाकर 50 से 60 क्विंटल तक मक्का प्राप्त किया जा सकता है. इसकी बिक्री से किसान 1.5 लाख रुपये से 1.8 लाख रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं, जबकि कुल लागत 50,000 से 60,000 रुपये तक आती है. यानी मेहनत का मुनाफा लगभग दोगुना.