मूंगफली की फसल पर ‘ग्रीन ब्रेडेड’ बीमारी का खतरा, बचाव के लिए करें ये उपाय

यह फफूंद मूंगफली में अफ्लाटॉक्सिन नामक खतरनाक जहर पैदा करती है, जो इंसानों और जानवरों दोनों के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है. यह समस्या खासकर गर्म और आर्द्र (नमी वाले) मौसम में अधिक उभरती है.

नई दिल्ली | Updated On: 21 Jul, 2025 | 04:21 PM

मूंगफली सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि पोषण से भरपूर फसल भी है, जिसे भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर उगाया और खाया जाता है. लेकिन मूंगफली की खेती में एक खामोश दुश्मन है-हरी फफूंद की बीमारी, जिसे वैज्ञानिक भाषा में एस्परजिलस फ्लेवस संक्रमण कहा जाता है. यह फफूंद मूंगफली में अफ्लाटॉक्सिन नामक खतरनाक जहर पैदा करती है, जो इंसानों और जानवरों दोनों के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है. यह समस्या खासकर गर्म और आर्द्र (नमी वाले) मौसम में अधिक उभरती है. आइए जानते हैं इस बीमारी से कैसे बचाव करें, ताकि मूंगफली की खेती सुरक्षित, स्वस्थ और लाभदायक बनी रहे.

हरी फफूंद क्या है और कैसे फैलती है?

यह एक प्रकार की जहरीली फफूंद होती है जो जमीन से सटी फसलों, खासकर मूंगफली में आसानी से पनपती है. जब मौसम गर्म और नम होता है, तब यह फफूंद तेजी से फैलती है और मूंगफली के अंदर अफ्लाटॉक्सिन नाम का जहर बना देती है. इस जहर की वजह से मूंगफली खाने लायक नहीं रहती, और इसका निर्यात भी रोका जा सकता है.

बचाव के आसान और कारगर उपाय:

1. फसल चक्र अपनाएं

हर साल एक ही खेत में मूंगफली उगाने से फफूंद के बीजाणु मिट्टी में बढ़ जाते हैं. इसलिए मूंगफली के बाद खेत में गेहूं, मक्का या अन्य दलहन फसलें लगाना चाहिए. इससे मिट्टी में फफूंद की मात्रा कम होती है और बीमारी की संभावना घटती है.

2. सिंचाई और निकासी का सही प्रबंधन

अगर खेत में ज्यादा नमी या पानी भरा रहता है तो फफूंद तेजी से फैलती है. वहीं सूखा खेत भी पौधे को कमजोर करता है. इसलिए जरूरी है कि सिंचाई संतुलित हो और खेत में पानी का सही निकास बना रहे.

3. समय पर कटाई करें

अगर मूंगफली की कटाई देर से होती है तो फसल ज्यादा समय तक नमी के संपर्क में रहती है, जिससे फफूंद का खतरा बढ़ जाता है. फसल की समय-समय पर जांच कर यह तय करें कि कब मूंगफली की खुदाई की जानी चाहिए.

4. नियमित निगरानी करें

खेत की निगरानी करते रहें. अगर पौधों में पीलापन, मुरझाना या फफूंदनुमा परत दिखे, तो तुरंत कार्रवाई करें. रोगग्रस्त पौधों को हटा दें और जरूरत पड़ने पर फफूंदनाशक दवाएं छिड़कें.

5. जैविक और रासायनिक उपाय अपनाएं

कुछ प्रमाणित फफूंदनाशक दवाओं का सीमित और सतर्क उपयोग फसल को बचाने में मदद करता है. इसके अलावा, जैविक उपाय जैसे लाभकारी सूक्ष्म जीवों (बायोफंगस) का उपयोग भी कारगर हो सकता है, जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते.

Published: 21 Jul, 2025 | 04:12 PM