बेमौसम बारिश की मार से उबर नहीं पाए गुजरात के किसान, रबी फसलों की बुवाई में बड़ी गिरावट

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आने वाले हफ्तों में मौसम सामान्य रहा और किसानों को समय पर संसाधन मिले, तो रबी सीजन कुछ हद तक संभल सकता है. हालांकि जलवायु परिवर्तन और बेमौसम बारिश जैसी चुनौतियां अब खेती की स्थायी सच्चाई बनती जा रही हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 20 Dec, 2025 | 09:15 AM

Gujarat Rabi Sowing: खरीफ सीजन की बेमौसम बारिश ने गुजरात के किसानों की मेहनत पर जो चोट की थी, उसका दर्द अब भी खेतों में साफ दिखाई दे रहा है. बारिश थम जरूर गई है, लेकिन उसका असर अभी खत्म नहीं हुआ है. यही वजह है कि इस बार रबी सीजन की शुरुआत उम्मीद के मुताबिक नहीं हो पाई. किसान जहां एक ओर पिछली फसल के नुकसान से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नई बुवाई को लेकर असमंजस और चिंता का माहौल बना हुआ है. सरकार के ताजा आंकड़े भी यही कहानी बयान कर रहे हैं कि गुजरात में रबी की रफ्तार अब तक धीमी बनी हुई है.

तीन साल के औसत से काफी पीछे रबी बुवाई

राज्य सरकार के अनुसार 15 दिसंबर तक गुजरात में रबी फसलों की बुवाई करीब 37.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही हो पाई है. यह आंकड़ा देखने में पिछले साल के लगभग बराबर जरूर लगता है, लेकिन अगर पिछले तीन वर्षों के औसत से तुलना की जाए तो तस्वीर चिंताजनक नजर आती है. औसतन जहां हर साल करीब 46 लाख हेक्टेयर में रबी की बुवाई हो जाती थी, वहीं इस बार यह करीब 18.5 प्रतिशत कम रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि खरीफ में हुई बेमौसम बारिश ने मिट्टी की सेहत और किसानों की आर्थिक स्थिति, दोनों को कमजोर किया है, जिसका सीधा असर रबी पर पड़ा है.

गेहूं और चना सबसे ज्यादा प्रभावित

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, रबी सीजन की रीढ़ मानी जाने वाली गेहूं की खेती इस बार उम्मीद से काफी कम क्षेत्र में हुई है. अब तक गेहूं की बुवाई करीब 10.8 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि सामान्य तौर पर यह रकबा 12.5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा रहता है. इसी तरह चने की बुवाई में भी साफ गिरावट दिख रही है. राज्य में चना लगभग 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोया गया है, जो औसत से करीब 15 प्रतिशत कम है. कई किसान बताते हैं कि खरीफ में हुए नुकसान के बाद उनके पास न तो पर्याप्त पूंजी बची है और न ही जोखिम उठाने का हौसला.

नकदी फसलों पर भी मौसम की मार

अनाज ही नहीं, बल्कि नकदी फसलों पर भी मौसम का असर साफ नजर आ रहा है. गुजरात की पहचान माने जाने वाले जीरे की बुवाई इस बार औसत से काफी कम रही है. अब तक जीरा करीब 3.2 लाख हेक्टेयर में ही बोया गया है. इसी तरह सरसों का रकबा भी घटकर लगभग 2.6 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया है. किसानों का कहना है कि अनिश्चित मौसम और लागत बढ़ने के डर से वे नकदी फसलों में ज्यादा निवेश करने से बच रहे हैं.

राहत पैकेज से आई थोड़ी उम्मीद

हालांकि हालात पूरी तरह निराशाजनक नहीं हैं. राज्य सरकार का कहना है कि राहत पैकेजों के असर से धीरे-धीरे स्थिति में सुधार दिखने लगा है. कृषि मंत्री जीतू वाघाणी के मुताबिक बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों के लिए घोषित करीब 11 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज के बाद बुवाई में पिछले साल की तुलना में मामूली बढ़त दर्ज की गई है. सरकार ने यह भी भरोसा दिलाया है कि रबी सीजन में खाद की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी. डीएपी और यूरिया का पर्याप्त भंडार जारी किया गया है, ताकि किसान बिना रुकावट बुवाई कर सकें.

आगे की राह पर टिकी निगाहें

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आने वाले हफ्तों में मौसम सामान्य रहा और किसानों को समय पर संसाधन मिले, तो रबी सीजन कुछ हद तक संभल सकता है. हालांकि जलवायु परिवर्तन और बेमौसम बारिश जैसी चुनौतियां अब खेती की स्थायी सच्चाई बनती जा रही हैं. ऐसे में गुजरात के किसान और सरकार दोनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि किस तरह खेती को इन जोखिमों के बावजूद स्थिर और टिकाऊ बनाया जाए. फिलहाल, खेतों में बोए जा रहे बीजों के साथ-साथ किसानों की उम्मीदें भी आसमान की तरफ टिकी हुई हैं.

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