आजकल जब ज्यादातर वस्तुओं में मिलावट और केमिकल्स की भरमार है, ऐसे में लोग खाने-पीने की चीजों को लेकर ज्यादा जागरूक हो गए हैं. खासकर फल-सब्जियों में अब लोग जैविक खेती से हुई चीजों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. ऐसे में अगर बात करें फलों के राजा ‘आम’ की तो ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए आम की मांग तेजी से बढ़ रही है. इस बदलते दौर में अगर किसान पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती की तरफ रुख करें, तो उन्हें आम की बेहतर पैदावार के साथ-साथ बाजार में अच्छा दाम भी मिल सकता है. इसे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ती है, बल्कि कम लागत में ज्यादा मुनाफा भी होता है.
आम की ऑर्गेनिक खेती क्यों है बेस्ट
ऑर्गेनिक खेती आमों की बेहतर उपज के लिए इसलिए सबसे अच्छा विकल्प है क्योंकि यह मिट्टी की उर्वरता को प्राकृतिक तरीके से बनाए रखती है और पेड़ों को लंबे समय तक स्वस्थ रखती है. रासायनिक खाद और कीटनाशकों की बजाय गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नीम का तेल, और अन्य जैविक उपायों से पोषण और सुरक्षा मिलती है, जिससे आम के पेड़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इससे न सिर्फ आमों का स्वाद और गुणवत्ता बेहतर होती है, बल्कि उत्पादन भी स्थिर और लंबे समय तक बना रहता है.
वहीं अगर बात किसानों की तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि ऑर्गेनिक आमों की मांग देश-विदेश के प्रीमियम बाजारों में बहुत अधिक होती है. ऑर्गेनिक आम पारंपरिक आमों के मुकाबले महंगे बिकते हैं, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है. साथ ही, जैविक खेती से जुड़ने पर किसानों को सरकारी योजनाओं के तहत सब्सिडी, प्रशिक्षण और जैविक प्रमाणन की सुविधा भी मिलती है.
क्या है ऑर्गेनिक खेती ?
ऑर्गेनिक खेती का मतलब है बिना किसी केमिकल खाद, कीटनाशक या जेनेटिकली मोडिफाइड बीज के खेती करना. जिसमें सिर्फ प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नीम का तेल, लहसुन का स्प्रे और दूसरे जैविक उपाय. इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पेड़ लंबे समय तक फलदार रहते हैं.
कैसे की जाती है ऑर्गेनिक आम की खेती?
ऑर्गेनिक खेती में सबसे जरूरी है मिट्टी को जिंदा और उपजाऊ बनाए रखना. इसके लिए किसान गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और पत्तियों का उपयोग करते हैं. समय-समय पर मिट्टी की जांच करके पता लगाया जाता है कि कौन से पोषक तत्वों की जरूरत है. सिंथेटिक खाद की जगह ऑर्गेनिक आम की खेती में कम्पोस्ट, सड़ी हुई खाद, जैविक उर्वरक और पौधों से बनी खाद दी जाती है, जो धीरे-धीरे पोषण देती हैं और पेड़ लंबे समय तक हरे-भरे रहते हैं.
- इसके साथ ही पेड़ों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए किसान ‘एकीकृत कीट प्रबंधन’ (Integrated Pest Management ) अपनाते हैं. जिसमें लेडीबग्स जैसे लाभकारी कीटों को बढ़ावा देना, नीम का तेल या लहसुन का स्प्रे करना और जाल या ट्रैप का उपयोग करना शामिल है.
- खरपतवार यानी अनचाही घासों से छुटकारा पाने के लिए किसान मल्चिंग (पुआल या लकड़ी की बुरादे से जमीन ढकना), हाथ से निराई और जैविक हर्बीसाइड्स का इस्तेमाल करते हैं. जिससे नमी भी बनी रहती है और तापमान भी नियंत्रित रहता हैं.
- अब बात आती है सिंचाईं की तो ड्रिप इरिगेशन और माइक्रो स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक विधियों का इस्तेमाल कर पेड़ों को जरूरत भर पानी जड़ तक पहुंचाया जाता है. और नियमित छंटाई और प्रशिक्षण की से पेड़ों में हवा और धूप अच्छी तरह मिलती है, जिससे फसल की गुणवत्ता में सुधार आती है.