खेतों में हलचल मचाने वाला ड्रोन अब केवल बीज बोने या कीटनाशक छिड़कने का साधन नहीं है. यह तकनीक अब खेतों से लेकर युद्ध के मैदान तक अपनी उड़ान भर चुकी है. अगर आपको लगता है कि ड्रोन सिर्फ एक तकनीकी खिलौना है तो ऐसा सोचना गलत होगा. ड्रोन ने अपनी पहचान एक कृषि सहायक के रूप में तो बनाई ही है, साथ ही यह अब आधुनिक युद्धों में एक घातक हथियार के रूप में भी उभर चुका है.
जहां एक ओर किसान इसका उपयोग फसलों की निगरानी, बीज बुवाई और कीटनाशक छिड़काव के लिए कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह दुश्मन के ठिकानों की पहचान, मिनी मिसाइल हमलों और मशीनगनों से फायरिंग में भी सक्षम बन चुका है. यह दोहरा प्रयोग न सिर्फ ड्रोन की बहुआयामी क्षमता को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि तकनीक का उपयोग किस दिशा में किया जाए, यह हमारे इरादों पर निर्भर करता है.
सीमाओं पर मंडराता खतरा
खेती के साथ-साथ ड्रोन अब सीमाओं की निगरानी और युद्ध में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के दौरान पाकिस्तान ने तुर्की निर्मित ‘Assigard Songar’ ड्रोन का इस्तेमाल किया. यह ड्रोन आकार में भले ही छोटा हो, लेकिन इसकी मारक क्षमता गंभीर है. इसमें मशीनगन, मिनी मिसाइल, डे-नाइट कैमरे, GPS नेविगेशन और गन स्टेबलाइजर जैसे आधुनिक फीचर्स लगे हैं. इतना ही नहीं यह 10 किलोमीटर तक की रेंज में उड़ान भर सकता है और दुश्मन के ठिकानों को बेहद सटीकता से निशाना बना सकता है. पाकिस्तान की ओर से 300 से 400 ड्रोन की तैनाती की गई, जिनमें से कई को भारत की सतर्कता और तकनीकी प्रतिक्रिया से मार गिराया गया. इससे स्पष्ट होता है कि ड्रोन अब युद्ध की रणनीति में अहम भूमिका निभा रहे हैं. फसल की निगरानी से बीज बुवाई तक.
खेती में बढ़ती उपयोगिता
भारत समेत कई देशों में ड्रोन अब आधुनिक कृषि का अहम हिस्सा बन चुके हैं. इनसे खेतों की उच्च-रिजॉल्यूशन तस्वीरें ली जा सकती हैं, जिससे किसान यह जान सकते हैं कि कहां पानी की कमी है, कहां रोग या कीट का हमला हुआ है और किस हिस्से में फसल की वृद्धि बेहतर हो रही है. इससे उन्हें समय पर और सटीक फैसले लेने में मदद मिलती है. इसके अलावा, ड्रोन की मदद से बीज बोना भी अब आसान हो गया है, खासकर उन इलाकों में जहां ट्रैक्टर या इंसानी पहुंच संभव नहीं होती. इससे समय की बचत होती है और खेती की उत्पादकता में भी इजाफा होता है.
मिनटों में खाद और कीटनाशक का छिड़काव
जहां पहले किसान पीठ पर टंकी उठाकर और पगडंडियों से होते हुए खेतों में रसायन छिड़कते थे, वहीं अब यह काम ड्रोन मिनटों में कर देता है. इससे न सिर्फ मेहनत कम होती है, बल्कि छिड़काव भी संतुलित होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है और रसायनों की बर्बादी भी घटती है.
एक तकनीक, दो इस्तेमाल
ड्रोन अब एक ऐसी तकनीक बन चुकी है, जो दो अलग-अलग मोर्चों पर कार्यरत है. एक ओर यह कृषि के क्षेत्र में फसल उगाने के लिए सहायक बन रहा है तो दूसरी ओर यह रक्षा के मोर्चे पर दुश्मन के ठिकानों को निशाना बना रहा है. यह साबित करता है कि तकनीक का उपयोग हमेशा इसके उद्देश्य पर निर्भर करता है. सरकारें अब ड्रोन को कृषि में मदद के रूप में बढ़ावा दे रही हैं, जबकि रक्षा क्षेत्र में इसके नए-नए उपयोगों की खोज की जा रही है. यह तकनीकी विकास का सबसे बेहतरीन उदाहरण है, जो साबित करता है कि अगर हम किसी भी तकनीक को सही दिशा में इस्तेमाल करें तो वह हमारे लिए फायदे की चीज बन सकती है, चाहे वह खेतों में हो या युद्ध के मैदान में.