इस जंगली घास से घट सकती है धान की पैदावार, किसान उपचार के लिए करें इसका इस्तेमाल

हिमाचल प्रदेश में अल्टर्नांथेरा फिलोक्सेरोइडेस खरपतवार धान और मकई की फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है. कृषि विश्वविद्यालय ने विशेष हर्बीसाइड्स से नियंत्रण के उपाय सुझाए हैं. किसानों को समय पर कार्रवाई करने और कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेने की जरूरत है.

नोएडा | Updated On: 25 Jul, 2025 | 07:41 PM

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ जिले में खरीफ फसलों में ‘अल्टर्नांथेरा फिलोक्सेरोइडेस’ नाम का खरपतवार तेजी से फैल रहा है. इससे फसलों को नुकसान पहुंच रहा है. यदि समय रहते इसका इलाज नहीं किया गया, तो उत्पाद में भारी गिरावट भी आ सकती है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सावधानी बरते की सलाह दी है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने तेजी से फैल रहे अल्टर्नांथेरा फिलोक्सेरोइडेस के खतरे का अलर्ट जारी किया है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘नाली घास’ या ‘डोढु घास’ कहा जाता हैं. यह जंगली घास हिमाचल प्रदेश के जल और जमीन दोनों पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस खरीफ सीजन में यह जंगली घास खासकर धान के खेतों में बड़ी समस्या बन गई है. इसके अलावा मक्का, सोयाबीन और सब्जियों की फसलों में भी इसके फैलने की खबरें आई हैं.

फसल को पहुंचता है नुकसान

विशेषज्ञों के अनुसार, ‘अल्टर्नांथेरा फिलोक्सेरोइडेस’ की तेज बढ़वार, कम समय में परिपक्व होना और कई पर्यावरणीय परिस्थितियों में जल्दी ढल जाने की क्षमता इसे तेजी से फैलने में मदद करती है. यह स्थानीय पौधों और फसलों से पोषक तत्व, पानी, सूरज की रोशनी और जगह के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा करता है. इसकी एलिलोपैथिक (रासायनिक) गुणों के कारण फसलों की बढ़वार दब जाती है, जिससे उपज में कमी आती है.

इस तरह करें हर्बीसाइड्स का इस्तेमाल

इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए विश्वविद्यालय ने फसल के अनुसार खास नियंत्रण उपाय बताए हैं. धान और मकई के खेतों में 2,4-D एथिल एस्टर या सोडियम सॉल्ट (1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर), मेट्सल्फ्यूरॉन मेथिल (4-6 ग्राम प्रति हेक्टेयर), और कारफेंट्राजोन (25 ग्राम प्रति हेक्टेयर) जैसे विशेष हर्बीसाइड्स का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है. बिना फसल वाले या खाली पड़े खेतों में ग्लाइफोसेट (1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर) खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रभावी साबित हुआ है.

किसान ले सकते हैं  वैज्ञानिकों से सलाह

कुलपति डॉ. नवीन कुमार ने समय पर और जल्दी कदम उठाने की अहमियत बताई. उन्होंने कहा है कि किसानों को फसल की उपज बचाने और इस खरपतवार के फैलाव को रोकने के लिए इन नियंत्रण उपायों को अपनाना चाहिए. उन्होंने खेती से जुड़े लोगों से सलाह लेने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) और कृषि विस्तार अधिकारियों से संपर्क करने की भी सलाह दी. विश्वविद्यालय ने इस खरपतवार को रोकने और क्षेत्र की कृषि उत्पादकता को सुरक्षित रखने के लिए सभी के समन्वित प्रयासों की जरूरत पर जोर दिया है.

Published: 25 Jul, 2025 | 08:30 PM