उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पलायन और जमीन के बंजर होने की समस्या से निपटने के लिए अल्मोड़ा जिले के हवालबाग विकासखंड में एक औषधीय पौधों की खेती से जुड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. यह पहल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) और गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (GBPNIHE) की साझेदारी में चलाई जा रही है. इसका मकसद छोड़ दी गई कृषि भूमि का बेहतर उपयोग करना और ग्रामीणों को रोजगार देना है.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट के तहत खुट-धमास और आस-पास की छह ग्राम पंचायतों की 5.5 हेक्टेयर बेकार पड़ी जमीन पर रोजमैरी, कैमोमाइल, तीमूर (जंथोक्सायलम), तेजपत्ता और कपूर कचरी जैसे औषधीय और व्यापारिक पौधे उगाए जा रहे हैं. इस योजना का बजट 43.22 लाख रुपये है और इससे करीब 400 ग्रामीण परिवारों को फायदा मिलने की उम्मीद है, जिनमें से 268 परिवार स्वयं सहायता समूहों से जुड़े हैं. इस प्रोजेक्ट से करीब 15,500 लोगों को रोजगार मिलेगा.
इस वजह से गांवों से हुआ पलायन
पिछले करीब 20 वर्षों में पहाड़ी इलाकों में रोजगार की अनिश्चितता और खेती से कम होती आमदनी की वजह से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है. इसके चलते बड़ी मात्रा में खेती योग्य जमीन खाली और बंजर पड़ी है. रिसर्च में यह साफ तौर पर सामने आया है कि लोगों का पलायन और खेतों को छोड़ना आपस में जुड़ा हुआ है. GBPNIHE के डॉ. आशीष पांडे ने कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि इस इलाके की मिट्टी औषधीय पौधों के लिए उपयुक्त है. किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और उन्हें अच्छी क्वालिटी के पौधों की नर्सरी सामग्री भी उपलब्ध कराई जा रही है.
इस प्रोजेक्ट से मिलेगा रोजगार
इस प्रोजेक्ट के दौरान किसानों को लगातार तकनीकी मदद मिलती रहेगी. यह योजना सिर्फ ग्रामीण बेरोजगारी को कम करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मकसद जलवायु के अनुकूल खेती को बढ़ावा देना भी है. अधिकारियों ने बताया कि पारंपरिक फसलों की जगह अब ऐसी औषधीय फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिनकी बाजार में अच्छी मांग है और जो जंगली जानवरों से कम प्रभावित होती हैं. यह तरीका ज्यादा व्यावहारिक और टिकाऊ माना जा रहा है.
स्थानीय युवाओं को सशक्त बनाना उदेश्य
विकास खंड के एक अधिकारी ने कहा कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ खेती नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य पलायन रोकना, स्थानीय युवाओं को सशक्त बनाना और गांवों की अर्थव्यवस्था को दोबारा जोर देना है. वो भी प्राकृतिक और मानव संसाधनों के स्मार्ट इस्तेमाल से.स्थानीय प्रशासन की योजना है कि इस मॉडल को राज्य के दूसरे पहाड़ी इलाकों में भी लागू किया जाए, ताकि पलायन से छोड़ी गई जमीनों का फिर से उपयोग हो सके और ग्रामीण समुदायों में नई ऊर्जा आ सके.