धान की नर्सरी तैयार करने से पहले क्यों जरूरी है भूमि शोधन? जानें इसके फायदे और मायने

गेहूं की कटाई के बाद अब किसान खरीफ धान की नर्सरी की तैयारी में जुटे हैं. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, नर्सरी से पहले भूमि शोधन आवश्यक है जिससे पौधे स्वस्थ होते हैं और रोग भी नहीं फैलते हैं.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 3 May, 2025 | 05:00 PM

बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में गेहूं की कटाई पूरी हो गई है. अब किसान खरीफ धान की बुवाई करने के लिए खेत को तैयार करने में लग गए हैं. कई किसानों ने नर्सरी तैयार करने के लिए खेत में बीज डालने शुरू कर दिए हैं. लेकिन धान की नर्सरी तैयार करने से पहले किसानों को कुछ जरूरी बातें जाननी चाहिए. नहीं तो पैदावार प्रभावित हो सकती है और खेती में लागत भी बढ़ जाएगी.

कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, धान की नर्सरी तैयार करने से पहले किसानों को भूमि शोधन जरूर करना चाहिए. इससे पैदावार अच्छी होगी और इनपुट लागत भी कम हो जाती है. हालांकि, किसानों को भूमि का शोधन जैविक विधि से ही करना चाहिए. इसके लिए जैविक उत्पादों का ही इस्तेमाल करें. क्योंकि शोधित भूमि में नर्सरी तैयार करने से पौधे हेल्दी होते हैं. ऐसे में धान की रोपाई करने पर फसल में कीट नहीं लगेंगे और पैदावार भी अच्छी होगी.

बीज एक साथ ही अंकुरित होंगे

वहीं, भूमि शोधन करने से बीजों के अंकुरण अच्छा होता है. सभी बीज एक साथ ही अंकुरित होते हैं. अगर बीज में कोई बीमारी पहले से ही, तो भूमि शोधन से उसे फैलने से रोका जा सकता है. यानि भूमि शोधन करने से बीज में मौजूद रोग पूरी फसल में नहीं फैलते हैं. ऐसे में पैदावार में बढ़ोतरी होती है और किसानों की कमाई भी बढ़ जाती है.

ऐसे करें भूमी शोध

भूमि शोधन करने के लिए 2.5 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर को 35 किलो सड़ी-गली गोबर की खाद में अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस मिश्रण को एक हफ्ते तक जूट की बोरी से ढककर रखें, ताकि ट्राइकोडर्मा पूरे खाद में अच्छे से फैल जाए. इसके बाद, बुवाई से 15 दिन पहले इस तैयार खाद को नम खेत में छिड़ककर मिट्टी में मिला दें. इससे मिट्टी में मौजूद हानिकारक फफूंद नष्ट हो जाएंगे और कार्बनिक पदार्थ जल्दी कम्पोस्ट में बदल जाएंगे.

नर्सरी के लिए कैसे तयार करें खेत

नर्सरी तैयार करने के लिए किसान सबसे पहले खेती की अच्छी तरह से जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बना लें. इसके बाद डिस्क हैरो से जुताई करें और फिर कल्टीवेटर चलाएं. फिर करीब एक मीटर चौड़ाई की क्यारियां बनाएं. किसान अपनी सुविधा के अनुसार क्यारियों की लंबाई रखें. क्यारियां बनाने से पानी की बचत होती है और खरपतवार का नियंत्रण में भी आसानी से होता है. किसान क्यारी की मेड़ पर बैठकर खरपतवार निकाल सकते हैं और इससे पौधे नष्ट नहीं होंगे.

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Published: 3 May, 2025 | 03:44 PM

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