लगातार गेहूं-चावल उगाने से खेत बर्बाद, मिट्टी सुधार के लिए महेंद्र ने अपनाया ये तरीका तो नतीजों ने चौंकाया
किसान महेंद्र कुमार सिंह में कहा कि वह 25 एकड़ जमीन पर खेती करके अपने 11 लोगों के परिवार का भरण-पोषण करते हैं. सालों तक उन्होंने धान-गेहूं की फसल का एक ही चक्र अपनाया और ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक खादों पर निर्भर रहे. इसलिए उनके खेत की मिट्टी खराब हो गई.
कृषि वैज्ञानिक फसल विविधीकरण पर जोर देते हैं और इसकी वजह है मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर बनाए रखना. ताकि उपज प्रभावित न हो और किसान की लागत कम बनाई रखी जा सके. लेकिन, लगातार एक ही तरह की फसलें करते रहने से खेत की मिट्टी खराब हो जाती है और पैदावार घट जाती है. बिहार के किसान महेंद्र कुमार ने कई साल तक लगातार गेहूं और धान की खेती की, जिससे उनका खेत खराब हो गया. लेकिन, उन्होंने मृदा स्वास्थ्य योजना के जरिए बताए गए वैज्ञानिकों का पालन कर अपनी खेत की मिट्टी को सुधारने में कामयाबी हासिल की और फसलों की पैदावार भी बढ़ा ली.
खेत मिट्टी सुधार की दिशा में यह सफल किसान की कहानी बताती है कि किस तरह से मौजूदा समय में बड़ी संख्या में किसान अंधाधुंध केमिकल फर्टिलाइजर, खतरनाक पेस्टीसाइड और रसायनों का इस्तेमाल कर अपनी खेती को खराब कर रहे हैं. लेकिन, सरकार के प्रयासों से खराब मिट्टी को सुधारकर उपजाऊ बनाया जा रहा है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार इसका जीता जागता उदहारण बिहार के नालंदा जिले के शांत मानपुर गांव के किसान महेंद्र कुमार सिंह हैं.
कई साल तक 25 एकड़ खेती में गेहूं-धान उगाने से मिट्टी खराब हुई
महेंद्र कुमार सिंह में कहा कि वह 25 एकड़ जमीन पर खेती करके अपने 11 लोगों के परिवार का भरण-पोषण करते हैं. सालों तक उन्होंने चावल-गेहूं की फसल का एक ही चक्र अपनाया और ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक खादों पर ज्यादा निर्भर रहे. लेकिन, सतह के नीचे खेत की मिट्टी कमजोर होती जा रही थी और साथ ही उनकी मानसिक शांति भी. बढ़ती लागत, घटती उत्पादकता और मृदा स्वास्थ्य की चिंताएं उन पर भारी पड़ने लगीं.
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खेती की चिंता ने मृदा स्वास्थ्य योजना तक पहुंचाया
महेंद्र ने कहा कि मैं हमेशा खेती की बढ़ती लागत, इनपुट के बढ़ते इस्तेमाल और अपनी मिट्टी को हो रहे धीरे-धीरे नुकसान को लेकर चिंतित रहता था. उनके जीवन में अहम मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात अमावां पंचायत में तैनात कृषि समन्वयक अमित रंजन पटेल से हुई. फसल की बढ़ती लागत और घटती उपज के बारे में उनकी चिंताओं को सुनने के बाद अमित रंजन ने एक आसान लेकिन कारगर सुझाव दिया कि वह मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत अपनी मिट्टी की जांच करवा लें.
जांच में मिट्टी पोषक तत्वों की भारी कमी का पता चला
किसान महेंद्र ने कहा कि वह सहमत तो हुए, लेकिन उन्हें यकीन नहीं था कि इसका कुछ फायदा होगा. उनकी एक हेक्टेयर जमीन के सैंपल लिए गए और जब परीक्षण के नतीजे आए तो पता चला कि मिट्टी खराब हो चुकी है और उसमें कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फेट और बोरॉन जैसे जरूरी पोषक तत्वों की कमी है.
1750 किलो कंपोस्ट और गोबर की खाद डालने की सलाह मिली
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत सुझाए गए समाधान में उन्हें प्रति एकड़ 1750 किलोग्राम कंपोस्ट और गोबर की खाद डालने को कहा गया. इसके साथ ही उर्वरता बढ़ाने के लिए डीएपी और यूरिया की तय मात्रा भी डालने की सलाह दी गई. उन्होंने कहा कि शुरू में मैं झिझक रहा था. इतनी ज्यादा जैविक सामग्री का इस्तेमाल करना जोखिम भरा लग रहा था.
फसल पैदावार 16 फीसदी बढ़ी तो चौंक गए महेंद्र
उन्होंने विज्ञान पर भरोसा किया और मृदा स्वास्थ्य कार्ड में बताए गए सुझावों पर अमल किया. जब फसल का समय आया तो नतीजे देखकर वे हैरान रह गए. सैंपलिंग वाले खेत में प्रति हेक्टेयर 32 क्विंटल उपज हुई जो उनके सामान्य खेत से 16 फीसदी ज्यादा थी. पहले उन्हें केवल 27.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज ही मिल रही थी.
अब हर किसान को मिट्टी की जांच कराने की सलाह दे रहे महेंद्र
किसान महेंद्र अब मिट्टी परीक्षण के समर्थक हैं और हर किसान को अपने खेत की मिट्टी की जांच की सलाह जरूर देते हैं. वे पूरे विश्वास के साथ कहते हैं आने वाली पीढ़ियों के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखना जरूरी है. उनकी यह सफलता दर्शाती है कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना एक-एक खेत में भारतीय कृषि को बदल रही है और खराब हो रही मिट्टी में सुधार ला रही है.