देहरादून से दुबई रवाना हुई गढ़वाली सेब की पहली खेप, उत्तराखंड के किसानों को मिलेगा बड़ा फायदा

गढ़वाली सेब अपनी मीठास, कुरकुरी बनावट और प्राकृतिक खुशबू के लिए मशहूर हैं. यहां की ठंडी जलवायु और पहाड़ी मिट्टी इन्हें खास बनाती है. यही वजह है कि इनका स्वाद और गुणवत्ता अन्य सेबों से अलग मानी जाती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 22 Aug, 2025 | 08:03 AM

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की वादियों में उगने वाला सेब अब सीमाओं को लांघकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बना रहा है. पहली बार गढ़वाली सेब की खेप देहरादून से दुबई भेजी गई है. यह कदम न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करेगा बल्कि उत्तराखंड के कृषि उत्पादों को वैश्विक स्तर पर ब्रांडिंग भी दिलाएगा.

सेब की खासियत

गढ़वाली सेब अपनी मीठास, कुरकुरी बनावट और प्राकृतिक खुशबू के लिए मशहूर हैं. यहां की ठंडी जलवायु और पहाड़ी मिट्टी इन्हें खास बनाती है. यही वजह है कि इनका स्वाद और गुणवत्ता अन्य सेबों से अलग मानी जाती है. हालांकि, लंबे समय से किसान इनका लाभ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं उठा पा रहे थे.

पहली खेप की शुरुआत

कॉमर्स सेक्रेटरी सुनील बर्थवाल ने देहरादून से दुबई के लिए 1.2 टन गढ़वाली सेब की पहली ट्रायल शिपमेंट को हरी झंडी दिखाई. इस शिपमेंट को एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के सहयोग से संभव बनाया गया. इस प्रयास से यह समझा जा सकेगा कि कैसे सेब की क्वालिटी को बनाए रखते हुए विदेश तक पहुंचाया जाए.

किसानों की चुनौतियां

हालांकि गढ़वाली सेब की मांग विदेशों में है, लेकिन किसानों को कई चुनौतियों से जूझना पड़ता है:

  • कोल्ड स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन की कमी
  • पोस्ट-हार्वेस्ट हैंडलिंग की दिक्कतें
  • सीमित निर्यात नेटवर्क
  • अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों की जानकारी का अभाव

इन कारणों से किसानों को अक्सर स्थानीय बाजार तक ही सीमित रहना पड़ता था.

APEDA का सहयोग

APEDA ने किसानों को गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज (GAPs) अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया है, ताकि उनके उत्पाद अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों पर खरे उतरें. साथ ही, पोस्ट-हार्वेस्ट तकनीकों पर भी जोर दिया जा रहा है ताकि सेब की ताजगी बनी रहे.

इसके अलावा, APEDA देहरादून में एक रीजनल ऑफिस खोलने जा रहा है. यह दफ्तर किसानों और निर्यातकों को पास से मार्गदर्शन देगा और उनके उत्पादों को सही बाजार तक पहुंचाने में मदद करेगा.

ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन और जीआई टैगिंग

गढ़वाली सेब और उत्तराखंड की अन्य उपज को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन और जीआई (Geographical Indication) टैगिंग देने की प्रक्रिया शुरू की गई है. इससे इन उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय पहचान और ट्रेसबिलिटी बढ़ेगी. खासकर यूरोप और खाड़ी देशों जैसे बड़े बाजारों में इसकी अहमियत ज्यादा होगी.

सरकार की योजनाएं

सरकार का लक्ष्य सिर्फ सेब तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे कृषि और प्रोसेस्ड फूड सेक्टर को विदेशों में मजबूत पहचान दिलाना है. कॉमर्स सेक्रेटरी के मुताबिक, केंद्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा, वैल्यू एडिशन वाले प्रोडक्ट्स पर फोकस, उच्च मूल्य वाले विदेशी बाजारों तक पहुंच जैसे कदम उठा रही है.

किसानों का भविष्य

गढ़वाली सेब की पहली खेप विदेश भेजे जाने के बाद किसानों में उत्साह है. उनका मानना है कि अगर यह पहल सफल रही तो आने वाले समय में न सिर्फ सेब, बल्कि कीवी, चौलाई, लाल चावल और अन्य पहाड़ी उत्पाद भी विदेश भेजे जा सकते हैं. इससे पहाड़ों के किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और पलायन की समस्या भी घट सकती है.

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