Pea Farming : उत्तराखंड की ठंडी घाटियों में एक ऐसी फसल उगती है, जो सही समय पर बोई जाए तो किसान की तकदीर बदल सकती है. इस फसल का नाम मटर है. यह ऐसी मटर है, जिसकी मांग पहाड़ से लेकर बड़े शहरों तक में लगातार बढ़ रही है. ऐसे इन दिनों मटर के दाम आसमान छू रहे हैं. इस वजह से इसे हरे मोती भी कहा जाने लगा है. अगर किसान सही तकनीक और समय पर इसकी खेती करते हैं, तो पारंपरिक फसलों के मुकाबले कई गुना ज्यादा कमाई होगी.
अगेती मटर देती है सबसे ज्यादा फायदा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मटर की खेती में सबसे बड़ा फायदा अगेती बुआई से मिलता है. अक्टूबर-नवंबर के शुरुआती समय में बोई गई मटर बाजार में कम उपलब्ध होती है, इसलिए इसकी कीमत कई शहरों में 80 से 100 रुपए किलो तक मिलती है. अगेती और मध्यवर्गीय किस्में सही मौसम में बोई जाएं तो 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है. यह उपज पारंपरिक तरीकों की तुलना में बहुत अधिक होती है.
साल में दो बार खेती, दोगुनी कमाई
देहरादून और उसके आसपास के इलाके साल में दो बार मटर उगाने के लिए जाने जाते हैं. यहां मटर की एक फसल सितंबर में लगाई जाती है और दूसरी दिसंबर में. दो बार खेती होने से किसान सालभर कमाई कर लेते हैं. मटर की खेती में एक एकड़ पर लगभग 30,000 से 50,000 रुपए तक खर्च आता है, जिसमें बीज, मजदूरी, फसल कटाई और मंडी तक पहुंचाने का खर्च शामिल है. अगर मौसम साथ दे और किस्म अच्छी हो तो एक एकड़ में 80,000 से 1 लाख रुपए तक का शुद्ध मुनाफा मिल जाता है. कई किसान तो एक बीघा से ही 1 लाख रुपए तक की आमदनी कर लेते हैं. यह पूरी तरह किस्म, खेती के प्रबंधन और बाजार भाव पर निर्भर करता है.
पहाड़ी मटर की देशभर में भारी मांग
देहरादून की मटर अपनी मिठास, ताजगी और गुणवत्ता के लिए मशहूर है. यहां की स्थानीय मंडियों से रोजाना 700 से 800 क्विंटल मटर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कई बड़े राज्यों में भेजी जाती है. अगेती उपलब्धता के कारण पहाड़ी मटर शहरों के होटलों और रेस्तरांओं में भी खूब बिकती है. किसानों के लिए यह फसल लगातार नकदी का साधन बनती जा रही है. विशेषज्ञों के अनुसार, मटर को केवल मंडी में बेचना हमेशा लाभदायक नहीं होता. इसे प्रोसेस करके बेचना ज्यादा बेहतर कमाई देता है. फ्रोजन मटर बनाकर बेचने से इसका दाम और शेल्फ लाइफ दोनों बढ़ जाते हैं. कई किसान मटर को स्थानीय हाट-बाजारों या खेत से सीधे ग्राहकों को बेचकर भी अच्छी कीमत पा रहे हैं. इसके साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन, गोबर की खाद और फास्फोरस-पोटाश जैसे पोषक तत्वों के सही उपयोग से फसल की क्वालिटी और मात्रा दोनों में सुधार होता है.