Cardamom Farming : भारत में मसालों की रानी कही जाने वाली इलायची की खेती आज किसानों के लिए सोने की खदान साबित हो रही है. कम निवेश, लंबे समय तक मुनाफा और लगातार मांग इसे सबसे फायदे वाली नकदी फसल बनाती है. सरकार भी किसानों को सब्सिडी और तकनीकी मदद दे रही है. एक बार सही तकनीक और देखभाल के साथ रोपण करने पर किसान सालों तक स्थिर और अच्छी आमदनी पा सकते हैं.
इलायची की खेती क्यों है लाभदायक?
इलायची एक लाभदायक नकदी फसल है, जिसकी कीमत हमेशा उच्च रहती है. क्वालिटी के आधार पर इसका भाव 1,500 रुपये से 2,500 रुपये प्रति किलो तक हो सकता है. एक बार पौधे लगाने के बाद इसका जीवनकाल 10-15 साल होता है. शुरुआती 4-5 साल में ही किसान को अच्छा खासा मुनाफा मिल जाता है. घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग निरंतर बनी रहती है. इससे किसान को पैदावार के साथ-साथ स्थिर और लंबी अवधि की आय का मौका मिलता है. सही देखभाल और प्रबंधन से यह फसल निवेश के लिए बेहद फायदेमंद साबित होती है.
इलायची की खेती के लिए सही जलवायु और मिट्टी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इलायची की खेती गर्म क्षेत्रों में सबसे बेहतर होती है, जहां तापमान 10°C से 35°C और वार्षिक वर्षा 1500-4000 मिमी हो. इसके लिए मिट्टी लाल दोमट, लैटेराइट या काली होनी चाहिए, जिसमें पीएच 5-7.5 रहे. पौधों को पर्याप्त वृद्धि और स्वस्थ विकास के लिए 50-60 फीसदी छाया की आवश्यकता होती है. सही जलवायु और उपयुक्त मिट्टी मिलने पर यह फसल लंबे समय तक स्थिर और लाभकारी आमदनी देती है. किसान इससे कम निवेश में सालों तक नियमित आय प्राप्त कर सकते हैं, और अच्छी पैदावार के साथ घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में मुनाफा कमा सकते हैं.
रोपण और भूमि की तैयारी
इलायची की सफल खेती के लिए भूमि की तैयारी सबसे जरूरी है. खेत की गहरी जुताई करें, समतल करें और जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें. मिट्टी में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाएं. पौधारोपण कलम या प्रकंदों से करें, मानसून यानी जुलाई का समय सबसे उपयुक्त होता है. बड़ी किस्म के पौधों के लिए 2.5×2.0 मीटर और बौनी किस्म के लिए 2.0×1.5 मीटर की दूरी रखें. सही दूरी और रोपण तकनीक से पौधों का विकास बेहतर होता है और इलायची का उत्पादन व गुणवत्ता दोनों बढ़ती हैं.
सिंचाई और खाद-उर्वरक
इलायची की खेती में सिंचाई बहुत जरूरी है. शुष्क मौसम में कम से कम 15 दिन में एक बार पानी दें, जबकि मानसून में आवश्यकतानुसार करें. ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होती है और पौधों को पर्याप्त नमी मिलती है. पौधों के बेहतर विकास और उत्पादन के लिए जैविक और रासायनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग जरूरी है. गोबर की खाद 10-15 टन प्रति हेक्टेयर डालें और नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश भी मिलाएं. संतुलित पोषण से पौधों की ग्रोथ बेहतर होती है और मुनाफा बढ़ता है
फसल कटाई और बिक्री
इलायची 2-3 साल में तैयार होती है. कुछ किस्मों में 5-6 साल लग सकते हैं. फलियां पकने पर ही तोड़ी जाएं. 15-25 दिनों के अंतराल पर कटाई करें. कटाई के बाद धूप में या ड्रायर में सुखाया जाता है और गुणवत्ता के हिसाब से छांटा जाता है. इस प्रक्रिया से इलायची की कीमत और गुणवत्ता बनी रहती है, जिससे किसान को अधिक लाभ होता है.
मुनाफा और सरकार की मदद
एक हेक्टेयर से सालाना 400-500 किलोग्राम सूखी इलायची का उत्पादन हो सकता है. औसत मार्केट प्राइस 1,500 रुपये से 2,500 रुपये प्रति किलो होने पर सालाना 7.5-12.5 लाख रुपये की आमदनी. लागत घटाने के बाद शुद्ध लाभ 5-8 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर.
सरकारी सहायता:-
- मसाला बोर्ड (Spices Board) तकनीकी और आर्थिक मदद देता है.
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) रोपण सामग्री, सिंचाई और भंडारण पर सब्सिडी देता है.
- किसानों को राज्य बागवानी विभाग से आवेदन प्रक्रिया और ट्रेनिंग मिलती है.
- सरकारी मदद से किसान कम जोखिम में खेती शुरू कर सकते हैं और लंबे समय तक लाभ कमा सकते हैं.