भारत का मसाला उद्योग दुनिया भर में अपनी गुणवत्ता और स्वाद के लिए मशहूर है. खासतौर पर देगी मिर्च (पपरिका ओलियोरेसिन) का निर्यात भारत के लिए विदेशी मुद्रा कमाने का बड़ा जरिया है. लेकिन अब इस कारोबार पर अमेरिकी टैरिफ की वजह से एंटी-डंपिंग और काउंटरवेलिंग ड्यूटी (CVD) का खतरा गहराने लगा है. अगर यह ड्यूटी लगती है तो करीब 45 मिलियन डॉलर का व्यापार प्रभावित हो सकता है.
क्यों बढ़ी दिक्कतें?
दरअसल, अमेरिकी कंपनी Rezolex Ltd ने भारतीय पपरिका के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है. कंपनी का आरोप है कि भारत से आने वाला यह उत्पाद अमेरिकी बाजार में “फेयर वैल्यू” यानी वास्तविक कीमत से कम पर बेचा जा रहा है. इसके अलावा, यह भी दावा किया गया है कि भारतीय सरकार की सब्सिडी का फायदा उठाकर निर्यातकों को अनुचित लाभ मिल रहा है. यही वजह है कि अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार आयोग (USITC) ने जांच शुरू करने की मंजूरी दे दी है.
मसाला उद्योग पर असर
भारत से मसालों के कुल ओलियोरेसिन निर्यात का मूल्य 650 मिलियन डॉलर है, जिसमें से 25-30 प्रतिशत हिस्सा पपरिका ओलियोरेसिन का है. यह एक तरल एडिटिव है, जिसका इस्तेमाल खाद्य उद्योग में रंग और स्वाद देने के लिए बड़े पैमाने पर होता है. ऐसे में यदि इस पर भारी ड्यूटी लगती है तो न केवल पपरिका, बल्कि पूरे मसाला उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त पर असर पड़ सकता है.
कानूनी लड़ाई और खर्च
भारतीय निर्यातक संगठनों ने इस मामले को गंभीरता से लिया है. ऑल इंडिया स्पाइसेज एक्सपोर्टर्स फोरम (AISEF) और स्पाइसेज बोर्ड पहले ही डायरेक्टर-जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज से मिल चुके हैं. अनुमान है कि कानूनी प्रक्रिया और दस्तावेजीकरण पर लगभग 6.6 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है. अमेरिका के वाणिज्य विभाग ने भारत के दो निर्यातकों को इस जांच में अनिवार्य उत्तरदाता बनाया है.
निर्यातकों की तैयारी
भारत के सभी पपरिका निर्यातकों ने अमेरिकी विभाग की प्रश्नावली का जवाब दे दिया है. इसके अलावा, AISEF के समन्वय से भारतीय कंपनियों ने अमेरिकी लॉ फर्म GDSLK और भारतीय फर्म VKS को नियुक्त किया है. इसका मकसद है कि दस्तावेज सही समय पर जमा हों, सुनवाई में हिस्सा लिया जा सके और निर्यातकों की ओर से सही डेटा पेश किया जा सके.
पूरे उद्योग के लिए चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस मामले को संगठित तरीके से नहीं निपटाया गया, तो सिर्फ पपरिका ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय मसाला उद्योग को भविष्य में ऐसी शिकायतों का सामना करना पड़ सकता है. भारत के मसालों की वैश्विक साख और बाजार हिस्सेदारी दोनों पर असर पड़ सकता है. यही वजह है कि अब जरूरत है कि सरकार, निर्यातक और उद्योग संगठन मिलकर एकजुट रणनीति अपनाएं