Pea Farming : गांवों में अक्सर लोग कहते हैं कि मटर एक ऐसी फसल है जो मिट्टी से ज्यादा किसान की समझ मांगती है. पानी ज्यादा दे दो तो जड़ सड़ जाती है, और कम दे दो तो फलियां छोटी रह जाती हैं. लेकिन अब एक आसान और कारगर तरीका सामने आया है, जिसे किसान अपनाकर कम लागत में शानदार उपज ले रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मटर की फसल को सिर्फ दो बार सिंचाई की जरूरत होती है, वह भी बिल्कुल हल्की. खास बात यह है कि सही मात्रा और सही समय पर दिया गया पानी ही मटर को भरपूर फलियां देता है.
सिर्फ दो सिंचाई से तैयार होती है बढ़िया मटर की फसल
मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि मटर की फसल पानी की बहुत ज्यादा मांग नहीं करती. यह ठंड के मौसम में बोई जाने वाली ऐसी फसल है जो नमी में ही अच्छी बढ़वार करती है. इसलिए इसमें भारी सिंचाई की जरूरत नहीं होती. पहली सिंचाई तभी करनी चाहिए, जब पौधों में फूल आने की प्रक्रिया शुरू हो. इस समय हल्की नमी पौधों को ऊर्जा देती है और फूल झड़ने की समस्या कम हो जाती है. इसके बाद दूसरी सिंचाई फली बनने के समय की जाती है. इन दो सिंचाइयों से ही पौधे पूरी तरह तैयार हो जाते हैं और फलियां भी अच्छी बनती हैं.
मिनी स्प्रिंकलर सबसे बढ़िया, पारंपरिक सिंचाई भूलकर भी न करें
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मटर की खेती में पारंपरिक सिंचाई सबसे बड़ी गलती मानी जाती है. नालियों से सिंचाई करने पर खेत में पानी भर जाता है, जिससे पौधों की जड़ों में मौजूद राइजोबियम बैक्टीरिया प्रभावित हो जाता है. यही बैक्टीरिया पौधों को नाइट्रोजन देता है और उन्हें मजबूती प्रदान करता है. अगर यह बैक्टीरिया खराब हो जाए, तो पौधे पीले पड़ जाते हैं और कई बार सूख भी जाते हैं. इसलिए मटर में सिंचाई हमेशा स्प्रिंकलर या मिनी स्प्रिंकलर से करनी चाहिए. इससे पानी फुहार की तरह पड़ता है, पौधों को जरूरत के हिसाब से नमी मिलती है और खेत में जलभराव की समस्या भी नहीं होती.
सही सिंचाई से मिट्टी भी बचेगी और फसल भी बढ़ेगी
रिपोर्ट के अनुसार, मटर की खेती के लिए केवल पानी ही नहीं, बल्कि सिंचाई का तरीका भी बेहद महत्वपूर्ण है. हल्की नमी से पौधे मजबूत बनते हैं और फलियां अच्छी तरह भरती हैं. मिनी स्प्रिंकलर का उपयोग करने से मिट्टी में मौजूद लाभकारी बैक्टीरिया सक्रिय रहते हैं, जिससे पौधों में प्राकृतिक रूप से ताकत आती है. यही वजह है कि जहां भारी सिंचाई फसल को नुकसान पहुंचाती है, वहीं फुहार जैसी सिंचाई फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ा देती है.