भारत ने वित्तीय वर्ष 2025 (FY25) में नारियल और उससे बने उत्पादों के निर्यात में 25 फीसदी की बढ़ोतरी की है. इस दौरान कुल 4,349 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ, जो पिछले साल के 3,469 करोड़ रुपये से काफी ज्यादा है. इसमें सबसे बड़ा योगदान एक्टिवेटेड कार्बन का रहा, जिसका निर्यात 2,799 करोड़ रुपये का हुआ. FY25 में भारत ने 1,76,435 टन एक्टिवेटेड कार्बन विदेशों को भेजा, जो पिछले साल के 1,54,059 टन से ज्यादा है.
एक्टिवेटेड कार्बन क्या है?
एक्टिवेटेड कार्बन एक ऐसा पदार्थ है जो जल और वायु को साफ करने में मदद करता है. इसे नारियल के खोल से बनाया जाता है. यह उद्योगों, पानी शोधन संयंत्रों और पर्यावरण संरक्षण में बहुत काम आता है. भारत इस क्षेत्र में दुनिया के बड़े उत्पादकों में से एक है.
बढ़ती लागत और चीन की सस्ती प्रतिस्पर्धा
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि निर्यात बढ़ा है, लेकिन भारत के एक्टिवेटेड कार्बन बनाने वाले कंपनियों को चिंता भी है. इसकी वजह है उत्पादन लागत का बढ़ना. मुख्य कच्चा माल चारकोल (कोयला) की कीमतें बढ़ने से भारत में एक्टिवेटेड कार्बन बनाना महंगा हो गया है. पालक्कड़ की कंपनी इंडकार्ब के डायरेक्टर जोशी जोसेफ के अनुसार, भारत में एक्टिवेटेड कार्बन की कीमत 3,600 से 3,700 डॉलर प्रति टन है, जबकि चीन में यह 2,500 से 2,700 डॉलर प्रति टन है. इससे चीन के सस्ते उत्पाद बाजार में भारत के लिए चुनौती बन गए हैं.
भारत की स्थिति
भारत की एक्टिवेटेड कार्बन की गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है, लेकिन बढ़ती लागत और चीन की सस्ती आपूर्ति से बाजार में दबाव बढ़ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को उत्पादन प्रक्रिया में सुधार करना होगा, नई तकनीक अपनानी होगी और पर्यावरण के अनुकूल तरीके अपनाने होंगे ताकि उत्पादन लागत कम हो सके और उत्पाद प्रतिस्पर्धी बने रहें.
वहीं भारत के लिए यह क्षेत्र अभी भी बहुत संभावनाओं से भरा है. जैसे-जैसे दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की मांग बढ़ेगी, एक्टिवेटेड कार्बन की जरूरत भी बढ़ेगी. साथ ही, सरकार की नई नीतियां और ग्रीन टेक्नोलॉजी के विकास से इस उद्योग को और बढ़ावा मिल सकता है.