भारत ने हवाई जहाजों के ईंधन को साफ और टिकाऊ बनाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. भारतीय शुगर मिल एसोसिएशन (ISMA) ने अंतरराष्ट्रीय विमानन संगठन IATA और प्राज इंडस्ट्रीज के साथ मिलकर एक खास समझौता किया है. इसका मकसद है भारत में गन्ने से बने सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) की जांच और प्रमाणीकरण करना, ताकि इसे पूरे देश में और दुनिया भर में इस्तेमाल किया जा सके.
गन्ने से कैसे बनेगा SAF?
भारत में गन्ना बहुतायत में होता है, और इससे एथनॉल बनाया जाता है. अब इस एथनॉल को जेट ईंधन में बदला जाएगा. इस प्रक्रिया को ‘एथनॉल-टू-जेट’ (ETJ) कहा जाता है. यह ईंधन पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होता है और इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है.
इस समझौते का मकसद है इस नए ईंधन की पूरी प्रक्रिया का मापन करना यानी कि यह जानना कि गन्ने से बने इस जेट ईंधन का पर्यावरण पर कितना असर पड़ता है. इससे यह पता चलेगा कि यह ईंधन कितनी अच्छी तरह से पर्यावरण बचाने में मदद कर सकता है.
यह समझौता क्यों जरूरी है?
भारत सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2027 तक विमान ईंधन में 1 फीसदी SAF मिलाया जाए और 2030 तक यह बढ़ाकर 5 फीसदी किया जाए. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि गन्ने से बने इस ईंधन का कार्बन उत्सर्जन आधिकारिक तौर पर मापा जाए और मान्यता मिले. इससे भारत का SAF अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी स्वीकार्य होगा.
भारत में SAF की कितनी संभावना है?
भारत की गन्ना इंडस्ट्री में इतना संसाधन है कि सालाना करीब 19 से 24 मिलियन टन तक SAF बनाया जा सकता है. यह बहुत बड़ा मौका है जिससे न सिर्फ देश की हवाई यात्रा साफ-सुथरी होगी, बल्कि किसानों और ग्रामीण इलाकों को भी रोजगार मिलेगा.
ISMA के डायरेक्टर जनरल दीपक बल्लानी का कहना है “भारत ने एथनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम में बड़ी सफलता हासिल की है. अब SAF की मदद से हम पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों को मजबूती दे सकते हैं. इसी के साथ भारत इस क्षेत्र में एशिया का नेतृत्व कर सकता है.”
यह कदम भारत की ऊर्जा और पर्यावरण नीति को आगे बढ़ाने वाला है. इससे ना केवल हमारे हवाई सफर साफ और सुरक्षित होंगे, बल्कि भारत दुनिया में टिकाऊ ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाएगा.