Organic farming india: देश में खेती का स्वरूप तेजी से बदल रहा है. पहले जहां किसान उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों पर ज्यादा निर्भर रहते थे, वहीं अब ध्यान मिट्टी की सेहत, सुरक्षित भोजन और टिकाऊ खेती पर जा रहा है. जलवायु परिवर्तन, मिट्टी की घटती उर्वरता और खेती की बढ़ती लागत ने किसानों को नए विकल्प तलाशने पर मजबूर किया है. इसी बदलाव का सबसे बड़ा हिस्सा है ऑर्गेनिक खेती और इससे जुड़ी जैविक खादों का बढ़ता उपयोग.
क्यों बढ़ रही है ऑर्गेनिक खाद की जरूरत?
पिछले कई वर्षों में रासायनिक खादों के लगातार इस्तेमाल ने जमीन की गुणवत्ता को काफी नुकसान पहुंचाया है. ऐसे में जैविक खाद किसानों के लिए बेहतर और सुरक्षित विकल्प बनकर उभर रही है. इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है, बल्कि उत्पादन लागत भी कम आती है.
सरकार भी साफ कह चुकी है कि “अगर खेती को भविष्य के लिए सुरक्षित बनाना है, तो प्राकृतिक और जैविक तरीकों को अपनाना ही होगा.”
PKVY और MOVCDNER: ऑर्गेनिक खेती का मजबूत ढांचा
भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए दो अहम योजनाएं चल रही हैं परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) और मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट (MOVCDNER), दोनों योजनाओं का उद्देश्य किसानों को बीज से बाजार तक पूरी सहायता देना है. इन योजनाओं के तहत किसानों को प्रशिक्षण, प्रमाणन, जैविक खाद की उपलब्धता और फसल की मार्केटिंग तक की सुविधा मिलती है.
क्लस्टर आधारित खेती
PKVY योजना के तहत किसानों को 500–1000 हेक्टेयर के समूहों में जोड़ा जाता है. हर क्लस्टर में करीब 500 किसान शामिल होते हैं, जिनके लिए प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता की व्यवस्था होती है.
उत्तर-पूर्व भारत में MOVCDNER के तहत 479 किसान उत्पादक संगठन (FPO) बनाए जा चुके हैं, जिनसे हजारों किसान जुड़े हुए हैं. यह मॉडल छोटे और सीमांत किसानों के लिए बेहद कारगर साबित हो रहा है.
ऑर्गेनिक खेती का तेजी से बढ़ता दायरा
बीते एक दशक में देश में ऑर्गेनिक खेती का क्षेत्र तेजी से बढ़ा है. PKVY के अंतर्गत 16.90 लाख हेक्टेयर, जबकि MOVCDNER के तहत 2.36 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के लिए विकसित किया गया है. योजना का मकसद आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र को दोगुना करना है, ताकि देश के अधिक से अधिक किसान इससे जुड़ सकें.
किसानों को मिल रही सीधी आर्थिक मदद
सरकार ने योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए आर्थिक सहायता भी बढ़ाई है.
PKVY में: किसानों को तीन साल में 31,500 रुपये प्रति हेक्टेयर, जिसमें से 15,000 रुपये सीधे खाते में भेजे जाते हैं.
MOVCDNER में: कुल 46,500 रुपये प्रति हेक्टेयर, जिसमें जैविक खादों और इनपुट के लिए 32,500 रुपये तक का सहयोग दिया जाता है. इन योजनाओं से किसानों की लागत घट रही है और वे रासायनिक खादों पर निर्भर नहीं रह रहे.
PM-PRANAM: मिट्टी को बचाने की बड़ी पहल
रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने PM-PRANAM शुरू किया है. इसका उद्देश्य है मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना, जैविक खाद बढ़ाना और Integrated Nutrient Management को बढ़ावा देना. इससे खेती भविष्य के लिए ज्यादा सुरक्षित और किफायती बन सकेगी.
जैविक खाद उत्पादन में बढ़त
सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि देश में जैविक खाद का उत्पादन तेजी से बढ़ा है. कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में पिछले वर्षों में लाखों टन उत्पादन दर्ज किया गया है. यह बताता है कि किसान अब विकल्प बदल रहे हैं और जैविक खेती को अपना रहे हैं.
यपी के इटावा और फतेहपुर: मॉडल जिले बन रहे हैं
PKVY योजना के तहत इटावा में 20 क्लस्टर बनाकर 400 हेक्टेयर भूमि पर 673 किसानों को जोड़ गया. फतेहपुर में भी 20 क्लस्टर, 400 हेक्टेयर में 889 किसान इससे लाभ ले रहे हैं. ये दोनों जिले अब उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.
ऑर्गेनिक खेती भविष्य का रास्ता
जैविक खाद के बढ़ते उपयोग, सरकार की योजनाओं, आर्थिक सहायता और किसानों की बदलती सोच ने भारत में एक नई कृषि क्रांति की शुरुआत की है. अब लक्ष्य केवल उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि भूमि की सेहत को बचाना और उपभोक्ताओं को सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराना है. अगर यही रफ्तार बनी रही, तो ऑर्गेनिक खेती आने वाले वर्षों में भारत की कृषि व्यवस्था का मजबूत आधार बन जाएगी.