हरियाणा सरकार भले ही जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कर रही हो, लेकिन आंकड़े इसकी हकीकत कुछ और ही बयां कर रहे हैं. इस वित्त वर्ष में जैविक खेती का रकबा घटकर सिर्फ 1,357 एकड़ रह गया है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे कम है. यह गिरावट सरकार के दावों और किसानों की वास्तविक स्थिति के बीच का अंतर साफ दिखाती है.
कैसे शुरू हुई थी मुहिम?
हरियाणा ने 2022-23 में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने की योजना की शुरुआत की थी. पहले ही साल 5,205 एकड़ भूमि पर किसानों ने जैविक पद्धति अपनाई. अगले साल यानी 2023-24 में यह रकबा लगभग दोगुना होकर 10,109 एकड़ तक पहुंच गया. हालांकि 2024-25 में यह घटकर 8,036 एकड़ रह गया और अब 2025-26 में स्थिति और खराब हो गई है. 1 अगस्त तक यह आंकड़ा सिर्फ 1,357 एकड़ पर सिमट गया है. हालांकि, अभी गेहूं और अन्य फसलों की बुवाई बाकी है, जिससे मामूली सुधार संभव है.
विधानसभा में उठा मुद्दा
यह जानकारी कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्याम सिंह राणा ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में दी. कांग्रेस विधायक पूजा चौधरी ने पिछले पांच वर्षों में जैविक खेती के आंकड़े और सरकार द्वारा दी जा रही मदद की जानकारी मांगी थी. मंत्री के लिखित जवाब ने साफ कर दिया कि हरियाणा में जैविक खेती का दायरा लगातार घट रहा है.
सरकार के प्रयास और योजनाएं
राज्य सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं:
विशेष मंडियां: गुड़गांव में गेहूं, धान और दालों की प्राकृतिक खेती के लिए अलग मंडी बनाई जाएगी, जबकि हिसार में फल-सब्जियों की खरीद के लिए विशेष मंडी खोली जाएगी.
प्रमाणीकरण व्यवस्था: हरियाणा स्टेट सीड सर्टिफिकेशन एजेंसी (HSSCA) को केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त PGS-इंडिया के अंतर्गत क्षेत्रीय परिषद बनाया गया है.
प्रयोगशालाएं: गुरुग्राम और हिसार में दो लैब स्थापित की जा रही हैं, जहां जैविक उत्पादों की जांच और प्रमाणन होगा.
इन योजनाओं का मकसद किसानों को बाजार तक सीधी पहुंच और उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाना है.
क्यों घट रहा है रकबा?
विशेषज्ञ मानते हैं कि किसानों के जैविक खेती से पीछे हटने के कई कारण हो सकते हैं:
- रासायनिक खेती की तुलना में कम पैदावार, जिससे आर्थिक नुकसान की आशंका रहती है.
- बाजार और खरीदी की व्यवस्था की कमी, जिसके चलते किसानों को सही दाम नहीं मिल पाता.
- प्रमाणीकरण प्रक्रिया की जटिलता और समय की खपत.
- छोटे किसानों के लिए शुरुआती खर्च और तकनीकी जानकारी की कमी.
इन वजहों से कई किसान शुरुआती जोश के बाद फिर से पारंपरिक खेती की ओर लौट आते हैं.
क्या हो सकता है सुधार?
हालांकि अभी स्थिति चिंताजनक दिख रही है, लेकिन सरकार ने 2025-26 के लिए कई नई योजनाओं की घोषणा की है. अगर मंडियां और प्रमाणन सुविधाएं समय पर शुरू होती हैं, तो किसानों को बाजार और दाम दोनों में मजबूती मिल सकती है. इसके अलावा, किसानों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और खरीदी की गारंटी मिले तो यह गिरावट दोबारा बढ़त में बदल सकती है.