तिल की उन्नत किस्मों की करें खेती, जानें कितनी हो सकती है पैदावार

तिल की नई किस्म गर्मियों में बुवाई के लिए सही मानी जाती है. इसकी प्रति हेक्टेयर फसल के लिए किसानों को 3 से 4 किलो बीज की जरूरत होगी. इसकी बुवाई से पहले किसान थाईरम से बीजों का उपचार कर लें. यह एक ऐसी किस्म है जो बुवाई के 80 से 85 दिनों बाद तैयार हो जाती है.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 20 May, 2025 | 06:08 PM

तिलहनी फसलों में से तिल (Sesame Seeds) एक प्रमुख फसल है जिसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा होता है. लेकिन तिल की कुछ उन्नत किस्में ऐसी भी हैं जिनकी खेती से किसानों को अच्छी उपज मिलती है. ऐसे में किसानों के लिए जरूरी है कि वे उन्नत किस्मों का चुनाव करें और उनकी पैदावार के बारे में सारी जानकारी भी हो. खबर में आगे तिल की ऐसी ही कुछ उन्नत किस्मों की बात कर लेते हैं. जानेंगे कि इन उन्नत किस्मों से किसानों को कितनी पैदावार मिल सकती है.

तिल की उन्नत किस्में

टीकेजी-21

तिल की यह किस्म गर्मियों में बुवाई के लिए सही मानी जाती है. इसकी प्रति हेक्टेयर फसल के लिए किसानों को 3 से 4 किलो बीज की जरूरत होगी. इसकी बुवाई से पहले किसान थाईरम से बीजों का उपचार कर लें. यह एक ऐसी किस्म है जो बुवाई के 80 से 85 दिनों बाद तैयार हो जाती है. बता दें कि इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से 6 से 8 टन पैदावार होती है. इसके साथ ही तिल की ये किस्म फाइलोडी रोग के प्रतिरोधी होती है.

आरटी-346

यह खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली एक किस्म है.तिल की इस किस्म की खासियत है कि इसमें लगभग 49 से 51 फीसदी तेल की मात्रा होती है. आर.टी. 346 मोजेक, तना मक्खी, पत्ती धब्बा जैसे रोगों की प्रतिरोधी है. इस किस्म को तैयार होने में करीब 80 से 86 दिन लगते हैं. बात करें इसकी पैदावार की तो इसकी प्रति हेक्टेयर फसल के किसान 7 से 9 क्विंटल तक पैदावार कर सकते हैं. बता दें कि इसका इस्तेमाल तेल और तिलकुट आदि बनाने में किया जाता है.

टीकेजी-22

टी.के.जी. 22 तिल की उन्नत किस्मों से एक है जिसकी खेती सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होती है. तिल की यह किस्म बुवाई के 75 से 85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार की बात करें तो इसकी प्रति हेक्टेयर खेती से किसान करीब 8 से 10 टन पैदावार कर सकते हैं. इसके साथ ही तिल की इस किस्म में बुवाई के 30 से 35 दिनों में फूल आने लगते हैं.

पंजाब तिल-1

तिल की इस किस्म की खेती सबसे ज्यादा पंजाब में की जाती है. इसमें तेल की मात्रा 50 से 53 फीसदी तक होती है. इसकी खेती से किसानों को प्रति हेक्टेयर 5 से 7 क्विंटल तक पैदावार मिलती है. बात करें इस किस्म के तैयार होने की तो यह किस्म बुवाई के 75 से 85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. बता दें कि इसकी प्रति एकड़ फसल के लिए 1 किलो बीज की जरूरत होती है.

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