हर किसान की चाहत होती है कि उसे मेहनत के बदले भरपूर फसल और अच्छा मुनाफा मिले. ऐसे में खेती के लिए सही किस्म का चुनाव बेहद जरूरी होता है. खासकर जब बात सरसों की खेती की हो, तो पूसा सरसों-28 एन. पी. जे.-124 किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनकर सामने आई है. इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के माध्यम से विकसित किया गया है. यह किस्म न केवल कम समय में तैयार हो जाती है, बल्कि इसकी पैदावार और तेल की मात्रा भी काफी अच्छी होती है.
किन क्षेत्रों में होती है खेती
पूसा सरसों-28 को वर्ष 2010 में देश के कई प्रमुख राज्यों में खेती के लिए मंजूरी मिली थी. यह किस्म खासतौर पर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर के मैदानी क्षेत्र, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त पाई गई है. इन इलाकों में जलवायु और मिट्टी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए इसे विकसित किया गया है, ताकि किसान आसानी से इसकी खेती कर सकें.
क्या है खास इस किस्म में?
पुसा सरसों 28 की सबसे बड़ी खासियत है कि यह केवल 107 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. यानी किसान इसे सितंबर के अंत में खरीफ की फसल की कटाई के बाद बो सकते हैं और रबी की फसल (जैसे गेहूं और सब्जियां) की बुआई से पहले दिसंबर के मध्य तक इसकी कटाई कर सकते हैं. इससे एक ही खेत में साल भर में तीन फसलें ली जा सकती हैं, जिससे किसानों की आमदनी में बढ़त होती है.
इसकी किस्म की औसत उपज 19.93 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि सरसों की अन्य पारंपरिक किस्मों की तुलना में बेहतर मानी जाती है. वहीं इसमें तेल की मात्रा करीब 41.5 प्रतिशत होती है, जिससे यह तेल उत्पादन के लिहाज से भी किसानों और व्यापारियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकते है.
तोरिया की जगह बेहतर विकल्प
किसान आमतौर पर सरसों के साथ तोरिया भी उगाते हैं, लेकिन पूसा सरसों-28 को तोरिया का बेहतर विकल्प माना जा रहा है. इसकी ज्यादा उपज, जल्दी पकने की क्षमता और तेल की अच्छी मात्रा इसे तोरिया से कहीं अधिक लाभदायक बनाती है. बता दें कि यह सरसों की एक किस्म है जिसे ‘तोरिया’ भी कहा जाता है. तोरिया की खेती भारत में, खासकर उत्तरी और पूर्वी राज्यों में, रबी सीजन में की जाती है.