रेशम कीट पालन से महिला समूहों की आमदनी बढ़ी, हर सदस्य 60 हजार रुपये कमा रहीं

छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के गांव महुवा में स्व-सहायता समूहों ने कृमिपालन यानी रेशम के कीड़ों का पालन कर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है. खास बात ये है कि इन समूह की महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर कोसा उत्पादन से अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारा है.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 30 Jun, 2025 | 09:30 PM

छत्तीसगढ़ में रेशम विभाग और महात्मा गांधी नरेगा की साझेदारी से की गई कोशिशों से छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के गांव महुवा में रेशम कीट के पालन से स्व- सहायता समूह ने न केवल अपनी आर्थिक स्थित में सुधार किया बल्कि जिले में अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है. इन स्व-सहायता समूहों की इस उल्लेखनीय उपलब्धी में रेशम विभाग और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की मदद ने बेहद ही एहम भूमिका निभाई है.

महिला समूहों की आमदनी बढ़ी

छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के गांव महुवा में स्व-सहायता समूहों ने कृमिपालन यानी रेशम के कीड़ों का पालन कर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है. खास बात ये है कि इन समूह की महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर कोसा उत्पादन से अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारा है. जिसके कारण गांव की महिलाएं भी अपने पैरों पर खड़ी होकर सशक्त बन रही हैं.

खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के साथ ही ये स्व-समूह अपने आसपास के अन्य ग्रामीणों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं.बता दें कि ये सफलता एक दिन की नहीं था. ये समूहों में काम करने वाले महिलाओं और पुरुषों की लंबे समय की मेहनत का फल है. जिले के स्व-समूहों की इस पहल से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिला है बल्कि स्थानीय मजदूरों को गांव में ही रोजगार भी मिला है.

हर सदस्य कर रहा 60 हजार रुपये की कमाई

समाचार एजेंसी प्रसार भारती के अनुसार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MNREGA) के तहत मनरेगा मजदूरों को 9 हजार 884 दिनों तक रोजगार मिला है. बलौदा जिले की पंचायत डीईओ (DEO) ने बताया कि रेशम के कीड़े की खेती ग्रामीण इलाकों में स्वावलंबन की ओर एक ठोस कदम है. उन्होंने बताया कि महुआ गांव के स्व-सहायता समूह के सदस्य शकुंतला यादव,रामनी साहू द्वारा अर्जुन के वृक्षों में कृमिपालन (रेशम के कीड़े की खेती) करते हुए कोसाफल की सालाना दो फसलें ली जा रही हैं. इन फसलों से समूह के हर सदस्य को 50 हजार से 60 हजार रुपये की आमदनी हो रही है.

महिलाओं ने ट्रेनिंग लेकर शुरू किया कोसा पालन

इन स्व-समूहों में काम करने वाली महिलाओं ने विशेष ट्रेनिंग लेकर वैज्ञानिक तरीकों से कोसा पालन शुरू किया. इन महिलाओं की लगातार मेहनत और अच्छी गुणवत्ता वाले कोसा पालन से होने वाला उत्पादन स्थानीय बाजारों में लोकप्रिय हो गया है. सशक्तिकरण और प्रेरणा का स्रोत कोसा उत्पादन ने महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है. महिलाओं में आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की भावना को बल मिला है. यह समूह आज अन्य गांवों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुका है. रेशम विभाग और मनरेगा की मदद से अर्जुन पौधरोपण जैसे कामों ने न केवल हरित पर्यावरण की दिशा में योगदान दिया है, बल्कि ग्रामीणों की आमदनी को भी नई दिशा दी है.

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Published: 30 Jun, 2025 | 09:30 PM

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