कब और क्यों फटते हैं बादल? जानिए इस विनाशकारी आपदा से बचने के उपाय

हाल के सालों में पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्य भी इस प्राकृतिक संकट की चपेट में आ चुके हैं, जिससे यह साफ है कि अब यह खतरा सिर्फ उत्तर भारत तक सीमित नहीं रहा.

नई दिल्ली | Published: 30 Jun, 2025 | 04:20 PM

अभी कुछ दिन पहले उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जब शनिवार देर रात सिलाई बैंड के पास बादल फट गया. तेज बारिश और मलबे के सैलाब में 9 मजदूर बह गए, जिनमें से दो के शव यमुना नदी में बरामद हुए हैं, जबकि बाकी 7 की तलाश अब भी जारी है. इस हादसे ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर बादल फटते क्यों हैं? ये घटनाएं अचानक कैसे होती हैं और आम लोग इससे कैसे बच सकते हैं?

पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में बादल फटने की घटनाएं न सिर्फ बढ़ी हैं, बल्कि इनसे होने वाला नुकसान भी कहीं ज्यादा भयावह हो गया है. आज हम जानेंगे कि बादल कब और क्यों फटते हैं, इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण क्या हैं, और किन एहतियातों से हम अपनी और दूसरों की जान बचा सकते हैं.

बादल फटना क्या है?

बादल फटना (Cloudburst) एक ऐसी मौसमी घटना है, जब बहुत कम समय में किसी एक छोटे से इलाके में अत्यधिक बारिश होती है. इसमें पानी इतनी तेजी से गिरता है कि वह जमीन में समाने या बहने की बजाय तबाही का रूप ले लेता है. अक्सर यह घटना कुछ ही मिनटों या घंटों में होती है, लेकिन इसके असर लंबे समय तक महसूस किए जाते हैं.

कब और कहां होती है यह घटना?

बादल फटने की घटनाएं आमतौर पर मानसून के महीनों यानी जून से सितंबर के बीच होती हैं, और इनका केंद्र अधिकतर पहाड़ी इलाके होते हैं. उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिले तो हर साल ऐसी आपदाओं का सामना करते हैं. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और किन्नौर भी बादल फटने की वजह से बार-बार तबाही झेलते हैं.

जम्मू-कश्मीर के पुंछ और किश्तवाड़ जैसे इलाकों में भी ये घटनाएं जानलेवा साबित हुई हैं. हाल के सालों में पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्य भी इस प्राकृतिक संकट की चपेट में आ चुके हैं, जिससे यह साफ है कि अब यह खतरा सिर्फ उत्तर भारत तक सीमित नहीं रहा.

क्यों फटते हैं बादल?

नमी भरे बादल और गर्म हवा का टकराव- जब गरम हवा बादल को ऊपर की ओर ले जाती है और वहां वह अचानक ठंडी हवा से टकराता है, तो भारी मात्रा में जलवाष्प एकसाथ पानी में बदल जाती है और मूसलधार बारिश होती है.

पहाड़ी इलाके का प्रभाव- ऊंचे पहाड़ हवा को ऊपर उठने पर मजबूर करते हैं, जिससे बादल ज्यादा देर एक ही जगह जमा रहते हैं और वहीं फट जाते हैं.

कम दबाव का क्षेत्र- मानसून के समय वातावरण में बनने वाला कम दबाव क्षेत्र भी अचानक भारी बारिश की वजह बनता है.

जलवायु परिवर्तन- ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते अब पहाड़ी क्षेत्रों में भी असमान्य तापमान बढ़ रहा है, जिससे मौसम की चरम घटनाएं बढ़ रही हैं.

कैसे करें बचाव?

IMD अलर्ट को हल्के में न लें- मौसम विभाग द्वारा जारी चेतावनियों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. मोबाइल अलर्ट, समाचार चैनल और सरकारी एप्स की मदद लें.

जोखिम वाले क्षेत्रों से दूरी बनाए रखें- भारी बारिश की संभावना होने पर नदी किनारे, नालों के पास, या ढलान वाले इलाकों में न जाएं.

स्थानीय प्रशासन की बात मानें- अगर स्थानीय प्रशासन ने किसी इलाके को खाली करने का आदेश दिया है, तो तुरंत पालन करें. देर करना जानलेवा हो सकता है.

आपातकालीन किट तैयार रखें- जरूरी दवाएं, टॉर्च, मोबाइल चार्जर, दस्तावेज, खाना-पानी आदि का बैग तैयार रखें.