पशुओं में ब्रूसेल्ला रोग बढ़ा रहा चिंता, समय पर पहचान और टीकाकरण से बच सकती है जान
पशुओं में फैलने वाला ब्रूसेल्ला रोग दूध उत्पादन और पशुपालकों की कमाई पर सीधा असर डालता है. यह बीमारी गर्भपात, दूध में कमी और कमजोरी की वजह बनती है. समय पर जांच, टीकाकरण और सावधानी से इस रोग को रोका जा सकता है.
Dairy Farming : सर्दी हो या गर्मी, पशुओं की सेहत अगर बिगड़ी तो सीधा असर दूध उत्पादन और पशुपालकों की आमदनी पर पड़ता है. इन्हीं बीमारियों में एक खतरनाक लेकिन कम चर्चित बीमारी है ब्रूसेल्ला रोग. पशुपालन विभाग, राजस्थान के अनुसार यह रोग न सिर्फ पशुओं के लिए नुकसानदायक है, बल्कि इंसानों तक भी फैल सकता है. सही समय पर पहचान और बचाव से इस बीमारी को रोका जा सकता है. इसी को लेकर विभाग लगातार जागरूकता और टीकाकरण पर जोर दे रहा है.
क्या है ब्रूसेल्ला रोग और क्यों है खतरनाक
पशुपालन विभाग, राजस्थान के अनुसार ब्रूसेल्ला एक संक्रामक रोग है, जो गाय, भैंस, बकरी जैसे पशुओं में तेजी से फैलता है. यह बीमारी ज्यादातर गर्भावस्था के अंतिम महीनों में ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. एक बार यह रोग झुंड में फैल गया, तो लंबे समय तक पशुपालकों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है. दूध उत्पादन घट जाता है और पशु कमजोर होने लगते हैं, जिससे पालन लागत बढ़ जाती है.
पशुओं में दिखने वाले आम लक्षण
विभाग के अनुसार, ब्रूसेल्ला रोग में पशुओं में तेज बुखार, सुस्ती, बेचैनी और दूध में अचानक कमी देखने को मिलती है. गर्भवती पशुओं में समय से पहले गर्भपात हो सकता है. कई मामलों में योनि से भूरा या सफेद मवाद जैसा स्राव भी दिखाई देता है. जेर का समय पर न गिरना भी इस रोग का संकेत हो सकता है. नर पशुओं में बुखार के साथ जोड़ों और अंडकोषों में सूजन आ जाती है. ऐसे लक्षण दिखते ही इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए.
जांच और टीकाकरण से मिलेगा बचाव
पशुपालन विभाग, राजस्थान के अनुसार राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत गांव स्तर पर मिल्क रिंग टेस्ट के जरिए ब्रूसेल्ला की जांच की जाती है. अगर किसी पशु झुंड में बीमारी की आशंका होती है, तो आगे रोज बंगाल प्लेट एग्लूटिनेशन टेस्ट और एलाइजा जांच कराई जाती है. विभाग के अनुसार 4 से 8 माह की उम्र की मादा पशुओं में ब्रूसेल्ला स्ट्रेन-19 से टीकाकरण सबसे कारगर उपाय है. समय पर टीका लगवाने से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है.
सावधानी जरूरी, इंसानों तक भी फैलता है रोग
पशुपालन विभाग, राजस्थान ने पशुपालकों को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी है. योनि से स्राव आने पर उसकी प्रयोगशाला जांच जरूर कराएं. जो पशु गर्भधारण नहीं कर पा रहे हैं, उनकी भी जांच कराना जरूरी है. गर्भावस्था के दौरान अगर बदबूदार स्राव या बार-बार जोर लगाने जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत पशु चिकित्सालय से संपर्क करें. पहले गर्भपात झेल चुके पशुओं पर खास निगरानी रखें और गांव के नर सांड का परीक्षण भी जरूर कराएं. विभाग के अनुसार यह रोग पशुओं से इंसानों में भी फैल सकता है, जिससे बुखार, जोड़ों और अंडकोषों में सूजन जैसी समस्या हो सकती है. इसलिए टीकाकरण और सतर्कता ही सबसे बड़ा बचाव है.