पहाड़ अब सिर्फ घूमने-फिरने की जगह नहीं रह गए हैं. अब ये रोज़गार और आत्मनिर्भरता की नई पहचान बनते जा रहे हैं. यहां की साफ-सुथरी नदियां और ठंडा पानी अब गांव के युवाओं को नौकरी नहीं, बल्कि अपना काम शुरू करने का मौका दे रहे हैं. मछली पालन इन दिनों यहां के किसानों और युवाओं के लिए सोना उगलने वाला धंधा बन गया है. खासकर एक खास प्रजाति की मछली- ट्राउट- जो ठंडे पानी में पनपती है, वो यहां के लोगों की किस्मत बदल रही है.
ठंडा पानी और साफ माहौल बना वरदान
पहाड़ी इलाकों में मिलने वाला साफ और ठंडा पानी ट्राउट मछली पालन के लिए सबसे जरूरी होता है. ये मछली ज्यादा साफ और ऑक्सीजन युक्त पानी में ही जीवित रह पाती है. यहां के जल स्रोत ऐसे हैं जो इस मछली के लिए एकदम परफेक्ट माने जाते हैं. यही वजह है कि अब यहां ट्राउट और कुछ स्थानीय प्रजातियों का पालन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. यह काम शुरू करने के लिए किसी बड़ी जमीन या बड़ी पूंजी की जरूरत नहीं होती. कई किसान छोटे स्तर पर ही शुरुआत करके आज लाखों की कमाई कर रहे हैं.
महीने के लाखों, मेहनत का इनाम
मछली पालन अब पारंपरिक खेती की तुलना में कई गुना ज्यादा कमाई वाला काम साबित हो रहा है. जहां खेती में सालभर मेहनत के बाद मुनाफा uncertain होता है, वहीं मछली पालन में महीने दर महीने कमाई हो रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जो किसान छोटे स्तर पर इस काम को कर रहे हैं, वे भी हर महीने 1 से 2 लाख रुपये कमा रहे हैं. वहीं जो लोग बड़े स्तर पर उत्पादन कर रहे हैं, उनकी कमाई 4 से 5 लाख रुपये मासिक तक पहुंच रही है. ये बदलाव ना सिर्फ युवाओं के लिए, बल्कि महिलाओं के लिए भी आर्थिक सशक्तिकरण का जरिया बन गया है.
सरकार दे रही पूरा साथ
इस काम को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से भी पूरा सहयोग मिल रहा है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत किसानों को काफी सारी सुविधाएं दी जा रही हैं. इन योजनाओं के तहत किसानों को मछली पालन के लिए अनुदान, प्रशिक्षण, मछली बीज, आहार और तकनीकी मदद भी दी जा रही है. इससे न सिर्फ इस काम को शुरू करना आसान हो गया है, बल्कि इससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में बढ़ोतरी हुई है. सरकारी मदद और प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग यहां के युवाओं को गांव में ही कमाई का मजबूत जरिया दे रहा है.
अब बाजार की नहीं कोई चिंता
किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है- बाजार. लेकिन अब इस समस्या का भी समाधान निकल गया है. यहां मछली पालन करने वालों के लिए सुरक्षा बलों से सीधा करार किया गया है. इन करारों के तहत हर महीने हजारों किलो मछली सीधे सुरक्षा बलों को सप्लाई की जा रही है. इससे किसानों को बाजार की चिंता नहीं रहती और उन्हें नियमित आमदनी मिलती है. एक खास पहल के तहत कुछ गांवों को ट्राउट विलेज के रूप में विकसित किया गया है. यहां से हर महीने हजारों किलो मछली देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजी जा रही है. इस पहल ने मछली पालन को एक सफल बिजनेस मॉडल में बदल दिया है.
महिलाएं भी बन रही हैं आत्मनिर्भर
इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी भी तेजी से बढ़ रही है. कई महिलाएं अब मछली पालन से जुड़कर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं. उन्हें इसके लिए ट्रेनिंग दी जा रही है और छोटे-छोटे समूह बनाकर काम करवाया जा रहा है. इस काम की खास बात यह है कि इसे खेती के साथ-साथ भी किया जा सकता है. यानि किसान अपनी खेती भी कर सकते हैं और मछली पालन से अलग से कमाई भी कर सकते हैं.
भविष्य की रीढ़ बनेगा मछली पालन
अगर इसी तरह मछली पालन को बढ़ावा मिलता रहा, तो आने वाले समय में यह पहाड़ी इलाकों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन सकता है. यहां प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर उपयोग, सरकार की मदद और लोगों की मेहनत मिलकर एक नया इतिहास रच रहे हैं. मछली पालन अब सिर्फ एक काम नहीं, बल्कि गांवों में बदलाव की कहानी बन गया है- वो बदलाव, जो रोजगार देगा, पलायन रोकेगा और गांवों को फिर से आबाद करेगा.