उत्तर प्रदेश के गन्ना एवं चीनी आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने सलाह दी है कि अब किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना चाहिए. क्योंकि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल से हमारी फसलें अंतरराष्ट्रीय बाजार में टिक नहीं पातीं और कई बार मानक पर खरी न उतरने की वजह से वापस लौटा दी जाती हैं. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक विधि से खेती करने पर कम लागत में ज्यादा मुनाफा होगा
उपाध्याय का कहना है कि रसायनों का ज्यादा इस्तेमाल न सिर्फ उपभोक्ताओं की सेहत को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि मिट्टी, पानी और वातावरण पर भी बुरा असर डालता है. ऐसे में अब समय आ गया है कि किसान प्राकृतिक खेती अपनाएं, जो पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में देसी गाय, देसी बीज, मिट्टी में जैविक तत्वों का संतुलन और जल संरक्षण अहम भूमिका निभाते हैं. इससे खेती की लागत भी कम होती है और उपज की गुणवत्ता बेहतर होती है.
खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली
प्रमोद कुमार उपाध्याय ने कहा कि वैज्ञानिक तरीकों से भले ही हमने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली हो, लेकिन इसके साथ कई गंभीर समस्याएं भी खड़ी हो गई हैं. उन्होंने कहा कि मिट्टी में जैविक तत्व लगातार घट रहे हैं, हवा और भूजल तेजी से प्रदूषित हो रहे हैं. सांस लेने वाली हवा जहरीली होती जा रही है और भूजल स्तर भी गिरता जा रहा है.
कीटनाशकों के इस्तेमाल से बढ़ रहा प्रदूषण
उन्होंने कहा कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बेइंतहा इस्तेमाल से इंसानों, जानवरों और फसलों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है. इसके अलावा, किसानों की खेती पर आने वाली लागत भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. इन सभी समस्याओं का स्थायी और टिकाऊ समाधान केवल प्राकृतिक खेती है. आयुक्त उपाध्याय ने यह भी कहा कि प्रकृति का नियम है कि अगर हम जमीन से उत्पादन ले रहे हैं तो उसे वापस पोषण भी देना होगा. इसके लिए देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से बनी जैविक खाद और उर्वरकों का उपयोग बढ़ाना जरूरी है. रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से जहां लागत बढ़ती है, वहीं मिट्टी और पर्यावरण की सेहत भी बिगड़ती है.
प्राकृतिक खेती की खासियत
गन्ना आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने प्राकृतिक खेती की खासियतों पर बात करते हुए कहा कि यह एक ऐसी खेती की पद्धति है जिसमें किसानों को बाजार से किसी भी बाहरी चीज को खरीदने की जरूरत नहीं होती. इसमें देसी संसाधनों का ही इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने बताया कि जब किसान लगातार प्राकृतिक खेती करते हैं, तो मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, जिससे मिट्टी की ताकत और उपज दोनों में सुधार होता है. यह तरीका खेती की लागत को भी काफी हद तक कम कर देता है और हर साल मिट्टी के जैविक गुण बेहतर होते जाते हैं.
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं