किसानों के लिए कमाई का जरिया बनी लाल कंधारी गाय, कम खर्च में ज्यादा मुनाफा और दूध की गारंटी

लाल कंधारी गाय किसानों के लिए कम खर्च में ज्यादा फायदा देने वाली नस्ल है. इसकी कीमत कम है, देखभाल आसान है और दूध लगातार मिलता है. यह नस्ल खेती के कामों में भी मददगार साबित होती है.

नोएडा | Published: 6 Sep, 2025 | 09:00 AM

भारत में गाय पालन खेती-बाड़ी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है. देसी गायों की कई नस्लें किसानों के जीवन को बदल रही हैं. इन्हीं में से एक खास नस्ल है लाल कंधारी गाय. यह गाय अपनी मजबूत काया, लचीलापन और दूध उत्पादन की क्षमता के लिए जानी जाती है. खास बात यह है कि यह कम खर्च में किसानों को अच्छा मुनाफा देती है. आइए जानते हैं इस नस्ल की खासियतें और क्यों इसे किसानों के लिए वरदान माना जाता है.

लाल कंधारी गाय का इतिहास और नाम की वजह

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, लाल कंधारी नस्ल का इतिहास बहुत पुराना है. इसका जिक्र चौथी शताब्दी ई. में मिलता है, जब कंधार पर शासन करने वाले राजा सोमदेवराय ने इसे शाही संरक्षण दिया था. इस गाय की त्वचा गहरे लाल रंग की होती है, इसलिए इसका नाम लाल कंधारी रखा गया. कंधारी शब्द महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के कंधार तालुका से लिया गया है, जहां इसकी उत्पत्ति मानी जाती है. यही वजह है कि इस नस्ल को स्थानीय लोग अपनी शान मानते हैं.

कहां पाई जाती है यह गाय?

लाल कंधारी गाय मुख्य रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक के इलाकों में पाई जाती है. महाराष्ट्र के लातूर, परभणी, नांदेड़ और हिंगोली जिले इसके प्रमुख केंद्र हैं. इसके अलावा कर्नाटक के बीदर जिले में भी यह नस्ल बड़े पैमाने पर पाली जाती है. स्थानीय किसानों के लिए यह सिर्फ दूध देने वाली गाय नहीं, बल्कि खेती-बाड़ी के कामों के लिए भी भरोसेमंद साथी है.

कैसी होती है लाल कंधारी गाय?

यह नस्ल मध्यम आकार की और मजबूत शरीर वाली होती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गाय की लंबाई लगभग 128 सेंटीमीटर और बैल की लंबाई करीब 138 सेंटीमीटर तक होती है. इनका माथा चौड़ा, कान लंबे और सींग हल्के मुड़े हुए होते हैं. बैलों में मध्यम कूबड़ और लटकन पाई जाती है. इनकी आंखें बेहद चमकीली होती हैं और चारों ओर काले घेरे जैसा निशान दिखता है. खास बात यह है कि यह गायें कठोर जलवायु और मुश्किल परिस्थितियों में भी आसानी से टिक जाती हैं. यही कारण है कि किसान इन्हें हल चलाने और गाड़ी खींचने जैसे कामों में भी इस्तेमाल करते हैं.

दूध उत्पादन और खासियत

लाल कंधारी गाय दूध उत्पादन में भले ही HF या जर्सी जैसी नस्लों से कम हो, लेकिन किसानों के लिए यह बेहद उपयोगी साबित होती है. यह गाय साल में करीब 275 दिन दूध देती है. एक ब्यांत में औसतन 600 किलो दूध निकलता है. प्रतिदिन दूध उत्पादन 1.5 लीटर से लेकर 4 लीटर तक होता है. इसके दूध में 4.57 फीसदी तक वसा पाई जाती है, जो इसे स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत पौष्टिक बनाती है. कम दूध होने के बावजूद किसान इसे इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि इसकी देखभाल आसान है और यह किसी भी मौसम में अच्छा प्रदर्शन करती है.

कीमत और पालन का फायदा

लाल कंधारी गाय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी कीमत अन्य दुधारू नस्लों की तुलना में कम है. एक गाय की कीमत लगभग 30,000 रुपये होती है. यही वजह है कि छोटे और मध्यम किसान इसे आसानी से खरीद सकते हैं. यह गाय ज्यादा देखभाल या महंगे चारे की मांग नहीं करती. किसान अक्सर इन्हें खुले में चराते हैं और थोड़ी मात्रा में पूरक आहार देते हैं. इस नस्ल की खासियत यह भी है कि यह दूध देने के साथ-साथ खेती के कामों में भी मददगार है. मजबूत बैल खेतों में हल चलाने और गाड़ी खींचने में सक्षम होते हैं. इस वजह से यह नस्ल किसानों को दोहरा फायदा देती है- दूध से आमदनी और खेतों में काम से बचत.

किसानों के लिए क्यों है बेहतर विकल्प?

आज जब पशुपालन से किसानों की आमदनी बढ़ाने पर सरकार भी जोर दे रही है, तो लाल कंधारी गाय उनके लिए एक बेहतर विकल्प बन सकती है. कम कीमत, आसान देखभाल, लगातार दूध देने की क्षमता और मेहनती शरीर- ये सभी बातें किसानों को ज्यादा मुनाफा कमाने में मदद करती हैं. यही कारण है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई किसान अब इस नस्ल को पालकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहे हैं.

Published: 6 Sep, 2025 | 09:00 AM