तालाबों में अब सिर्फ पानी नहीं, संभावनाएं भी लहलहा रही हैं. भारत के किसान अब पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर मछली पालन को एक स्मार्ट विकल्प के तौर पर अपना रहे हैं. लेकिन इसमें भी सफलता की मूल मंत्र है, सही मछली प्रजाति का चयन. हरियाणा सरकार के मछली पालन विभाग के मुताबिक, कुछ मछलियों की प्रजातियां न सिर्फ तेजी से बढ़ती हैं, बल्कि उनकी देखरेख भी अपेक्षाकृत आसान होती है. यही वजह है कि ये प्रजातियां कम संसाधन में बेहतर उत्पादन देकर किसानों के लिए बड़ी उम्मीद बन चुकी हैं.
स्थानीय माहौल के अनुसार प्रजाति चुनना जरूरी
मछली पालन के लिए ऐसी प्रजातियों का चयन जरूरी है जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हों, कम समय में अधिक वजन हासिल करें और बीमारियों से कम प्रभावित हों. मसलन, तेज़ी से बढ़ने वाली मछलियां जैसे कतला, रोहू, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प और कामन कार्प न सिर्फ बाजार में पसंद की जाती हैं, बल्कि इनकी देखभाल भी आसान होती है. इनमें खासकर ग्रास कार्प तालाब की सफाई में भी सहायक मानी जाती है क्योंकि ये शाकाहारी होती है और काई जैसी वनस्पतियां खाकर जल की गुणवत्ता बनाए रखती है.
मिश्रित पालन से तालाब का पूरा उपयोग संभव
ये प्रजातियां छोटी भोजन श्रृंखला (फूड चेन) में आती हैं. यानी इन्हें विशेष या महंगे आहार की जरूरत नहीं होती. ये प्राकृतिक प्लवक, मलबा या सूक्ष्मजीवों पर ही पोषण पाती हैं. इसके अलावा, इनकी शरीर संरचना भी ऐसी होती है कि मांस अधिक और हड्डियां कम होती हैं, जो उपभोक्ता के लिहाज से फायदेमंद है.
मिश्रित पालन में भी इन मछलियों का महत्व बढ़ जाता है. जैसे कतला तालाब की ऊपरी सतह में रहती है, रोहू मध्य सतह में और मृगल नीचे. इससे तालाब का हर हिस्सा उपयोग में आता है और मछलियों के बीच भोजन या स्थान को लेकर प्रतिस्पर्धा नहीं होती.
किसानों के लिए बढ़िया विकल्प
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इन मछलियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है, इनका प्रबंधन सरल है और इनकी बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है. सही प्रजाति का चयन ही मछली पालन में सफलता की पहली सीढ़ी है और जब बात हो स्मार्ट फार्मिंग की तो ऐसी मछलियां ही किसानों के लिए उम्मीद की सबसे मजबूत डोर बन जाती हैं.