मेहसाणा जिले के विसनगर तालुका के कांसा गांव में 125 पशुपालक किसानों ने मिलकर ऐसा काम किया है, जो पूरे देश के लिए मिसाल बन सकता है. जमीन की कमी, घर के पास जानवर रखने से फैलती गंदगी और पारिवारिक रिश्तों में आने वाली दिक्कतों को देखते हुए किसानों ने 8 बीघा जमीन पर एक मॉडल ‘पशुशाला’ तैयार की है. यहां 500 गाय-भैंसों के रहने, चारे, इलाज और वीर्यदान (insemination) जैसी सभी सुविधाएं एक ही जगह पर मौजूद हैं. इस मॉडल ने पशुपालन को आसान, वैज्ञानिक और सम्मानजनक बना दिया है.
पशुपालकों ने खुद उठाया कदम और बनाई नई मिसाल
प्रसार भारती के मुताबिक, गांव की गणपतिपारा दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति के 125 सदस्य पशुपालक हैं. लेकिन गांव में जमीन की कमी के कारण जानवर पालना मुश्किल हो रहा था. कोई अपने घर के बाहर जानवर बांध रहा था तो कोई पास के खेत में रख रहा था. इससे न सिर्फ गंदगी फैलती थी, बल्कि परिवारों में असहजता और तनाव भी पैदा होता था. ऐसे में समिति ने मिलकर निर्णय लिया कि गांव की सीमा में 8 बीघा जमीन पर एक सामूहिक पशुशाला बनाई जाएगी, जहां सभी पशुपालक अपने जानवर एक जगह पर रख सकें.
पशुपालकों के अंशदान से बना आदर्श पशुशाला मॉडल
इस पशुशाला के निर्माण में कुल 2.5 करोड़ रुपये खर्च हुए. हर सदस्य से मात्र 2 लाख रुपये का अंशदान लिया गया, जबकि बाकी की लागत समिति ने खुद वहन की. जो पशुपालक यह राशि देने में सक्षम नहीं थे, उन्हें गांव की कांसा जन समिति की मदद से कम ब्याज पर लोन उपलब्ध कराया गया. इसके अलावा पूरे परिसर में 125 पक्के शेड बनाए गए हैं, साथ ही लाइट, पानी, आरसीसी रोड, चारे के भंडारण और साफ-सफाई की पूरी व्यवस्था की गई है, ताकि पशु और पशुपालक दोनों को बेहतर सुविधा मिल सके.

गुजरात में बना देश का पहला मॉडल पशु आवास
बिना खर्च के इलाज और सुरक्षित पशुपालन की गारंटी
यहां जानवरों की देखभाल के लिए एक पशु चिकित्सक भी नियुक्त किया गया है, जो हर दिन दो बार आकर जानवरों की जांच करते हैं. इसके लिए किसानों से कोई पैसा नहीं लिया जाता. इतना ही नहीं, समिति ने मात्र 300 रुपए में हर जानवर का बीमा भी कराया है, ताकि किसी दुर्घटना या बीमारी में पशुपालकों को नुकसान न हो.
बल्क कूलर और प्रजनन केंद्र से डेयरी को मिली नई ताकत
15 सितंबर को पाशुशाला का उद्घाटन हुआ, जहां बल्क कूलर और वीर्यदान केंद्र की भी शुरुआत की गई. क्योंकि बल्क कूलर की मदद से दूध को तुरंत ठंडा किया जा सकता है, जिससे उसकी क्वालिटी बनी रहती है और उसे सुरक्षित तरीके से बाजार में बेचा जा सकता है. वहीं, प्रजनन केंद्र के जरिए बेहतर नस्ल के पशु तैयार करने की व्यवस्था की गई है, जिससे पशुपालकों को अधिक उत्पादन और मुनाफा मिल सके.
गांव में साफ-सफाई और रिश्तों में राहत
गांव के बुजुर्गों और समिति के अध्यक्ष जशुभाई पटेल के अनुसार, पहले जब जानवर घरों के बाहर बांधे जाते थे तो न सिर्फ गंदगी फैलती थी बल्कि इससे परिवारों की सामाजिक स्थिति पर भी असर पड़ता था. इसके वजह से बेटा-बेटियों के रिश्तों में अड़चनें आने लगी थीं. अब सामूहिक पशुशाला की इस मॉडल व्यवस्था से सफाई बनी रहती है, पशुपालकों को सम्मान मिला है और आमदनी भी बढ़ रही है . यानी एक साथ स्वच्छता, गरिमा और आर्थिक लाभ.