भारत सरकार ने समुद्री संसाधनों के दोहन और मछुआरों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से गहरे समुद्र में मछली पकड़ने (Deep-Sea Fishing) के लिए नए नियम लागू किए हैं. इन नियमों का मकसद देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone – EEZ) में मछली पकड़ने की व्यवस्था को और अधिक आधुनिक, पारदर्शी और टिकाऊ बनाना है.
समुद्री संसाधनों के दोहन की नई राह
भारत का समुद्री क्षेत्र विशाल है लगभग 23 लाख वर्ग किलोमीटर का यह क्षेत्र अब तक अपनी पूरी क्षमता से उपयोग नहीं किया जा सका था. विशेष रूप से टूना (Tuna) जैसी उच्च मूल्य वाली मछलियों का उत्पादन कम रहा, जबकि भारत के पड़ोसी देश जैसे श्रीलंका, मालदीव और इंडोनेशिया इन संसाधनों का बड़े पैमाने पर दोहन करते रहे हैं.
नए नियमों के तहत, केंद्र सरकार ने विदेशी मछली पकड़ने वाले जहाजों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है ताकि देश के मछुआरों और सहकारी समितियों को इसका पूरा लाभ मिल सके. साथ ही, सरकार का फोकस अब “Fishermen Cooperative Societies” और “Fish Farmer Producer Organisations (FFPOs)” को प्राथमिकता देने पर है, जिससे स्थानीय समुदाय सशक्त हो सकें.
आधुनिक तकनीक से लैस होंगे भारतीय जहाज
नए ढांचे में सरकार ने “मदर एंड चाइल्ड वेसल कॉन्सेप्ट” को शामिल किया है, जिसके तहत बड़े जहाज समुद्र के बीच में ही छोटी नावों को पकड़ाई गई मछलियां ट्रांसफर कर सकेंगे. यह सुविधा खासकर अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय इलाकों के लिए फायदेमंद होगी, क्योंकि ये क्षेत्र भारत के समुद्री क्षेत्र के लगभग 49 प्रतिशत हिस्से में फैले हुए हैं.
इन जहाजों को आरबीआई (RBI) नियमों के अनुसार समुद्र के बीच में ही लेन-देन करने की अनुमति दी गई है. इससे ट्रांसपोर्टेशन लागत घटेगी और मछुआरों को बेहतर दाम मिलेंगे.
मछुआरों को मिलेगी डिजिटल सुविधा
सरकार ने ReALCRaft नामक ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है, जिसके जरिए मछुआरे “एक्सेस पास” प्राप्त कर सकेंगे. यह पास उन जहाजों के लिए अनिवार्य है जो गहरे समुद्र में मछली पकड़ने जाते हैं. इस प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल बनाया गया है ताकि मछुआरों को किसी सरकारी दफ्तर के चक्कर न काटने पड़ें.
छोटे और परंपरागत मछुआरे, जो हाथ से या छोटे मोटरबोट से मछली पकड़ते हैं, उन्हें इस नियम से छूट दी गई है. अब तक 13 तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2.38 लाख से अधिक मछली पकड़ने वाले जहाज पोर्टल पर पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें से 64,000 बड़े मशीनीकृत जहाजों को एक्सेस पास लेना होगा.
समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा पर जोर
नए नियमों में समुद्र के पर्यावरण की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है. सरकार ने LED लाइट फिशिंग, पेयर ट्रॉलिंग और बुल ट्रॉलिंग जैसी हानिकारक तकनीकों पर प्रतिबंध लगाया है. साथ ही, हर मछली प्रजाति के लिए न्यूनतम कानूनी आकार तय किया जाएगा ताकि अत्यधिक शिकार से समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान न पहुंचे.
मछली पकड़ने की दीर्घकालिक योजना यानी Fisheries Management Plans अब राज्य सरकारों और स्थानीय संगठनों से परामर्श लेकर बनाई जाएगी, ताकि यह प्रणाली सतत और सामुदायिक सहभागिता पर आधारित हो.
निर्यात और ट्रेसिंग सिस्टम में पारदर्शिता
ReALCRaft पोर्टल को अब Marine Products Export Development Authority (MPEDA) और Export Inspection Council (EIC) से जोड़ा गया है, जिससे मछली के निर्यात के लिए Fish Catch और Health Certificates स्वचालित रूप से जारी होंगे. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय समुद्री उत्पादों की विश्वसनीयता और प्रतिस्पर्धा दोनों बढ़ेगी.
इसके अलावा, इस सिस्टम के तहत प्रत्येक जहाज को ट्रांसपोंडर और क्यूआर कोड आधारित पहचान कार्ड से जोड़ा जाएगा, जिससे भारतीय तटरक्षक बल और नौसेना को तटीय सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.
मछुआरों को प्रशिक्षण और आर्थिक सहयोग
सरकार ने यह भी घोषणा की है कि मछुआरों को नए नियमों और तकनीक की जानकारी देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर विजिट्स कराए जाएंगे. आर्थिक सहायता के लिए मछुआरे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और Fisheries Infrastructure Development Fund (FIDF) के तहत क्रेडिट सपोर्ट प्राप्त कर सकेंगे.
समुद्री भारत की दिशा में बड़ा कदम
भारत की 11,099 किलोमीटर लंबी तटीय रेखा और विशाल समुद्री क्षेत्र लाखों लोगों की आजीविका का आधार है. देश दुनिया में मछली उत्पादन में दूसरे स्थान पर है और हर साल लगभग 60,000 करोड़ रुपये के समुद्री उत्पाद निर्यात करता है.
नए नियमों के लागू होने से न केवल भारतीय मछुआरे आत्मनिर्भर बनेंगे, बल्कि देश वैश्विक समुद्री व्यापार में सस्टेनेबल फिशिंग मॉडल के रूप में अपनी पहचान मजबूत करेगा. यह पहल भारत को “ब्लू इकॉनॉमी” के नए युग की ओर ले जाने वाला ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है.