एक वायरस और पशु की जान आफत में.. दूध भी जाएगा और पैसा भी! जान लें वैक्सीन और बचाव का तरीका

बारिश के दिनों में गाय-भैंसों को कई तरह की जानलेवा बीमारियों का खतरा रहता है. लेकिन, एक वायरस की वजह से पशु की जान आफत में पड़ सकती है और दूध के साथ पशुपालक का पैसा भी बर्बाद हो सकता है. इसलिए इस वायरस और बीमारी के बारे में और टीकाकरण जानना पशुपालक के लिए बेहद जरूरी है.

नोएडा | Updated On: 7 Sep, 2025 | 05:17 PM

देश के कई हिस्सों में इन दिनों लंपी स्किन डिजीज (LSD) यानी लंपी बीमारी ने पशुपालकों की नींद उड़ा दी है. वायरस से फैलने वाली यह बीमारी खासकर गायों में तेजी से विस्तार करती है और अन्य पशु भी संक्रमित हो रहे हैं. बीमारी की चपेट में आकर कई पशुओं की जान जा चुकी है और कई ने दूध देना बंद कर दिया है. ऐसे में पशुपालकों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. आइए जानते हैं लंपी क्या है, कैसे फैलता है, लक्षण क्या हैं, इलाज क्या है और इससे बचाव के क्या उपाय हैं.

क्या है लंपी बीमारी और कैसे फैलती है?

उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग के अनुसार लंपी स्किन डिजीज एक वायरल रोग है जो खासकर गायों और भैंसों में तेजी से फैलता है. यह बीमारी मच्छर, मक्खी, जूं और कीड़ों के जरिए एक पशु से दूसरे में फैलती है. रोग फैलने का मुख्य कारण संक्रमित पशुओं का संपर्क, दूषित पानी और चारे का इस्तेमाल है. संक्रमित पशुओं को अलग न करने से यह बीमारी एक बाड़े के सारे जानवरों में फैल सकती है. इससे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान होता है.

लंपी के लक्षण: कैसे पहचानें बीमारी?

लंपी से पीड़ित पशुओं में सबसे पहले बुखार आता है. पशु सुस्त हो जाता है और चारा खाना बंद कर देता है. इसके बाद आंख और नाक से पानी जैसा स्त्राव होने लगता है. मुंह से लगातार लार टपकती रहती है. कुछ दिनों बाद शरीर पर गांठें या फोड़े हो जाते हैं जो धीरे-धीरे फफोले का रूप ले लेते हैं. ये घाव बहुत दर्दनाक होते हैं और कभी-कभी इनमें कीड़े भी पड़ जाते हैं. यदि समय पर इलाज न मिले तो पशु की मौत भी हो सकती है.

लंपी का देसी इलाज और देखभाल के उपाय

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के अनुसार, अब तक लंपी का कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन घरेलू उपायों से राहत मिल सकती है. नीम की पत्तियों को उबालकर उस पानी से संक्रमित हिस्से को धोना चाहिए. नीम की पत्तियों को पीसकर उसका लेप भी लगाया जा सकता है. एलोवेरा का लेप भी त्वचा पर लगाने से आराम मिलता है. एक देसी खुराक भी तैयार की जा सकती है- 10 पान के पत्ते, 10 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम सेंधा नमक और थोड़ा गुड़ मिलाकर पेस्ट बनाएं. यह मिश्रण दिन में 3 बार 15 दिन तक दें. घावों में कीड़े पड़ने पर नारियल तेल में कपूर मिलाकर लगाना चाहिए. सीताफल की पत्तियों को पीसकर भी लगाया जा सकता है.

अब आई वैक्सीन: लंपी-प्रोवैक से उम्मीदें

हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों ने लंपी से बचाव के लिए स्वदेशी वैक्सीन लंपी-प्रोवैक तैयार की है. यह वैक्सीन हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र और बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान द्वारा बनाई गई है. यह वैक्सीन 3 महीने से अधिक उम्र के मवेशियों को दी जाती है और साल में एक बार लगाना होता है. बायोवेट कंपनी ने इसे फ्रीजड्राई रूप में तैयार किया है, जो कि देश की पहली मार्कर वैक्सीन है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह वैक्सीन 100 फीसदी कारगर है और इससे भारत को अब विदेशी टीकों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.

संक्रमण से बचाव के जरूरी कदम

लंपी एक छुआछूत की बीमारी है, इसलिए संक्रमित पशु को तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. जिस बाड़े में संक्रमित पशु हैं, वहां मच्छर और मक्खी की रोकथाम करें. पशुओं के खाने-पीने के बर्तन साफ रखें. संक्रमित पशु का चारा या पानी दूसरे पशु के संपर्क में न आने दें. बीमारी के समय पशु को एक जगह से दूसरी जगह न ले जाएं. संक्रमण वाली जगह को रोज जीवाणुनाशक से साफ करें.

Published: 7 Sep, 2025 | 05:11 PM