भारत ने बनाई अपनी पहली सुपर खाद, चीन पर नहीं रहना होगा निर्भर

सरकार ने खाद बनाने वाली इस नई तकनीक की अच्छे से जांच-पड़ताल कर ली है और इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए हरी झंडी भी दे दी गई है.

नोएडा | Published: 1 Sep, 2025 | 12:41 PM

देश के कृषि क्षेत्र को विस्तार देने और उसे बेहतर बनाने के लिए लगातार कृषि वैज्ञानिक कई तरह के शोध करते रहते हैं. कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किए जाने वाले शोधों का उद्धेश्य किसानों को खेती में सहूलियत उपलब्ध कराना होता है. इसी कड़ी में भारत ने कृषि क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की है. 7 साल के लंबे शोध के बाद अब देश ने खुद की पहली स्वदेशी जल-घुलनशील (Water Soluble) खाद बनाने की तकनीक को विकसित कर लिया है. इस सफलता का सबसे बड़ा फायदा ये है कि अब भारत को उर्वरक के लिए चीन या अन्य देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, बल्कि आगे आने वाले समय में भारत खुद एक बड़ा उर्वरक निर्यातक देश बन सकता है.

मेड इन इंडिया होगी खाद

जल-घुलनशील खाद एक ऐसा उर्वरक होता है जो पानी में आसानी से घुल जाता है और फसलों पर इसका इस्तेमाल करने से फसल को तुरंत पोषण मिलता है. बता दें कि, अभी तक इस तरह की खाद के लिए भारत को चीन पर निर्भर रहना पड़ता था. इस तरह की खाद को चीन से आयात किया जाता था. लेकिन अब ऐसी खाद बनाने की तकनीक भारत में विकसित कर ली गई है जो कि पूरी तरह से मेड इन इंडिया है. इसकी खासियत ये है कि इसे भारतीय कच्चे माल और डिजाइन से तैयार किया गया है और इसे विकसित करने में खाद्य मंत्रालय ने भी मदद की है.

खाद निर्माण में भारत बनेगा आत्मनिर्भर

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जल घुलनशील खाद को बनाने वाली तकनीक को विकसित करने में अहम भूमिका निभाने वाले सॉल्युबल फर्टिलाइज़र इंडस्ट्री एसोसिएशन (SFIA) के अध्यक्ष राजीव चक्रवर्ती ने बताया कि इस शोध के पीछे उनका उद्देश्य भारत के खाद-उर्वरक बनाने वाले क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है. उन्होंने आगे कहा कि, अब समय आ गया है कि भारत आयात पर निर्भर रहने वाला देश नहीं, बल्कि एक निर्यातक राष्ट्र बने.

सीधे किसानों तक पहुंचेगी खाद

सरकार ने खाद बनाने वाली इस नई तकनीक की अच्छे से जांच-पड़ताल कर ली है और इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए हरी झंडी भी दे दी गई है. इसके साथ ही ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है कि आने वाले 2 सालों में इस खाद के उत्पादन के लिए यूनिट्स शुरू कर दी जाएंगी. ताकि खाद निर्माण के बाद इसे सीधा किसानों तक पहुंचाया जा सके.  बता दें कि, भारत ने इस तकनीक को ऐसे समय पर विकसित किया है जब चीन ने संकेत दिया है कि वह अगले महीने से उर्वरकों के निर्यात पर रोक लगा सकता है. ऐसे समय में इस शोध का सफल होना और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है.