Potato Farming : सुबह की हल्की धूप और खेतों में लहराती हरी पत्तियां… आलू की फसल इस मौसम में अपनी रफ्तार पकड़ चुकी होती है. हर किसान चाहता है कि उसकी मेहनत का रंग ऐसा निखरे कि तौल मशीन भी बोरी गिनते-गिनते थक जाए. लेकिन इसके लिए सिर्फ बुवाई और सिंचाई ही काफी नहीं होती. खेती के कुछ खास दिन बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और आलू की फसल के लिए 40वें से 70वें दिन तक की अवधि सबसे ज्यादा कीमती मानी जाती है. इसी समय किया गया एक छोटा-सा काम खेत को सोना उगलने लायक बना सकता है.
आलू की फसल का सबसे नाजुक समय
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, किसान आमतौर पर 70-75 दिन में कच्ची खुदाई करते हैं, जबकि जो लोग आलू स्टोर करना चाहते हैं, वे 120-130 दिन बाद खुदाई करते हैं. लेकिन चाहे खुदाई जल्दी हो या देर से-40 से 70 दिन का समय फसल की ग्रोथ के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है. इस दौरान आलू सबसे तेजी से पोषक तत्व खींचता है. अगर किसान इस समय फसल को सही मात्रा में खाद दे दें, तो आलू की जड़ें मजबूत होती हैं, गांठें सही आकार लेती हैं और पैदावार कई गुना बढ़ जाती है. यही वजह है कि विशेषज्ञ इस समय पर उर्वरक देने को खेती की सबसे जरूरी प्रक्रिया मानते हैं.
मिट्टी चढ़ाते समय दें नाइट्रोजन और जिंक-उत्पादन होगा दोगुना
खेत में दूसरी जुताई के बाद जब किसान पौधों पर मिट्टी चढ़ाते हैं, उसी समय नाइट्रोजन और जिंक देना फसल के लिए बेहद फायदेमंद होता है. आलू को पूरे सीजन में 120 से 150 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है. इसमें से आधी मात्रा बुवाई के समय ही दे दी जाती है. बची हुई नाइट्रोजन मिट्टी चढ़ाते समय दी जानी चाहिए, ताकि पौधा तेजी से बढ़े और गांठें मजबूत बनें. इसके साथ ही जिंक सल्फेट की भी जरूरत होती है, जो आलू की त्वचा, साइज और क्वालिटी सुधारने में अहम भूमिका निभाता है. नाइट्रोजन देने का समय भी बड़ा मायने रखता है-खासकर दोपहर में यह खाद नहीं देनी चाहिए. शाम का समय नाइट्रोजन देने के लिए सबसे सुरक्षित और असरदार माना जाता है.
बेसल डोज सही दी तो आधी खेती पहले ही सफल
आलू की खेती में शुरुआत ही आधी जीत होती है. किसान अगर बुवाई के वक्त बेसल डोज में सभी जरूरी खाद मिला दे, तो बाद में फसल बेहद तेजी से बढ़ती है.
बुवाई के समय क्या दें?
- फास्फोरस-पूरी मात्रा
- पोटाश-पूरी मात्रा
- नाइट्रोजन-आधी मात्रा (60-75 kg/ha)
- सभी खाद कूड में अच्छी तरह मिलाकर दें
यह शुरुआती पोषण आलू को मजबूत नींव देता है और बाद की उर्वरक मात्रा को ज्यादा प्रभावी बनाता है.
सही देखभाल से मिल सकता है 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसान 40-70 दिन वाले समय में फसल की सही देखभाल करें और उर्वरक को संतुलित तरीके से दें, तो पैदावार आसानी से 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है. इससे न केवल फसल मोटी और स्वस्थ बनती है, बल्कि स्टोर करने वाले किसानों को भी बड़ा फायदा मिलता है-क्योंकि मिट्टी चढ़ाए समय दी गई खाद की वजह से आलू की गाठें अधिक ठोस और टिकाऊ रहती हैं.