National Ethanol Mobility Roadmap: इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) और इंडियन फेडरेशन ऑफ ग्रीन एनर्जी (IFGE) ने सरकार से एक संयुक्त अपील की है कि वह ‘नेशनल एथनॉल मोबिलिटी रोडमैप’ जारी करे. इस रोडमैप में E-20 से आगे एथनॉल ब्लेंडिंग के लक्ष्य तय किए जाएं. इसके साथ ही फ्लेक्स-फ्यूल व्हीकल्स (FFVs) और स्मार्ट हाइब्रिड व्हीकल्स पर जीएसटी में राहत और ईवी की तरह ग्राहकों को प्रोत्साहन देने की मांग की गई है. यह मांग ऐसे समय आई है जब भारत ने तय समय से 5 साल पहले E-20 ब्लेंडिंग का लक्ष्य हासिल कर लिया है, जिसे दुनिया भर में सराहा जा रहा है. इस सफलता का श्रेय सरकार की मजबूत नेतृत्व क्षमता और शुगर, बायोएनेर्जी और ऑटो सेक्टर के आपसी सहयोग को दिया जा रहा है. इससे भारत वैश्विक स्तर पर सस्टेनेबल फ्यूल ट्रांजिशन में अग्रणी देशों में शामिल हो गया है.
इस पूरी पहल में चीनी उद्योग की अहम भूमिका रही है, जिसने अब तक करीब 40,000 करोड़ रुपये का निवेश कर सालाना 900 करोड़ लीटर से अधिक एथनॉल उत्पादन क्षमता विकसित की है. इससे गन्ने की मांग बढ़ी है, किसानों की आय में सुधार हुआ है, बकाया भुगतान में तेजी आई है, मिलों की नकदी स्थिति सुधरी है और ग्रामीण स्तर पर लाखों रोजगार बने हैं.
उद्योग 1,776 करोड़ लीटर एथनॉल की आपूर्ति के लिए तैयार
ISMA के डायरेक्टर जनरल दीपक बल्लानी ने कहा कि चीनी उद्योग ने समय से पहले एथनॉल लक्ष्य हासिल कर दिखाया है, लेकिन अब इस क्रांति को बनाए रखने के लिए स्पष्ट और दीर्घकालिक नीति जरूरी है. फिलहाल उद्योग 1,776 करोड़ लीटर एथनॉल की आपूर्ति के लिए तैयार है, जबकि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को 1,050 करोड़ लीटर की जरूरत है. इससे साफ है कि उद्योग 27 फीसदी ब्लेंडिंग के लिए भी तैयार है. लेकिन E-20 के बाद का रोडमैप न होने से उत्पादन क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं हो पाएगा, जिससे निवेश बेकार हो सकता है, मिलों की आय घट सकती है और बायोफ्यूल क्षेत्र की नई रिसर्च धीमी पड़ सकती है. इसलिए जरूरी है कि सरकार एक स्पष्ट, चरणबद्ध और समयबद्ध रोडमैप लाए, जिसमें ब्लेंडिंग लक्ष्य, वाहन अनुकूलन मानक और 2G/3G एथनॉल, सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल और ग्रीन केमिकल्स जैसे विकल्पों को भी शामिल किया जाए.
पिछले तीन वर्षों से B-हैवी शीरा और गन्ने के रस से बनने वाले एथनॉल की खरीद कीमत न बढ़ने के कारण एथनॉल उद्योग पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है. इससे इसके विकास की रफ्तार धीमी पड़ सकती है और अब तक मिली उपलब्धियां भी प्रभावित हो सकती हैं. इसलिए E-20 के बाद के लिए एक स्पष्ट रोडमैप जरूरी है, ताकि उत्पादन क्षमता का सही उपयोग हो सके, किसानों की आमदनी बनी रहे और एथनॉल क्रांति की गति बरकरार रहे.
E-20 से आगे के लक्ष्य तय हों
IFGE के अध्यक्ष डॉ. प्रमोद चौधरी ने कहा कि भारत की एथनॉल सफलता सरकार और उद्योग के मजबूत सहयोग का परिणाम है. इसे आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सरकार 2030 तक का ‘नेशनल एथनॉल मोबिलिटी रोडमैप’ जारी करे, जिसमें E-20 से आगे के लक्ष्य तय हों. इसमें गाड़ियों के लिए नए तकनीकी मानकों को शामिल किया जाए, एडवांस्ड बायोफ्यूल को बढ़ावा दिया जाए और ग्रीन केमिकल्स की दिशा में विविधीकरण हो. इससे निवेश सुरक्षित रहेगा, नई तकनीकों पर रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा और भारत सस्टेनेबल बायो-एनर्जी में अग्रणी बन सकेगा.
75,000 करोड़ रुपये तक की बचत
संयुक्त अपील में यह भी कहा गया है कि फ्लेक्स-फ्यूल व्हीकल्स (FFVs) और स्मार्ट हाइब्रिड व्हीकल्स भारत को पारंपरिक पेट्रोल-डीजल गाड़ियों से स्वच्छ ऊर्जा वाहनों की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. ये वाहन E-100 तक के एथनॉल मिश्रण पर भी चल सकते हैं, जिससे प्रदूषण और पेट्रोलियम पर निर्भरता कम हो सकती है. लेकिन इन पर 43 फीसदी जीएसटी लगता है, जबकि ईवी पर सिर्फ 5फीसदी जीएसटी है. इस अंतर को खत्म कर सही नीतिगत समर्थन मिलने से भारत हर साल 50,000–75,000 करोड़ रुपये तक का तेल आयात बिल बचा सकता है और आत्मनिर्भर भारत के विजन को मजबूती दे सकता है. इससे भारत 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य की ओर भी मजबूती से बढ़ सकेग.