कश्मीर में पोल्ट्री उद्योग एक बड़े संकट से जूझ रहा है. कभी जम्मू-कश्मीर की 80-85 फीसदी मांग पूरी करने वाला यह क्षेत्रीय उद्योग अब महज 15-20 प्रतिशत उत्पादन पर सिमट कर रह गया है. घाटी के 5.5 लाख से अधिक लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा मंडरा रहा है. इस हालात को देखते हुए कश्मीर वैली पोल्ट्री फार्मर्स एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को एक आपातकालीन (SOS) ज्ञापन सौंपा है.
बाहरी सप्लाई और सरकारी नीतियों ने बिगाड़ी हालत
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार किसानों का आरोप है कि केंद्र शासित प्रदेश में बाहरी राज्यों से सस्ती, पुराने स्टॉक की और कम गुणवत्ता वाली ड्रेस्ड चिकन की बाढ़ आ गई है. ये चिकन बिना ठंडी श्रृंखला (cold chain), स्वास्थ्य जांच या पैकेजिंग सुरक्षा के लंबे सफर तय कर घाटी पहुंच रही हैं.
इन मांस उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए किसानों ने कहा कि इनमें से कई चिकन तो बूढ़ी मुर्गियां होती हैं, जिन्हें आम तौर पर जानवरों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ना इन पर शेल्फ लाइफ लिखी होती है, ना स्रोत का पता होता है, जिससे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा बना हुआ है.
कर हटने से बढ़ा संकट, घाटे में स्थानीय किसान
किसानों ने लखनपुर टोल टैक्स (9 रुपये प्रति किलो) को हटाए जाने को भी बड़ी गलती बताया है. यह टैक्स पहले बाहरी सप्लाई को कंट्रोल करने और स्थानीय उद्योग को सुरक्षा देने का काम करता था. अब इसके हटने से बाहरी कंपनियां घाटी में सस्ती चिकन बेच रही हैं, जिससे स्थानीय किसान अपने उत्पाद बेच ही नहीं पा रहे.
कई पोल्ट्री फार्म सरकारी योजनाओं के तहत बैंक लोन लेकर शुरू किए गए थे, जो अब घाटे में हैं. किसान कर्ज के बोझ तले दब चुके हैं.
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भी खतरा
एसोसिएशन ने बताया कि बाहरी राज्यों से चिकन लाने में भारी मात्रा में पैकेजिंग वेस्ट, कार्बन उत्सर्जन और बायोहैजार्ड (जैविक खतरे) बढ़ रहे हैं. बिना जांच और मानकों के ये प्रोडक्ट स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुके हैं. इससे फूड पॉइजनिंग, एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस और ज़ूनोटिक बीमारियों का डर भी बढ़ गया है.
किसानों की मांगें और चेतावनी
कश्मीर पोल्ट्री एसोसिएशन ने सरकार से तुरंत कुछ अहम कदम उठाने की मांग की है-
- बाहरी, पुरानी और गंदगी भरी चिकन पर तुरंत बैन लगे.
- सभी पोल्ट्री उत्पादों के लिए FSSAI प्रमाणन, कोल्ड चेन और स्वच्छता जांच अनिवार्य हो.
- फूड सेफ्टी, पशुपालन, उपभोक्ता मामलों और पोल्ट्री उद्योग से जुड़े अफसरों की एक टास्क फोर्स बनाई जाए.
- पुराने टोल टैक्स की जगह एनवायरनमेंट एंड बायो-सिक्योरिटी सेस लागू हो.
- घाटे में चल रहे किसानों के लिए राहत पैकेज, लोन मोराटोरियम और ब्याज में छूट दी जाए.
किसानों ने ये भी साफ किया कि अगर सरकार बाहरी बड़ी कंपनियों को जमीन देने की योजना बना रही है, तो पहले स्थानीय किसानों की संपत्तियां खरीदकर उनके कर्ज चुकाए जाएं और उन्हें सरकारी नौकरियां दी जाएं.