देश के प्रमुख जलाशयों में इस समय पानी की मात्रा उत्साहजनक रूप से बढ़ी हुई है. केंद्र सरकार द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश के 161 प्रमुख जलाशयों में से लगभग 45 फीसदी पूरी तरह भरे हुए हैं, जबकि कई अन्य जलाशयों में क्षमता का 90 फीसदी से अधिक पानी मौजूद है. यह स्थिति किसानों के लिए बड़ी राहत लेकर आई है, खासकर उन किसानों के लिए जो आने वाले रबी सीजन में फसल उगाने की योजना बना रहे हैं.
जलाशयों की वर्तमान स्थिति
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, देश के जलाशयों में कुल 158.765 BCM पानी भरा हुआ है, जो उनकी कुल क्षमता का 87 फीसदी है. यह पिछले साल की तुलना में 2.5 फीसदी अधिक और पिछले 10 साल के औसत से लगभग 15 फीसदी बेहतर है. महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में कई जलाशय पूरी तरह से भरे हुए हैं. विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत के जलाशयों में 90 फीसदी से अधिक पानी मौजूद है.
मानसून और क्षेत्रीय असर
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल मानसून की बारिश में क्षेत्रीय अंतर रहा. उत्तर-पश्चिमी भारत में 34 फीसदी अधिक बारिश हुई, मध्य भारत में 11 फीसदी और दक्षिण भारत में 7 फीसदी अधिक वर्षा दर्ज की गई. वहीं, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों में 20 फीसदी कम बारिश हुई. विशेषज्ञों का मानना है कि मानसून अब भी सक्रिय है और सितंबर के महीने में जारी रहने की संभावना है, जिससे जलाशयों का स्तर और बढ़ सकता है.
कृषि क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव
भरपूर जलाशयों का लाभ सीधे तौर पर कृषि क्षेत्र में दिखाई देगा. सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होने से रबी फसलों को समय पर पानी मिलेगा. इसके परिणामस्वरूप गेहूं, चना, सरसों और अन्य रबी फसलों की पैदावार बढ़ने की संभावना है. किसान अब अपने खेतों में सिंचाई योजनाओं का सही समय पर लाभ उठा पाएंगे, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बेहतर होंगे.
ग्रामीण जलापूर्ति और ऊर्जा उत्पादन में मदद
जलाशयों का भराव केवल कृषि तक सीमित नहीं है. यह ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने और विद्युत उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण है. भरपूर जलाशय ग्रामीण समुदायों को पानी की कमी से बचाएंगे और जल विद्युत संयंत्रों की क्षमता में सुधार करेंगे.
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि मानसून सक्रिय रहता है, तो आने वाले महीनों में जलाशयों की स्थिति और बेहतर हो सकती है. इससे किसानों को सिंचाई संकट से राहत मिलेगी और पैदावार में वृद्धि होने की संभावना बढ़ेगी. इसके साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा भी मजबूत होगी.