बंजर जमीन पर होगी लाखों की कमाई, जानें कब और कैसे लगाएं अश्वगंधा

आयुर्वेदिक और हर्बल दवाओं की लोकप्रियता बढ़ने से अश्वगंधा की मांग में जबरदस्त उछाल आया है. यह जड़ी-बूटी शरीर को तनावमुक्त रखने, नींद सुधारने, इम्यूनिटी बढ़ाने और शुगर जैसी बीमारियों में राहत देने के लिए मशहूर है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 3 Nov, 2025 | 04:03 PM

Ashwagandha farming: भारत में खेती के पारंपरिक तरीकों से हटकर अब किसान नई और मुनाफे वाली फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. इन्हीं में से एक है अश्वगंधा, जो न सिर्फ औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि किसानों के लिए कम लागत और अधिक मुनाफे वाली फसल बनती जा रही है. इसे “इंडियन जिनसेंग” के नाम से भी जाना जाता है और आज इसकी मांग देश ही नहीं, विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है.

अश्वगंधा की बढ़ती मांग का राज

आयुर्वेदिक और हर्बल दवाओं की लोकप्रियता बढ़ने से अश्वगंधा की मांग में जबरदस्त उछाल आया है. यह जड़ी-बूटी शरीर को तनावमुक्त रखने, नींद सुधारने, इम्यूनिटी बढ़ाने और शुगर जैसी बीमारियों में राहत देने के लिए मशहूर है. यही कारण है कि फार्मास्युटिकल कंपनियों, हेल्थ सप्लीमेंट ब्रांड्स और एक्सपोर्ट मार्केट में इसकी डिमांड लगातार बढ़ रही है.

कहां और कैसे होती है इसकी खेती

अश्वगंधा की खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में की जाती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह कम पानी और सूखी मिट्टी में भी अच्छी तरह पनप जाती है. यानी जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा सीमित है, वहां भी यह फसल आसानी से ली जा सकती है.

खेती के लिए हल्की रेतीली या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें पानी का जमाव न हो. अगर खेत की तैयारी मानसून से पहले कर ली जाए और गोबर की सड़ी खाद मिलाई जाए, तो उत्पादन बेहतर होता है.

बीज और नर्सरी की तैयारी

अश्वगंधा की बुआई के लिए जून से जुलाई का समय सबसे उपयुक्त होता है. पहले बीजों की नर्सरी तैयार की जाती है और फिर 35–40 दिन बाद पौधों को मुख्य खेत में ट्रांसप्लांट किया जाता है. खेत में पौधों के बीच लगभग 20 सेमी की दूरी रखनी चाहिए, ताकि उन्हें बढ़ने की पर्याप्त जगह मिल सके. एक हेक्टेयर में केवल 5 किलो बीज ही काफी होते हैं, जिससे पूरे खेत में पौधे तैयार किए जा सकते हैं.

सिंचाई और देखभाल

अश्वगंधा ऐसी फसल है जिसे बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती. हर 8–10 दिन में हल्की सिंचाई पर्याप्त होती है. ज्यादा पानी देने से जड़ सड़ सकती है और फसल खराब हो सकती है. फसल की शुरुआती अवस्था में दो बार निराई-गुड़ाई करना जरूरी होता है, ताकि खरपतवार न बढ़े और पौधों को सही पोषण मिले.

कटाई और कमाई

लगभग 5 से 6 महीने में यानी 160–180 दिनों में अश्वगंधा की फसल तैयार हो जाती है. जब पौधे की पत्तियां सूखने लगें और फल नारंगी-लाल रंग के हो जाएं, तो जड़ों की कटाई का समय आ जाता है. जड़ों को उखाड़कर धोया जाता है, 8–10 सेंटीमीटर के टुकड़ों में काटकर सुखाया जाता है. यही सूखी जड़ें बाजार में बेची जाती हैं, जिनकी कीमत 120 से 180 रुपये प्रति किलो तक होती है. अगर सही तरीके से खेती की जाए तो एक हेक्टेयर जमीन से किसान 4 से 5 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं.

कमाई के साथ स्वास्थ्य का फायदा

अश्वगंधा खेती किसानों को आर्थिक मजबूती देने के साथ-साथ एक प्राकृतिक योगदान भी देती है. इसकी जड़ें मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाती हैं और भूमि की नमी को बरकरार रखती हैं. इसलिए इसे पर्यावरण के अनुकूल फसल भी माना जाता है.

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