महाराष्ट्र सरकार अब राज्य के गुड़ उद्योग को नए कानून के जरिए संगठित ढांचे में लाने की तैयारी कर रही है. सरकार का दावा है कि इससे पारदर्शिता, अनुशासन और जवाबदेही बढ़ेगी, लेकिन छोटे गुड़ उत्पादकों में चिंता की लहर है. कुछ का कहना है कि यह कदम मिलावट रोकने और उद्योग को बेहतर दिशा देने वाला होगा, जबकि अन्य का मानना है कि यह पहले से संघर्ष कर रहे छोटे उत्पादकों पर और बोझ डाल देगा.
सरकार का लक्ष्य
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, गुड़ उद्योग लंबे समय से असंगठित ढांचे में काम कर रहा है. खासतौर पर महाराष्ट्र के पश्चिमी हिस्सों में, जहां गन्ना उत्पादन अधिक होता है, गुड़ के कारखाने अक्सर नकद लेनदेन पर आधारित होते हैं और ज्यादातर बिना किसी सरकारी पंजीकरण के चलते हैं. इससे किसानों और उत्पादकों के बीच भुगतान से जुड़े विवाद आम हैं.
सरकार चाहती है कि इस क्षेत्र को भी सहकारी शुगर फैक्ट्रियों की तरह कानूनी और पारदर्शी व्यवस्था में लाया जाए. इसके तहत सभी गुड़ बनाने वाली इकाइयों का पंजीकरण अनिवार्य किया जा सकता है. नए कानून में गन्ना खरीद, कीमत तय करने, उत्पादन मानक और मार्केटिंग से जुड़ी गाइडलाइन शामिल की जाएंगी. साथ ही, किसानों और गुड़ उत्पादकों के बीच औपचारिक अनुबंध करने की भी सिफारिश हो सकती है, ताकि दोनों पक्षों के हित सुरक्षित रहें.
उम्मीद और आशंका दोनों
सांगली के गुड़ उत्पादक रोहन कोलसे का कहना है कि यह कानून स्वागत योग्य कदम है. “आज गुड़ के नाम पर बाजार में बहुत मिलावट हो रही है. कच्ची चीनी को गुड़ पाउडर बनाकर बेचा जा रहा है. अगर सरकार इसकी परिभाषा और मानक तय कर दे तो यह हमारे उद्योग के लिए अच्छा रहेगा.”
वहीं, कोल्हापुर के एक छोटे उत्पादक राम पाटिल की राय बिल्कुल उलट है. उनका कहना है कि सरकार के ये सख्त नियम छोटे गुड़ कारखानों पर भारी पड़ेंगे. “हम पहले से ही चीनी मिलों से प्रतिस्पर्धा में पीछे हैं. किसान अब ज्यादा दाम मिलने के कारण मिलों को गन्ना देना पसंद करते हैं. अगर सरकार और नियम लगाएगी, तो छोटे गुड़ व्यवसायी धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे.”
पाटिल का कहना है कि गुड़ उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो हजारों लोगों को रोजगार देता है. “सरकार को हमें सख्त कानूनों से नहीं, बल्कि प्रोत्साहन योजनाओं और वित्तीय मदद से मजबूत करना चाहिए.”
गुड़ उद्योग की अहमियत और संभावनाएं
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा गुड़ उत्पादन करने वाला देश है, वैश्विक उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा भारत में होता है. महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश इस क्षेत्र के अग्रणी राज्य हैं. गुड़ को “प्राकृतिक मीठा” और “औषधीय चीनी” कहा जाता है, जो शरीर के लिए फायदेमंद मानी जाती है.
IMARC Group की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का पैक्ड गुड़ बाजार साल 2024 में 71.3 अरब रुपये तक पहुंच गया था और 2033 तक इसके 202 अरब रुपये तक पहुंचने की संभावना है. अगर महाराष्ट्र अपने गुड़ उद्योग को संगठित और आधुनिक बना लेता है, तो वह इस बढ़ते वैश्विक बाजार में बड़ी हिस्सेदारी हासिल कर सकता है.