न यादव, न भूमिहार… सबसे ज्यादा इस जाति से बने मंत्री! आखिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या देना चाहते हैं संदेश?

Bihar Cabinet 2025: बिहार की नई सरकार में नीतीश कुमार ने ऐसा कैबिनेट फॉर्मूला लागू किया है जिसने पूरी राजनीति का गणित हिला दिया है. इस बार न यादवों का दबदबा रहा, न भूमिहारों की पकड़… सबसे ज्यादा कुर्सियां मिलीं उस जाति समूह को, जिसे अब नीतीश अपनी असली राजनीतिक ताकत बनाना चाहते हैं. संदेश साफ है यह मंत्रिमंडल सिर्फ पदों का बंटवारा नहीं, बल्कि आने वाले चुनावों का बड़ा संदेश है, “बैकवर्ड है तो पॉवर आपकी है.”

Isha Gupta
नोएडा | Published: 20 Nov, 2025 | 01:10 PM

Bihar Cabinet 2025: बिहार की सियासत में एक बार फिर बड़ा राजनीतिक संकेत सामने आया है. नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर इतिहास रच दिया, लेकिन शपथ ग्रहण समारोह से ज्यादा चर्चा उस संदेश की हो रही है जो नई कैबिनेट की जातीय संरचना देती दिख रही है.

इस बार न यादव सबसे ज्यादा मंत्री बनाए गए, न भूमिहार और न ही कोई दूसरी पारंपरिक दबंग जाति. मंत्रिमंडल में सबसे अधिक जगह मिली है ओबीसी की उपजाति कुशवाहा समाज को.

कुशवाहा समाज पर नीतीश का फोकस क्यों?

नई कैबिनेट में कुशवाहा समाज के कई प्रमुख चेहरे शामिल किए गए हैं. इसमें सबसे ऊपर डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी का नाम है. इससे साफ है कि नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों एक ही राजनीतिक संदेश दे रहे हैं, 2025 की राजनीति पिछड़ा समेकन यानी पीछे छूटे पिछड़ों की एकजुटता पर टिकेगी. कुशवाहा वोट बैंक बिहार में करीब 7–8 फीसदी माना जाता है और कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है. एनडीए का यह कदम उसी सामाजिक समीकरण को मजबूत करता है.

दो डिप्टी सीएम और संतुलन की रणनीति

नीतीश कुमार के शपथ लेने के तुरंत बाद दो डिप्टी सीएम — सम्राट चौधरी (कुशवाहा) और विजय सिन्हा (भूमिहार) ने भी शपथ ली. इससे एक तरफ ओबीसी को ताकत दी गई, वहीं दूसरी ओर सवर्ण वोटबैंक को भी साधने की कोशिश साफ दिखती है. यह संतुलन नीतीश मॉडल की पहचान रहा है और इस बार भी वही रणनीति दोहराई गई है.

जाति मंत्रियों की संख्या
राजपूत 4
भूमिहार 2
ब्राह्मण 1
कायस्थ 1
कुशवाहा 3
कुर्मी 2
वैश्य/बनिया 2
यादव 2
मुस्लिम 1
मल्लाह/निषाद 2
दलित 5
अन्य अति पिछड़ा 1

वरिष्ठ नेताओं का प्रमोशन, लेकिन संदेश अलग

रामकृपाल यादव, बिजेंद्र यादव और नितिन नबीन जैसे बड़े और अनुभवी नेताओं को भी मंत्री बनाया गया है, लेकिन उनकी संख्या ज्यादा नहीं रखी गई. इससे नीतीश कुमार ने साफ दिखा दिया कि इस बार उनकी सरकार का फॉर्मूला है हर जाति को जगह मिले, लेकिन असली फोकस पिछड़ी जातियों पर रहेगा.

यादव समाज से दो बड़े चेहरे – रामकृपाल यादव और बिजेंद्र यादव को मंत्री बनाया गया है. लेकिन ज्यादा संख्या नहीं देकर यह संदेश दिया गया है कि सरकार अब किसी एक जाति को ज्यादा ताकत देने के बजाय संतुलन बनाए रखना चाहती है.

राजपूत समाज से आने वाली अंतरराष्ट्रीय शूटर श्रेयसी सिंह को पहली बार मंत्री बनाकर युवा चेहरे, महिला नेतृत्व और सवर्ण प्रतिनिधित्व—तीनों को एक साथ मैसेज दिया गया है.

दलित और अल्पसंख्यक समाज को भी जगह

मंत्रिमंडल में अशोक चौधरी और सुनील कुमार जैसे दलित नेताओं को जगह देकर NDA ने दलित और आदिवासी (SC/ST) वोटरों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है. साथ ही, मोहम्मद जमा खान को मंत्री बनाकर मुस्लिम समाज को भी कम सही, लेकिन एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व दिया गया है, ताकि यह संदेश जाए कि सरकार में हर समुदाय की कुछ न कुछ भागीदारी है.

क्या है सबसे बड़ा संदेश?

अगर कैबिनेट की पूरी सूची देखें तो साफ पता चलता है:

  • कुशवाहा और कुर्मी जैसे गैर-प्रमुख OBC समूहों को अधिक महत्व
  • सवर्णों से सीमित लेकिन स्ट्रेटेजिक प्रतिनिधित्व
  • यादव समाज को संतुलित जगह
  • दलित और अल्पसंख्यक को प्रतीकात्मक भागीदारी

यह पूरा समीकरण एक ही संदेश देता है, नीतीश कुमार अब जातीय वर्चस्व की राजनीति नहीं, बल्कि बैलेंस प्लस ग्राउंड OBC सशक्तिकरण की राजनीति को मजबूत करना चाहते हैं. 2025 और आगे के चुनावों में यह जातीय संतुलन NDA की सबसे बड़ी रणनीतिक पूंजी होगा.

मंत्रियों की सूची में जातीय विविधता साफ

सम्राट चौधरी (कुशवाहा), श्रवण कुमार (कुर्मी), लेशी सिंह (राजपूत), मंगल पांडेय (ब्राह्मण), बिजेंद्र प्रसाद यादव (यादव), अशोक चौधरी व सुनील कुमार (दलित), मोहम्मद जमा खान (मुस्लिम), नितिन नवीन (कायस्थ) और कई OBC चेहरे. यह पूरा मिश्रण “सबका साथ, पर फोकस पिछड़ों पर” की रणनीति दिखाता है.

नीतीश कुमार ने नई कैबिनेट के जरिए साफ संकेत दिया है कि आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति पूरी तरह OBC-केंद्रित बनेगी. कुशवाहा समाज पर विशेष फोकस इसका पहला बड़ा संकेत है, और यह संदेश दूर तक जाएगा.

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