पीएम विश्वकर्मा योजना के 29 लाख कारीगरों की सुधरेगी स्थिति, सहकारी संस्थाओं से जोड़ने की तैयारी

पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद में संयुक्त सचिव केके त्रिपाठी ने विश्वकर्मा योजना से जुड़े कारीगरों और हस्तशिल्पियों को संगठित कर सहकारी संस्थाओं के रूप में गठित करने की संभावनाओं पर बल दिया. इससे उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान, आजीविका में मजबूती और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सामूहिक प्रयास को गति दी जा सकेगी.

नोएडा | Published: 8 Jun, 2025 | 02:46 PM

केंद्र सरकार ने कारीगरों और शिल्पकारों को स्थायी आय कमाने का जरिया देने के लिए उन्हें विश्वकर्मा योजना से जोड़ गया है. योजना के जरिए कारीगरों को लोन के जरिए वित्तीय मदद देकर उनके कारोबार को बेहतर करके आजीविका में सुधार किया गया है. विश्वकर्मा योजना से जुड़े 29 लाख से ज्यादा कारीगरों और शिल्पकारों के आर्थिक उत्थान और सामाजिक बेहतरी के लिए सहकारी संस्थाओं से जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया गया है. इसके लिए सहकारी संस्थाओं के गठन की बात कही गई है.

भारत सरकार में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में संयुक्त सचिव केके त्रिपाठी ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के साथ सहकारी संस्थाएं ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में समावेशी एवं टिकाऊ विकास की मज़बूत नींव हैं. उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा योजना से जुड़े कारीगरों और पारंपरिक हस्तशिल्पियों को संगठित कर सहकारी संस्थाओं के रूप में गठित करने की संभावनाओं पर बल दिया. इससे उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान, आजीविका में मजबूती और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सामूहिक प्रयास को गति दी जा सके.

सहकारी संस्थाएं आर्थिक विकास का जरूरी तत्व

एमएसएमई और सहकारी संस्थाएं भारतीय अर्थव्यवस्था के दो मजबूत स्तंभ हैं. ये खासतौर पर ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में अहम भूमिका निभाते हैं. पीएम मोदी ने कई मंचों पर एमएसएमई और सहकारी संस्थाओं को भारत की आर्थिक वृद्धि और सामाजिक एकता के जरूरी तत्वों के रूप में बताया है. उन्होंने सब्जी विक्रेताओं, दूध वालों, किराना दुकानदारों, धोबियों, अखबार विक्रेताओं, बुनकरों, कारीगरों, फूल विक्रेताओं, दर्जियों आदि जैसे विभिन्न पेशों को भारत की रीढ़ बताया है.

आजादी के बाद सहकारी संस्थाओं अहम भूमिका रही

स्वतंत्रता से पहले भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की गंभीर समस्या को देखते हुए सहकारी ऋण समितियां अधिनियम 1904 को लागू किया गया था. इसका उद्देश्य ग्रामीण ऋण की समस्या से निपटना और ऋण समितियों को एक औपचारिक व कानूनी पहचान देना था. स्वतंत्रता के बाद सहकारी संस्थाओं को एक जरूरी नीति उपकरण के रूप में स्वीकार किया गया. इसकी वजह से अमूल (आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड), भारतीय किसान उर्वरक सहकारी संस्था लिमिटेड (इफको), कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड) जैसी प्रमुख संस्थाएं भी सहकारी ढांचे से विकसित हुईं. यह सहकारी संस्थाएं आज विकास के ढांचे का केंद्र बन चुकी हैं.

एमएसएमई से जुड़े हैं 3.64 लाख स्वयं सहायता समूह

रिपोर्ट में एमएसएमई विकास आयुक्त कार्यालय के हवाले से दिए गए आंकड़ों के अनुसार 10 अप्रैल 2025 तक देश में छोटी बड़ी सहकारी संस्थाओं की संख्या 34,897 है. स्वयं सहायता समूह की संख्या 3,64,027 है. इन सहकारी संस्थाओं और स्वयं सहायता समूहों से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं और पुरुष जुड़े हुए हैं. अप्रैल 2025 तक भारत में कुल 6.24 करोड़ से अधिक पंजीकृत एमएसएमई थे, जो 26 करोड़ से अधिक लोगों को रोज़गार दे रहे थे. ये एमएसएमई भारत के स्थिर मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 33% और देश के कुल निर्यात में लगभग 48% का योगदान करते हैं.

विश्वकर्माओं की सहकारी समितियों का गठन जरूरी

रिपोर्ट में कहा गया कि पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत 25 अप्रैल 2025 तक 29 लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड कारीगर और शिल्पकार हैं. योजना के तहत मोची, कुम्हार, बढ़ई, धोबी समेत 18 ट्रेड्स का काम करने वालों को शामिल किया गया है. कहा गया है कि सहकारी संस्थाओं के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत कई अवसर उपलब्ध हैं. योजना का उद्देश्य इन पारंपरिक कारीगरों के उत्पादों और सेवाओं की क्वालिटी और उपलब्धता को बेहतर बनाना है. ताकि वे अपना जीवन स्तर ऊंचा उठा सकें. ऐसे में विश्वकर्माओं की सहकारी समितियों का क्लस्टर, ब्लॉक स्तर पर गठन किया जा सकता है.

कारीगर जिला स्तर पर बना सकते हैं सहकारी समिति

पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत प्रशिक्षित कारीगर ज़ि‍ला स्तर पर एक सहकारी समिति बना सकते हैं, जिसमें विभिन्न शिल्पकला के ट्रेड्स में विशेषज्ञता रखने वाले सदस्य शामिल हो सकते हैं. इस सहयोग से विभिन्न क्षेत्रों के कारीगर अपने विशिष्ट कौशल को मिलाकर विविध और हाई क्वालिटी वाले उत्पाद बना सकते हैं, जिससे व्यापार का विस्तार हो सकता है और सहकारी समिति विस्तृत बाज़ार में अपनी सेवाएं देने और ग्राहक मांगों को पूरा करने में सक्षम हो सकती है. इससे पीएम विश्वकर्मा योजना से जुड़े कारीगरों का आर्थिक विकास बेहतर होगा और उनकी सामाजिक स्थिति में भी बड़े स्तर पर सुधार होगा.

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि सहकारी एमएसएमई भारत के 2047 तक विकसित देश बनने के सपने को साकार करने में अहम योगदान दे सकती हैं, खासकर उनके फैलाव, पहुंच और रोज़गार सृजन के साथ संपत्ति निर्माण की क्षमता को ध्यान में रखते हुए ऐसा कहा जा सकता है.