चॉकलेट बच्चों और बड़ों की पसंदीदा मिठाई है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोको किसान के लिए अच्छी कमाई का जरिया बन सकता है? कोको की खेती से किसान एक एकड़ में करीब 12 लाख रुपये तक कमा सकते हैं. यह पारंपरिक फसलों जैसे धान, गेहूं या मक्का की तुलना में कई गुना अधिक लाभकारी है. आइए जानते हैं कोको की खेती के बारे में विस्तार से.
कोको की खेती और मुनाफा
कोको के पेड़ उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से उगते हैं. यदि एक एकड़ में लगभग 500 पेड़ लगाए जाएं, तो प्रत्येक पेड़ से औसतन 3 किलो बीज मिलते हैं. वर्तमान में कोको बीज की कीमत लगभग 800 रुपये प्रति किलो है. इसका मतलब है कि एक पेड़ से 2400 रुपये और पूरे 500 पेड़ों से लगभग 12 लाख रुपये की आमदनी हो सकती है.
कोको की खेती इंटरक्रॉपिंग, यानी अन्य फसलों के साथ भी की जा सकती है. इससे किसान अपने खेत से दोगुना लाभ कमा सकते हैं. उदाहरण के लिए, बड़े पेड़ों की छाया में कोको के छोटे पेड़ लगाए जा सकते हैं और नीचे अन्य फसलें जैसे केले, कॉफी या मसाले उगाए जा सकती हैं.
कोको के पेड़ की देखभाल
कोको के पेड़ शुरुआत में संवेदनशील होते हैं. इन्हें नियमित पानी, उपयुक्त खाद और कीट नियंत्रण की जरूरत होती है. विशेषकर बाधित मिट्टी और जल निकासी वाली भूमि में कोको अधिक लाभकारी होती है.
कोको के पेड़ की उम्र लगभग 30-40 साल होती है. हालांकि, अधिकतम लाभ लेने के लिए किसान आमतौर पर 15 साल तक इनका उत्पादन करते हैं. पेड़ की सही छंटाई, निराई और पानी की नियमित आपूर्ति उत्पादन को बढ़ाती है.
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
कोको के पेड़ 18 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान और 1500 से 2000 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह उगते हैं. इन्हें उच्च आर्द्रता और छायादार वातावरण पसंद होता है. शुरुआती वर्षों में पेड़ की देखभाल करना जरूरी है. मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए और अच्छी जल निकासी की सुविधा होनी चाहिए, ताकि जड़ें सड़ें नहीं.
फसल तैयार होने का समय
कोको के पेड़ लगभग 3 साल में फली देने लगते हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में 5 साल तक भी लग सकते हैं. फसल की अवधि आमतौर पर 150 से 170 दिन होती है. एक पेड़ साल में लगभग 20-30 फली देता है और हर फली में 30-50 बीज हो सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार और रिटर्न
विश्व में लगभग 70 फीसदी कोको पश्चिमी अफ्रीका में उगाया जाता है. इसके अलावा, मध्य और दक्षिण अमेरिका, तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में भी कोको की खेती होती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोको की मांग हमेशा उच्च रहती है क्योंकि यह चॉकलेट, कोको पाउडर और अन्य मीठे उत्पादों में इस्तेमाल होता है. भारत में भी कोको की कीमतें स्थिर हैं और निर्यात की संभावना भी बढ़ रही है.