लहसुन के रकबे में 166 फीसदी की बढ़ोतरी, हर साल 60000 टन उत्पादन.. किसानों की बढ़ी कमाई

सिरमौर में लहसुन की खेती 2015 से अब तक 166.67 फीसदी बढ़ी है और उत्पादन 60,000 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है. किसानों को बेहतर मुनाफा देने के लिए प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन और स्थानीय बीज उत्पादन पर जोर दिया गया है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 20 Jun, 2025 | 01:53 PM

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में बीते दस वर्षों में लहसुन की खेती में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. 2015 से 16 में जहां 1,500 हेक्टेयर में लहसुन की खेती होती थी, वहीं 2024 में यह रकबा बढ़कर करीब 4,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है. यानी लहसुन के रकबे में 166.67 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. अब जिले में हर साल करीब 60,000 मीट्रिक टन लहसुन का उत्पादन हो रहा है. इससे किसानों की बंपर कमाई हो रही है. हालांकि, इसके बावजूद, सिरमौर हर साल करीब 60 करोड़ रुपये खर्च कर अन्य राज्यों, खासकर जम्मू-कश्मीर से लहसुन के बीज खरीदता है.

वहीं, सीड साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. नरेंद्र भरत का कहना है कि विभाग 2015-16 से लहसुन, अदरक, हल्दी, धनिया और मेथी जैसी मसाला फसलों की व्यवसायिक खेती को बढ़ावा दे रहा है. इसके लिए खेत स्तर पर प्रदर्शन, बीज उत्पादन, तकनीक ट्रांसफर, प्राकृतिक खेती और बीज भंडारण की सुविधाएं विकसित की जा रही हैं. उन्होंने कहा कि किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए हर साल चार पंचायत स्तरीय ट्रेनिंग और एक जिला स्तरीय सेमिनार आयोजित किया जाता है.

अधिक सप्लाई किसानों के लिए बनी चुनौती

डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने मसाला खेती, खासकर लहसुन की खेती के सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि सिरमौर जिले के लिए लहसुन को ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन क्रॉप’ के रूप में चुना गया है. हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि बाजार में अधिक सप्लाई और गिरती कीमतें किसानों के लिए चुनौती बन रही हैं. इस स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन में कौशल विकास की जरूरत बताई, ताकि किसानों को बेहतर मुनाफा मिल सके.

लहसुन की शेल्फ लाइफ बढ़ाने पर रिसर्च

प्रो. चंदेल ने किसानों से अपील की कि वे स्थानीय लहसुन बीज उत्पादन के लिए विश्वविद्यालय से सहयोग करें. इससे बाहरी राज्यों पर निर्भरता कम होगी और स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा. उन्होंने शोधकर्ताओं से यह भी कहा कि लहसुन से तेल निकालने और उसकी शेल्फ लाइफ बढ़ाने, बीमारियों से बचाने व अंकुरण को रोकने के लिए रेडिएशन तकनीक पर रिसर्च करें.

वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने पर जोर

अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने लहसुन की गुणवत्ता और पैदावार बढ़ाने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने पर जोर दिया. उन्होंने लागत घटाने की बात कही और कहा कि फार्मर प्रोड्यूसर कंपनीज (FPCs) किसानों की सौदेबाजी की ताकत और बाजार तक पहुंच बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. ये जानकारियां डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में शुरू हुए दो दिवसीय सेमिनार के दौरान सामने आई हैं.

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Published: 20 Jun, 2025 | 01:51 PM

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