पंजाब में पराली जलाने के मामले कम होने के नाम नहीं ले रहे हैं. राज्य सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद किसान धड़ल्ले से गेहूं की पराली जला रहे हैं. कहा जा रहा है कि किसान इन-सिटू (in-situ) तरीके से पराली प्रबंधन करने की बजाय जल्दी खेत तैयार करने के लिए पराली जलाने का आसान रास्ता चुन रहे हैं. ताकि 1 जून से पहले धान की बुवाई शुरू की जा सके, जो सरकार द्वारा तय की गई तारीख है. यही वजह है कि राज्य में अभी तक पराली जलाने के 9,266 मामले सामने आ चुके हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल सबसे ज्यादा पराली जलाने के मामले अमृतसर जिले से सामने आए हैं, जहां 1,043 घटनाएं दर्ज हुई हैं. इसके बाद गुरदासपुर में 811, मोगा में 789, फिरोजपुर में 692, तरनतारन में 657 और बठिंडा में 618 मामले दर्ज किए गए. आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 18 मई तक कुल 9,266 पराली जलाने के मामले सामने आए हैं, जबकि 2023 में यह संख्या 10,644 और 2024 में 10,327 थी.
किसान इसलिए जला रहे पराली
सरहिंद-पटियाला रोड के पास नरायणपुरा गांव के एक किसान ने कहा कि मैंने पराली इसलिए जलाई, क्योंकि बाकी सब भी यही कर रहे हैं. पहले बाकी लोगों को रोकिए, फिर मुझसे सवाल कीजिए. हालांकि, किसान प्रदूषण और मिट्टी को नुकसान पहुंचने की बात को ‘मिथक’ यानी झूठा दावा मानते हैं और इसे नजरअंदाज कर रहे हैं. खेतों से उठने वाला धुआं आसपास की सड़कों पर चलने वाले लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता है और कई बार हादसे भी हो जाते हैं.
क्या कहते हैं PAU के वाइस चांसलर
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) के वाइस चांसलर डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने कहा कि गांवों में पशुपालन कम होने से भूसे की मांग घटी है. साथ ही भंडारण की कमी की वजह से किसान फसल अवशेष सहेजने के बजाय उसे जलाना आसान समझते हैं, जिससे मिट्टी की सेहत को नुकसान होता है. मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. जसविंदर सिंह ने कहा कि कृषि और किसान कल्याण विभाग पराली जलाने वालों की पहचान के लिए जांच कर रहा है.