इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (IFAD) के अध्यक्ष अल्वारो लारियो ने कहा है कि भारत में छोटे किसानों को जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने के लिए करीब 75 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 6 लाख करोड़ रुपये) के निवेश की जरूरत है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों तक फाइनेंस पहुंचाना आने वाले समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगा. यह न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए होगा. लारियो की माने तो छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए फसल विविधीकरण बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि छोटे किसान बेहतर जल प्रबंधन अपनाएं और माइक्रो-इरीगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करें. साथ ही कम पानी में उगने वाले बीज अपनाएं और सामुदायिक बीज बैंक बनाएं. इससे फायदा मिलेगा और कमाई बढ़ेगी.
न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में लारियो ने कहा कि IFAD एक विशेष संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है, जिसकी स्थापना 1977 में वैश्विक खाद्य संकट के बाद हुई थी. इसका मकसद ग्रामीण इलाकों में भूख और गरीबी से लड़ना है. जब लारियो से जलवायु परिवर्तन के छोटे और सीमांत किसानों पर असर को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने इसे अपनी प्राथमिकता बताया. उन्होंने कहा कि छोटे किसानों को जलवायु बदलाव से निपटने के लिए कम से कम 75 अरब डॉलर की जरूरत है.
86.2 फीसदी किसान छोटे और सीमांत
साल 2015-16 की 10वीं कृषि जनगणना के अनुसार, भारत में 86.2 फीसदी किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है, लेकिन उनके पास केवल 47.3 फीसदी कृषि भूमि है. IFAD अध्यक्ष अल्वारो लारियो ने कहा कि भारत में मौसमी जल संकट, बढ़ते तापमान और बार-बार सूखे की समस्या बढ़ रही है, जिससे छोटे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर जलवायु वित्त में इन छोटे किसानों को सिर्फ 1 फीसदी से भी कम हिस्सा मिल रहा है, जबकि उनकी संख्या करोड़ों में है.
इन राज्यों में जलवायु अनुकूल खेती को बढ़ावा
लारियो ने भारत सरकार की ‘सॉयल हेल्थ कार्ड’ जैसी योजनाओं की सराहना की, जिससे किसानों को उनकी मिट्टी के अनुसार सलाह मिलती है और सिंचाई व जल संरक्षण तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहन भी मिलता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि आज भी कई किसान जलवायु के अनुकूल खेती की तकनीकों को अपनाने में संघर्ष कर रहे हैं. इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ मिलकर IFAD निवेश कर रहा है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम और ओडिशा जैसे राज्यों में जलवायु-लचीली खेती को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है.