खइके पान बनारस वाला गाना जब भी बजता है तो लोगों की आंखों के सामने 1978 में रिलीज ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘डॉन’ की तस्वीर उभर कर सामने आ जाती है, जिसमें सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को पान खाकर बनारसी स्टाइल में झूमते हुए दिखाया गया है. यह गाना केवल हिन्दी पट्टी ही नहीं बल्कि सारी भषाओं की सीमाओं को तोड़ते हुए पूरे देश में इतना पॉपुलर हुआ कि लोगों के जुबान पर बस गया. यही वजह है कि करीब 48 साल बीत जाने के बाद अभी भी इस गाने की धुन पर लोगों को शादी या बर्थडे पार्टी में डांस करते हुए देखा जाता है.
इस गाने की वजह से बनारसी पान पूरी दुनिया में फेमस हो गया. लेकिन क्या आपको मालूम है कि बनारस से महज 200 से 250 किलोमीटर की दूरी पर मगही पान की खेती होती, जो अपने जादुई टेस्ट के लिए बनारसी पान की तरह ही मशहूर है. ये अलग बात यह है कि मगही पान अभी तक बॉलीवुड की फिल्मों का हिस्सा नहीं बन पाया. लेकिन बिहार में यह बनारसी पान से कहीं ज्यादा मशहूर है. अगर आप कभी बिहार घूमने जाएंगे, तो गांव की गलियों से लेकर पटना जैसी सिटी के चौक-चौराहों पर आपको बरबस पान की दुकानें मिल जाएंगी, जिसके काउंटर पर अमूमन ‘मगही पान भंडार’ लिखा रहता है.
मगही पान खाने की आदत
खास कर शाम को इन दुकानों के बाहर युवाओं, व्यस्क और बुजुगों की भीड़ मगही पान चबाते हुए मिल जाएगी. कुछ लोग तो ऐसे ही भी हैं, जो शौकिया तर पर पान खाने के लिए रोज मार्केट जाते हैं. महज 20 रुपये के पान का एक बीड़ा चबाने के लिए ये शौकिया लोग 100 रुपये पेट्रोल और समौसा-चाट पर पानी की तरह बहा देते हैं.
बिहार के इन जिलों में होती है पान की खेती
खैर अब हम आते हैं अपने मुद्दे पर. दरअसल, हम बनारस से 200 से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिस इलाके की बात कर रहे हें, वह है मगध क्षेत्र, जिसके अंदर गया, नालंदा, नवादा, औरंगाबाद और जहानाबाद जिला आता है. ऐसे तो मगही पान की खेती पारंपरिक रूप से गया जिले में की जाती है, लेकिन औरंगाबाद, नालंदा, नवादा और जहानाबाद जिले भी अब किसान इसकी खेती कर रहे हैं. इसका कुल रकबा करीब 450 हेक्टेयर है.
लेकिन पान की खेती के लिए सबसे ज्यादा पॉपुलर गया जिला है. यहां पर करीब 200 किसान मगही पान से जुड़े हुए हैं. गया जिले के वजीरगंज और आमस तथा गुरुआ प्रखंड क्षेत्र में मगही पाान का रकबा करीब 100 बीघा है. यहां का पान देश हीं नहीं बल्कि विदेशों तक में मशहूर है. गया से पान की सप्लाई बनारस और कोलकाता तक होती है.
वजीरगंज प्रखंड में किसान करते हैं खेती
वजीरगंज प्रखंड के पीपरा और जमुआंवा गांव में लगभग 60 बीघे में किसान इसकी खेती करते हैं. जबकि गुरुआ प्रखंड के आमस, करताही और जलपा गांव में लगभग 30 बीघा में मगही पान की खेती होती है. लेकिन धीरे-धीरे किसान मगही पान से दूरी बना रहे हैं. इससे इसका रकबा भी सिकुड़ता जा रहा है. हालांकि, राज्य सरकार पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है.
सरकार किसानों को कर रही प्रोत्साहित
वह गया, नालंदा, नवादा और औरंगाबाद जिले में पान की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘पान विकास योजना’ चला रही है. इसके लिए इकाई लागत 70,5000 रुपये प्रति 300 वर्गमीटर तय की गई है. वहीं, ईकाइ लागत पर सरकार की तरफ से 50 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है. अगर मगही पान की खासियत की बात करें, इसकी पत्तियां बेहद ही कोमल,पतली, हरी और चमकदार होती है. इसकी पत्तियों में भरपूर रस और स्वाद होता है. मुंह में डालते ही इसकी पत्तियां बर्फ तर पिघल जाती है. इसीलिए इसे ‘रसाला पत्ता’ भी कहा जाता है.
साल 2018 में मिला जीआई टैग
मगही पान का स्वाद अन्य पान के मुकाबले ज्यादा मीठा होता है. इसकी इसी खासित के चलते इसे साल 2018 में जीआई टैग मिला. इससे इसकी प्रसिद्धि पूरे विश्व में फैल गई और डिमांड में भी इजाफा हुआ. ऐसे जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है. 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान लखनऊ और बंगाल के अमीर लोगों के बीच मगही पान सबसे पसंदीदा पान बना.
अप्रैल में शुरू होती है पान की रोपाई
ऐसे मगही पान की खेती का सही समय अप्रैल से मई का महीना है. इस दौरान इसकी बुवाई करने पर पौधों में रोग नहीं लगते हैं और उत्पादन भी अच्छा होता है. वहीं, पत्तियों की तुड़ाई जनवरी से मार्च के बीच की जाती है. मगही पान का उत्पादन प्रति वर्ष करीब 500 ढोली प्रति कट्ठा होता है. इसके एक पौधे से 40-60 पत्तियों का उत्पादन होता है.
8 महीने में तैयार हो जाती है फसल
मगही पान की खेती लिए लाल मिट्टी और दोमट मिट्टी अच्छी होती है. जबकि जमीन ढालू और अच्छी जल निकासी होनी चाहिए. क्योंकि जल भराव से पौधों को नुकसान पहुंचता है. पौधों की रोपाई करने से पहले खेत में बेड तैयार किया जाता है. बेल को खेत में 60-90 सेमी की दूरी लगाना अच्छा माना गया है. वहीं, पान के बरेजा में सरसों खली खाद डाली जाती है, जबकि पुराने बरेजा में डीएपी या यूरिया खाद डाली जाती है. रोपाई करने के 6-8 महीने बाद फसल तैयार हो जाती है.