Pulses Sowing: महाराष्ट्र में खरीफ के इस सीजन में दालों की बोवाई का पैटर्न पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले काफी बदला हुआ दिखाई दे रहा है. कभी अचानक तेज बारिश तो कभी लंबे समय तक सूखा, इन दोनों स्थितियों ने किसानों को सोच-समझकर फसल चुनने के लिए मजबूर कर दिया है. बढ़ती लागत, बीज और खाद की महंगाई और बाजार में दामों की अनिश्चितता ने भी किसानों के फैसलों को प्रभावित किया है. राज्य के कृषि विभाग की नई रिपोर्ट बताती है कि इस बार दालों की कई किस्मों में असमानता देखने को मिली है, कुछ फसलें घटी हैं, तो कुछ ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है.
तूर की खेती स्थिर, किसानों का भरोसा बरकरार
तूर महाराष्ट्र की मुख्य खरीफ दाल है और इस साल भी इसका बोवाई क्षेत्र लगभग स्थिर रहा है. कुल 12.26 लाख हेक्टेयर में तूर की खेती की गई है, जो पांच साल के औसत का 96 प्रतिशत है. इससे यह साफ है कि किसान तूर को सुरक्षित विकल्प मानते हैं.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों का कहना है कि तूर की फसल मौसम के उतार-चढ़ाव में भी खुद को बचा लेती है और बाजार में इसकी मांग साल भर बनी रहती है. हालांकि, विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछले कई वर्षों से तूर की खेती का रकबा न तो बढ़ रहा है और न ही घट रहा है. इसका कारण यह है कि कीमतें हमेशा स्थिर नहीं रहतीं और किसानों को मनचाहा मुनाफा नहीं मिल पाता.
मूंग की खेती में तेज गिरावट, किसान हुए सतर्क
महाराष्ट्र में इस बार मूंग की बोवाई में सबसे बड़ी कमी दर्ज की गई है. सिर्फ 2.11 लाख हेक्टेयर में मूंग बोया गया, जो पांच साल के औसत का केवल 70 प्रतिशत है. किसान अब मूंग को जोखिम भरी फसल मानने लगे हैं, क्योंकि यह तेजी से खराब होने वाली और मौसम पर निर्भर फसल है.
कई किसानों ने बताया कि पिछले कुछ सीजन में अचानक हुई बारिश और हल्की बाढ़ जैसी स्थितियों ने मूंग की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया. इसके चलते किसानों का भरोसा कमजोर हुआ और उन्होंने कम जोखिम वाले विकल्पों को चुना.
उड़द में बढ़ती दिलचस्पी, बाजार भाव बना बड़ा कारण
इस सीजन में उड़द की बोवाई में मजबूती दिखी है. कुल 3.78 लाख हेक्टेयर में उड़द की खेती की गई, जो पिछले पांच साल के औसत से भी ज्यादा है. कृषि विभाग के अनुसार, उड़द कम अवधि में तैयार होने वाली फसल है और कम बारिश में भी अच्छे परिणाम दे देती है.
पिछले वर्षों में उड़द के बढ़ते बाजार भाव और मांग ने किसानों का रुझान इसकी तरफ बढ़ाया है. उनके लिए यह मूंग की तुलना में ज्यादा स्थिर और कम जोखिम वाली फसल के रूप में उभरी है.
अन्य दालों में हल्की गिरावट, बोवाई सीमित
घोड़ा चना, लोबिया, मटकी और राजमा जैसी अन्य दालों की बोवाई इस बार 68,575 हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले साल की तुलना में थोड़ी कम है. किसानों ने इन फसलों पर ज्यादा जोखिम नहीं लिया, क्योंकि इनका बाजार दाम और उत्पादन दोनों अनिश्चित रहते हैं.
सामान्य वृद्धि धीमी, किसान अपनाए सतर्क रुख
कुल मिलाकर दालों का बोवाई क्षेत्र इस बार 18.84 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा है. यह आंकड़ा पिछले पांच साल के औसत से कम है, लेकिन पिछले साल के मुकाबले लगभग बराबर है. इस धीमी वृद्धि ने यह संकेत दिया है कि किसान इस बार फसलों के चुनाव में काफी सावधान रहे.
इसके उलट मक्का जैसी फसलों ने जोरदार बढ़त दिखाई है, जिससे साफ होता है कि किसान अब तेजी से नकदी फसलों की ओर झुक रहे हैं.
मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी समान रुझान
मध्य प्रदेश और राजस्थान, जो देश के बड़े दाल उत्पादक राज्य हैं, वहां भी मौसम की अनिश्चितता ने दालों की खेती को प्रभावित किया है. फिर भी उनकी बड़ी कृषि भूमि के कारण कुल उत्पादन पर बहुत ज्यादा असर नहीं दिखता. तीनों राज्य मिलकर देश की लगभग 55 प्रतिशत दालें पैदा करते हैं.
स्थायी चुनौतियां और किसानों की बदलती सोच
निति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि दालों की खेती कई चुनौतियों से घिरी हुई है—बेहतर बीजों की कमी, तकनीक का सीमित उपयोग, सिंचाई सुविधाओं की कमी और बारिश पर निर्भरता. यही वजह है कि किसान ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों की ओर बढ़ रहे हैं.
लातूर के किसान रामकृष्ण भोळसे बताते हैं कि दालों में खर्च ज्यादा और मुनाफा कम मिलता है. उनके शब्दों में, “सोयाबीन और दूसरी नकदी फसलों में कमाई ज्यादा है, इसलिए कई किसान दालों से हट रहे हैं.”