2000 साल पुराना इतिहास..मुजफ्फरपुर से मिली पूरी दुनिया में पहचान, कभी खाई है ये लीची?

मुजफ्फरपुर की शाही लीची को 'प्राइड ऑफ बिहार' कहा जाता है, जिसे 2018 में GI टैग मिला. इसकी मिठास, खुशबू और स्वाद ने इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई.

नोएडा | Updated On: 28 May, 2025 | 12:23 PM

आपने कभी ‘प्राइड ऑफ बिहार’ का रसास्वादन किया है. हो सकता है कि आपको सुनने में जरा अटपटा सा लग रहा हो. क्योंकि अधिकांश लोगों को लगता है कि किसी भी राज्य का प्राइड वहां के प्रसिद्ध व्यक्ति, गीत, संगीत, संस्कृति या फिर मॉन्यूमेंट से जुड़ा होता है. ऐसे में भला कोई भी किसी राज के प्राइड का रसास्वादन कैसे कर सकता है. खैर हम अपने मुद्दे पर आते हैं. हम जिस ‘प्राइड ऑफ बिहार’ के बारे में बात कर रहे हैं, वह है मुजफ्फरपुर की विश्व प्रसिद्ध शाही लीची. इसकी प्रसिद्धि के चलते इसे ‘प्राइड ऑफ बिहार’ भी कहा जाता है. क्योंकि विश्व में सबसे अधिक शाही लीची का उत्पादन मुजफ्फरपुर की धरती पर ही होती है. हालांकि, ऐसे सबसे अधिक चीन में लीची का प्रोडक्शन होता है.

दरअसल, आज मैं सब्जी खरीदने के लिए मार्केट गया था. अचानक मेरी नजर एक ठेली पर पड़ी, जिसका मालिक चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था मुजफ्फरपुर की शाही लीची ले लो. इस आवाज को सुनते ही मैं अपने बचपन के दिनों में चला गया. करीब 20 साल पहले जब मैं गांव में रहकर पढ़ाई करता था. हर साल मई से लेकर जून तक यानी दो महीने जमकर लीची का लुत्फ उठाता था. तब गांव ले लेकर मार्केट तक पूरा इलाका लीची की खुशबू से सराबोर रहता था. जिस साल मेरे बाग में शाही लीची के फल नहीं आते थे, उस बार दोस्तों के साथ दूसरे के बगीचे में जमघट लगती थी. इस भीषण गर्मी और लू का असर भी लीची के स्वाद के सामने कमजोर पड़ जाता था.

कभी लीची का होता था मिठाई के रूप में इस्तेमाल

उस जमाने में लीची का सम्मान इतना था कि इसे शादी-ब्याह में सगुन के तौर पर आम के साथ इसकी भी एक टोकरी भेजी जाती थी. हालांकि, इसकी सेल्फ लाइफ कम होती है, इसलिए अब यह चलन धीरे-धीरे कम हो गया है. 20 साल पहले लीची फल होते हुए भी मिठाई के रूप में इस्तेमाल हो जाता था. तब बाराती में आए मेहमानों को नास्ते के रूप में मिलने वाले मिठाई के पैकेट में लीची भी शामिल होती थी. हमें याद है कि अधिकांश बच्चे बाराती में जब भी मिठाई के पैकेट खोलते, तो उनकी पहली पसंद लीची ही होती थी. सबसे पहले लोग लीची ही खाया करते थे. इसके बाद किसी दूसरे खाद्य पदार्थों पर हाथ साफ करते थे.

शाही लीची को 2018 में मिला GI Tag

जब गांव में रहते थे, तो लीची की प्रसिद्धि के बारे में इतनी जानकारी नहीं थे. लीची मेरे लिए घर की मुर्गी दाल बराबर थी. लेकिन जब बिहार छोड़कर बाहर आया, तो मालूम पड़ा कि मुजफ्फरपुर की शाही लीची वर्ल्ड फेमस है और इसे 5 अक्टूबर 2018 को जीआई टैक भी मिल गया है. जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है.

बिहार में कितना होता है लीची उत्पादन

बिहार में करीब 32 से 34 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है, जिससे कुल 300 मैट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है. देश में लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी अकेले 40 फीसदी है. ऐसे किसान पूर्वी चंपारण, वैशाली, पश्चिमी चंपारण और सीतामढ़ी में लीची की खेती करते हैं, लेकिन मुजफ्फरपुर की बात ही अलग है. मुजफ्फरपुर की मिट्टी ऐसी है कि यहां की लीची में चीनी जैसी मिठांस खुल जाती है. हालांकि, मुजफ्फरपुर में 18 हजार हैक्टेयर में लीची की खेती की जाती है. इसमें से 12 हजार हेक्टयेर में केवल शाही लीची का बाग है.

लीची का इतिहास 2000 साल पुराना

मुजफ्फरपुर की शाही लीची की सप्लाई न केवल दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में होती है बल्कि, विदेशों में भी इसका निर्यात होता है. बिहार से हर साल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य लोगों को उपहार के रूप में शाही लीची भेजी जाती है. हालांकि, लीची का इतिहास 2000 साल पुराना है. सबसे पहले इसकी खेती चीन में शुरू हुई. 1800 साल बाद 1770 के आसपास भारत में भी किसान इसकी खेती करने लगे. लेकिन मुजफ्फपुर की मिट्टी और मौसम लीची के बाग के लिए सबसे उपयुक्त साबित हुआ.

इस वजह से फट रहे हैं लीची के फल

वहीं, बिहार में इस बार किसान लीची के फल फटने से परेशान हैं. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा समस्तीपुर में पादप रोग विभाग के हेड डॉ. एसके सिंह कहना है कि कई वजहों से लीची के फल फटते हैं. उनके मुताबिक, लंबे समय तक सूखे के बाद अचानक अधिक बारिश होती है या किसान अधिक सिंचाई कर देते हैं, तो ऐसी स्थिति में फल के अंदर का गूदा तेजी से बढ़ता है, जबकि छिलका उतनी तेजी से नहीं बढ़ पाता, जिससे वह फट जाता है. हालांकि, किसान फलों को फटने से रोकने के लिए बोरॉन का इस्तेमाल कर सकते हैं.

Published: 27 May, 2025 | 07:50 PM