गेहूं की पराली के रेट में गिरावट, 130 रुपये क्विंटल हुई कीमत..किसानों को हो रहा नुकसान

इस साल गेहूं की पराली के दाम रिकॉर्ड स्तर पर गिर गए हैं, जिससे किसान परेशान हैं. डेयरी सेक्टर में साइलेज और धान की पराली की बढ़ती मांग से गेहूं के चारे की कीमतों में भारी गिरावट आई है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Published: 13 Jun, 2025 | 05:05 PM

इस साल पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल होने वाली गेहूं की पराली के दाम रिकॉर्ड स्तर पर गिर गए हैं, जिससे गेहूं उगाने वाले किसान परेशान हैं. ट्रेडर्स के मुताबिक, इस साल पराली से बने चारे के रेट कई इलाकों में 130 से 180 रुपये प्रति क्विंटल तक ही रहे, जबकि 2024 में यही रेट 500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही हाल रहा, तो किसान गेहूं की पराली जलाने को मजबूर हो सकते हैं, क्योंकि उनके पास पराली निपटाने का कोई और तरीका नहीं बचेगा.

हिन्दुसातन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस गिरावट की वजह डेयरी सेक्टर में पराली की मांग घटना है. अब डेयरी वाले ज्यादा पोषण वाला साइलेज (मक्के व अन्य फसलों से बना चारा) और धान की पराली पशुओं को खिला रहे हैं. फरीदकोट के लखविंदर सिंह, जो पिछले 10 सालों से डेयरियों को पराली की सप्लाई कर रहे हैं, कहते हैं कि पहले किसान एक क्विंटल पराली के 800-900 रुपये तक कमा लेते थे, लेकिन अब लागत भी नहीं निकल पा रही.

पेपर मिल भी दे रही हैं कम कीमत

अब पराली की मांग काफी कम हो गई है. फरीदकोट के सप्लायर लखविंदर सिंह ने कहा कि पंजाब की चार पेपर मिलें अब पराली को पेपर बनाने में इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन वे बहुत कम रेट दे रही हैं. उन्हें पता है कि डेयरी से मांग घटने के कारण किसान मजबूरी में कम दामों पर भी पराली बेचने को तैयार हैं.

किसानों ने कही ये बात

बठिंडा के बाजाक गांव के किसान बलदेव सिंह ने कहा कि उन्होंने गेहूं की फसल से निकली करीब 1,000 क्विंटल गेहूं स्टोर करके रखी है, लेकिन कम रेट की वजह से बिक नहीं रही. उन्होंने कहा कि मैंने 50 एकड़ में गेहूं उगाया था और एक एकड़ से करीब 20 क्विंटल पराली निकलती है. पराली से चारा तैयार करने में 200-250 रुपये प्रति क्विंटल का खर्च आता है, लेकिन व्यापारी 160 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा देने को तैयार नहीं हैं. घाटे में बेचने का कोई मतलब नहीं. मैं जनवरी तक इंतजार करूंगा, जब इसके रेट 300 तक पहुंच सकते हैं.

किसानों को होती थी अतिरिक्त आमदनी

मोगा जिले के सालिना गांव के प्रगतिशील किसान तरसेम सिंह ने कहा कि गेहूं की पराली से बने चारे की बिक्री से किसानों को अतिरिक्त आमदनी होती थी और इससे पराली जलाने की घटनाएं भी कम होती थीं. उन्होंने कहा कि एक किसान को पराली के चारे से प्रति एकड़ 4,000 रुपये तक की अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी. लेकिन अब लगातार दूसरे सीजन में चारे के रेट गिर गए हैं और पारंपरिक चारे की मांग ना के बराबर है.

पराली से बने चारे की मांग में कमी

पंजाब राज्य किसान आयोग के पूर्व अध्यक्ष अजयवीर जाखड़ ने कहा कि पराली से बने चारे की मांग में कमी का कारण डेयरी सेक्टर का मवेशियों के लिए धान की पराली की तरफ झुकाव है. उन्होंने कहा कि पारंपरिक रूप से पराली को पोषक तत्वों के साथ मिलाकर खिलाया जाता है, जिससे मवेशी इसे आसानी से पचा लेते हैं. अब क्योंकि धान की पराली को बेहतर ढंग से प्रोसेस किया जा रहा है, इसलिए किसान उसका उपयोग ज्यादा कर रहे हैं.

 

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