सिर्फ स्वाद नहीं, सेहत भी देता है जीरा! जानिए जीरे की अलग-अलग किस्मों और खेती के बारे में

एक एकड़ खेत में 4 से 6 क्विंटल तक जीरा पैदा हो सकता है. इस हिसाब से किसान प्रति एकड़ 80,000 से लेकर 1.2 लाख रुपये तक की आमदनी आसानी से कमा सकता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 27 Jun, 2025 | 02:00 PM

जब भी कोई दाल तड़के से महकती है या सब्जी में खुशबू उड़ती है, तो मन खुद-ब-खुद कहता है “अरे! जीरे का कमाल है” भारतीय रसोई में जीरा कोई नई चीज नहीं है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जीरा सिर्फ एक नहीं, कई तरह का होता है. हर किस्म का जीरा अपने खास स्वाद, खुशबू और गुणों के लिए जाना जाता है. तो चलिए, इस आम लेकिन बेहद खास मसाले की किस्मों को थोड़ा करीब से जानते हैं.

सफेद जीरा या रेगुलर जीरा

ये वही जीरा है जो ज्यादातर घरों की मसाला डब्बियों में रहता है. इसे हम आमतौर पर “सफेद जीरा” या “कॉमन जीरा” कहते हैं. इसका स्वाद थोड़ा सा तीखा, हल्का नींबू जैसा और खुशबूदार होता है. दाल, सब्जी, चटनी, पुलाव – हर जगह ये शानदार काम करता है. अगर आप इसे भूनकर इस्तेमाल करें, तो इसकी खुशबू और भी निखर जाती है.

काला जीरा या शाही जीरा

यह दिखने में छोटा और रंग में गहरा होता है. इसे “शाही जीरा” या “काला जीरा” कहा जाता है. इसका स्वाद हल्का मीठा और खुशबू कुछ-कुछ अजवाइन जैसी होती है. बिरयानी, अचार और खास मसाला मिश्रणों में इसका खूब इस्तेमाल होता है. नाम के अनुसार इसका स्वाद भी थोड़ा राजसी होता है.

जो जीरा नहीं, पर फिर भी जीरे जैसा

ईरानी जीरा को बहुत लोग आम जीरा समझने की गलती कर बैठते हैं, लेकिन इसका स्वाद एकदम अलग होता है. इसे अंग्रेजी में “Caraway seeds” भी कहते हैं. इसकी खुशबू थोड़ी सौंफ या अजवाइन जैसी होती है. इसका इस्तेमाल भारत में बहुत नहीं होता, लेकिन ईरान और यूरोपीय देशों में यह ब्रेड, केक और दवाइयों में उपयोग किया जाता है.

कैसे करें जीरे की खेती?

जलवायु और मिट्टी 

जीरे की खेती के लिए ठंडी और सूखी जलवायु सबसे अनुकूल मानी जाती है. बारिश या अत्यधिक नमी इसकी जड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है. दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो और pH 6.5 से 8.0 के बीच हो, उसमें जीरे की अच्छी पैदावार होती है. यही वजह है कि बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, कच्छ जैसे इलाके इसकी खेती के लिए जाने जाते हैं.

कब और कैसे करें बुवाई

जीरे की बुवाई का सही समय अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से लेकर नवंबर के मध्य तक होता है. बीजों को बोने से पहले उन्हें जैविक फफूंदनाशक जैसे ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर लेना चाहिए. यह फसल को रोगों से बचाता है. बुवाई के लिए खेत को भली-भांति तैयार करना और बीजों को कतारों में डालना फसल प्रबंधन को आसान बनाता है.

सिंचाई और देखभाल: थोड़ी मेहनत, बड़ा फल

जीरे की फसल को बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. पहली सिंचाई बुवाई के कुछ दिन बाद की जाती है और इसके बाद समय-समय पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है, खासकर फूल और बीज बनने के समय. अधिक पानी से जड़ गल सकती है, इसलिए सिंचाई में सावधानी जरूरी है. निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवार से मुक्त रखना भी उपज को बढ़ाता है.

रोग और कीटों से सुरक्षा

जीरे की फसल में झुलसा रोग और सफेद फफूंदी सबसे आम बीमारियां हैं. ऐसे में किसानों को जैविक उपायों जैसे नीम का तेल या गोबर की राख का छिड़काव करने की सलाह दी जाती है. यदि रोग अधिक बढ़ जाए, तो विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही रसायनों का उपयोग करना चाहिए. समय पर देखभाल से फसल को बचाया जा सकता है.

कटाई से लेकर भंडारण तक की प्रक्रिया

जब जीरे के पौधे सूखने लगते हैं और बीज भूरे पड़ जाते हैं, तब इसकी कटाई की जाती है. कटाई के बाद फसल को खेत में 4-5 दिन सूखने दिया जाता है, ताकि बीज आसानी से अलग हो जाएं. फिर बीजों को पूरी तरह सुखाकर साफ और सूखी जगह में भंडारित करना चाहिए, जिससे वे लंबे समय तक खराब न हों. अगर देखभाल सही हो तो एक एकड़ खेत में 4 से 6 क्विंटल तक जीरा पैदा हो सकता है. इस हिसाब से किसान प्रति एकड़ 80,000 से लेकर 1.2 लाख रुपये तक की आमदनी आसानी से कमा सकता है. यह उन क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो रहा है जहां सिंचाई के साधन सीमित हैं.

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Published: 27 Jun, 2025 | 02:00 PM

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